पुलिस और क़ानून व्यवस्था के बावजूद देश में अपराध की घटनाएं हर रोज़ बढ़ रही है। कई बार लोगों के पास इतना वक़्त नहीं होता कि वो पुलिस से सहायता मांग सके। ऐसे में क़ानून ने हमें आत्मरक्षा का अधिकार दिया है।
भारतीय दण्ड संहिता 96 से लेकर 106 तक की धाराओं में हर एक व्यक्ति को आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है। लेकिन हां वो सिर्फ आत्मरक्षा होनी चाहिए, प्रतिरोध या उसे दी जाने वाली सज़ा नहीं।
यानी आप ख़ुद को बचा सकते हैं, सामने वाले व्यक्ति को दण्ड नहीं दे सकते। दण्ड देना क़ानून का काम है।
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अब सवाल ये है कि किन परिस्थितियों में हम अपने आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं?
अपनी संपत्ति की रक्षा, चोरी, डकैती, शरारत व अपराधिक गतिविधियों के खिलाफ आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है।
आईपीसी की धारा 103 के मुताबिक लूट, रात में घर में सेंधमारी, आगजनी, चोरी जैसी किसी भी स्थिति में अगर जान का खतरा हुआ तो आक्रमणकारी की हत्या करना भी ग़लत नहीं होगा।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने भी आत्मरक्षा के अधिकार से जुडे मामले में एक निर्णय के दौरान कहा था, 'कानून का पालन करने वाले लोगों को कायर बने रहने की जरूरत नहीं है, ख़ासकर तब, जबकि आपके ऊपर गैरक़ानूनी तरीके से हमला किया जाए।'
न्यायमूर्ति पीपी नावलेकर और न्यायमूर्ति लोकेश्वर पंटा की खंडपीठ ने पंजाब के अंतराम की हत्या के दोषी बाबूराम और इंद्रराज को आजीवन कारावास की सजा देने के फैसले को दरकिनार करते हुए यह व्यवस्था दी है।
अंतराम ने तीन मार्च 1993 को इंद्रराज पर तो हमला किया ही, पति के बचाव में सामने आई माया को भी निशाना बनाया। इस घटना के दौरान बाबूराम और इंद्रराज ने आत्मरक्षार्थ अंतराम पर प्रतिघात किया, जिसमें उसकी मौत हो गई।
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HIGHLIGHTS
- भारतीय दण्ड संहिता 96 से लेकर 106 तक की धाराओं में हर एक व्यक्ति को आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है
- अपनी संपत्ति की रक्षा, चोरी, डकैती, शरारत व अपराधिक गतिविधियों के खिलाफ आत्मरक्षा का अधिकार दिया गया है
- आप ख़ुद को बचा सकते हैं, सामने वाले व्यक्ति को दण्ड नहीं दे सकते
Source : Deepak Singh Svaroci