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Explainer: दुनिया मना रही वर्ल्ड रिफ्यूजी डे, जानिए- कितना खास है ये दिन, भारत के लिए इसके क्या मायने?

आज यानी 20 जून को दुनिया वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मना रही है. 'शरणार्थियों के साथ एकजुटता' इस वर्ष की थीम है. यह उन लोगों के साहस और उनकी उपलब्धियों का जश्न मानने का दिन है, जिन्हें मजबूरन अपने देश को छोड़ना पड़ा है.

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Ajay Bhartia
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world refugee day 2024

World refugee day 2024( Photo Credit : News Nation)

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World Refugee Day 2024: आज यानी 20 जून को दुनिया वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मना रही है. 'शरणार्थियों के साथ एकजुटता' इस वर्ष की थीम है. यह उन लोगों के साहस और उनकी उपलब्धियों का जश्न मानने का दिन है, जिन्हें संघर्ष या उत्पीड़न से बचने के लिए अपने देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस दिन शरणार्थियों के सामने की चुनौतियों पर विचार किया जाता है. इस मौके पर आइए जानते हैं कि क्यों खास है आज का दिन (वर्ल्ड रिफ्यूजी डे) और भारत के लिए इसके क्या मायने हैं. बता दें कि भारत में भी शरणार्थियों के आने और उनके ठहरने का एक लंबा इतिहास रहा है.

क्यों खास है वर्ल्ड रिफ्यूजी डे?

वर्ल्ड रिफ्यूजी डे कई मायनों में खास है. हर वर्ष 20 जून को मनाया जाना वाला यह इंटरनेशनल पर्व है. इसे दुनियाभर में खासकर शरणार्थियों और उनके हकों की आवाज बुलंद करने वाली संस्थाओं द्वारा सेलिब्रेट किया जाता है. यह दिन दुनियाभर में शरणार्थियों की स्थिति के बारे में जागरुकता बढ़ाने को समर्पित है. सबसे पहले 4 दिसंबर 2000 को यूनाइनेट नेशंस (UN) ने फैसला लिया कि वर्ष 2000 से, 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे के रूप में मनाया जाएगा. तब से हर साल 20 जून को दुनिया इस दिन को सेलिब्रेट करती है.

UN ने इस साल भी शरणार्थियों के लिए आवाज बुलंद की है. यूएन सेक्रेटर जनरल एंटोनियो गुटेरस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्स एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, '#WorldRefugeeDay पर, आइए शरणार्थियों की सहायता करने और उनका स्वागत करने, उनके मानवाधिकारों को बनाए रखने, जिसमें शरण लेने का अधिकार भी शामिल है. संघर्षों का हल निकालना दुनिया की सामूहिक जिम्मेदारी है ताकि अपने समुदायों से मजबूर लोग घर लौट सकें.'

वर्ल्ड रिफ्यूजी डे का मकसद

यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर मिनट 20 लोग युद्ध, उत्पीड़न, या आतंक से बचने के लिए अपना सब कुछ पीछे छोड़ देते हैं. उनको दूसरे देशों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है. ऐसे लोगों को नए देश में रहने, खाने और रोजगार से जुड़ी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. बदहाली के हालत में भी जीवन को बचाए रखने की उनके सामने चुनौती होती. ऐसे लोगों (शरणार्थियों) की दुर्दशा के प्रति सहानुभूति, समझ विकसित करने और ऐसे प्रयास, जिनसें ये लोग अपने देश वापस लौट सकें के मकसद से वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मनाया जाता है.

रिफ्यूजी कौन होते हैं?

UN की रिपोर्ट के अनुसार, रिफ्यूजी वह व्यक्ति होता है जो 'अपनी जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता या राजनीतिक राय के कारण उत्पीड़न के एक भय' के कारण अपने घर और देश से भाग जाता है. कई शरणार्थी प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के प्रभावों से बचने के लिए निर्वासन में हैं. इनके अलावा जबरन विस्थापित लोगों में शरण चाहने वाले (Asylum Seekers), आतंरिक रूप से विस्थापित लोग, राज्यविहीन लोग (Stateless Persons), और वापल आने वाले (Returnees) लोग शामिल हैं. 

1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन और इसका 1967 प्रोटोकॉल

शरणार्थियों को दुनिया के सबसे कमजोर लोगों में से एक बताया जाता है. ऐसे लोगों की सुरक्षा के लिए यूएन के 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन और उसका 1967 प्रोटोकॉल है, जिसके तहत ऐसे लोगों को शरण देने वाले देश को उनको रोजगार, शिक्षा और आवाज जैसे अधिकार देने होते हैं. हालांकि, भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं है. फिर भी वह शरणार्थियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाया है. 

दुनियाभर में कितने लोग रिफ्यूजी?

यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (UNHCR) का अनुमान है कि 2023 के मध्य तक, दुनिया भर में 110 मिलियन से अधिक लोग जबरन विस्थापित हो गए, जिनमें से 40 फीसदी बच्चे थे. इन विस्थापित लोगों में से 75 फीसदी निम्न और मध्यम आय वाले देशों में शरण लिए हुए हैं. 

वर्ल्ड रिफ्यूजी डे के भारत के लिए मायने

भारत में भी लाखों की संख्या में शरणार्थी हैं. देश ऐसे लोगों के प्रति मानवीय दृष्टकोण अपनाता है. देश में शरणार्थियों के आने का लंबा इतिहास रहा है. 1947 में अपनी स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने कई विस्थापित समुदायों को शरण दी है. फिर चाहे 1947 में भारत के विभाजन की घटना हो या फिर 1959 में तिब्बत से दलाई लामा के पलायन के बाद भारत ने उन्हें और उनके हजारों अनुयायियों को शरण दी. 1971 में बांग्लादेश मुक्ति युद्ध, 1983 में श्रीलंकाई सिविल वॉर और अफगानिस्तान और म्यांयार में संघर्ष के मौकों पर संबंधित देशों के लोगों ने भारत में शरण ली. इन शरणार्थियों में तिब्बती, बांग्लादेशी, तमिल श्रीलंकाई, अफगानिस्तानी, म्यांयार से आए रोहिंग्या मुसलमान हैं.

भारत में शरणार्थियों को मदद प्रदान के लिए यूएनएचसीआर काम करता है. देश में वर्ल्ड रिफ्यूजी डे पर कार्यक्रम और अभियान आयोजित होते हैं. मीडिया में शरणार्थियों के मुद्दों को कवरेज मिलती है, जिसमें शरणार्थियों की दुर्दशा और उनकी चुनौतियों को उठाया जाता है. रिफ्यूजियों को लेकर भारत का रूख एकदम साफ है. वह इन लोगों के लिए स्थायी समाधान के लिए वैश्विक प्रयासों की समर्थन करता है. लेकिन, इस मुद्दे पर भारत राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक और आर्थिक स्थिरता भी उसकी प्राथमिकता (विशेषकर रोहिंग्या और बांग्लादेशी शरणार्थियों के मामलों) में हैं.

Source : News Nation Bureau

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