आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से कदम से कदम मिलाकर चल रही है. हम ये भी कह सकते है वो पुरुषों से आगे भी है क्योंकि वो ऑफिस के साथ ही घर और बच्चों की जिम्मेदारियां भी बखूबी तरह से निभाती है. लेकिन इतना सब करने के बाद भी महिलाओं को पुरुषों से कम आंका जाता है. महिलाओं के प्रति समाज की सोच आज भी रुढ़ीवादी और दकियानुसी से भरी हुई है. उन्हें लगता है कि वो सिर्फ घर तक सीमित रह सकती है और दूसरों पर आश्रित.
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मगर बता दें कि भारत में 4.5 प्रतिशत घर अकेली कमाने वाली औरतों के भरोसे चलता है. ऐसा हम नहीं कह रहे है बल्कि ये बात संयुक्त राष्ट्र महिला (यूएन वूमेन) की एक रिपोर्ट में सामने आई है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सिंगल मदर्स की संख्या 1.3 करोड़ है. वहीं ऐसी ही 3.2 करोड़ महिलाएं संयुक्त परिवारों (Joint Family) में भी रह रही हैं.
रिपोर्ट में ये बात भी सामने आई है कि महिलाओं की स्थिति की मजबूती की वजह महिला-पुरुष की देरी से शादी करने की वजह है. लेकिन इस बड़े बदलाव के बाद भी भारत में घर चलाने वाली सिंगल मदर के परिवार में गरीबी दर 38% है, वहीं दंपति द्वारा चलाए जा रहे परिवार में इसका प्रतिशत 22.6% है.
यूएन की इस रिपोर्ट के मुताबिक, दस में से आठ सिंगल पेरेंट परिवारों को महिलाएं (84%) चला रही है. इसका मतलब 10.13 करोड़ परिवारों में महिलाएं अपने बच्चों के साथ रहती है. वहीं कई अन्य सिंगल मदर संयुक्त परिवारों में रहती है.
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जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (डीएचएस) के अनुसार केवल 26 प्रतिशत ही अपनी खुद की एक आय प्राप्त कर पाती हैं, जबकि उनमें से अधिकांश अपने पति या परिवार के अन्य पुरुष सदस्यों पर निर्भर होती हैं.
रिपोर्ट में सिंगल मदर्स के नेतृत्व वाले परिवारों में अस्थिर आय का मुकाबला करने के लिए समाधान की पेशकश भी की गई है. जैसे कि विविध और गैर-भेदभावपूर्ण पारिवारिक कानून, सुलभ यौन और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल, महिलाओं के लिए पर्याप्त आय की गारंटी और महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा की रोकथाम और त्वरित प्रतिक्रिया शामिल हैं.
घरेलू हिंसा का शिकार
आज भारत में इतने घर अकेले महिलाओं के दम पर चल रहा है लेकिन इनके प्रति हो रही हिंसा अब भी रुकने का नाम नहीं ले रही है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के अनुसार भारत में 15 से 49 साल के आयु वर्ग में 29 फीसदी महिलाओं ने पतियों द्वारा हिंसा की बात मानी थी. 3% महिलाएं ऐसी हैं जिन्होंने गर्भवती होते हुए हिंसा झेली है.
अधिकत्तर महिलाएं खुद भी घरेलू हिंसा को अपने जीवन का सहज, स्वाभाविक हिस्सा मानती हैं. इस कारण जब वे ऐसी हिंसा का सामना करती हैं तो अक्सर ही इस बारे में किसी से शिकायत नहीं करती. इसका प्रभाव यह पड़ता है कि पति की ऐसी हिंसक गतिविधियां बढ़ती ही जाती हैं और बर्दाश्त से बाहर होने पर महिलाएं चुपचाप खुद को मौत को गले लगा लेती है.