भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में लंबे समय से लोकतंत्र समर्थकों और सैन्य तानाशाही के बीच संघर्ष चल रहा है. फिलहाल वहां सैन्य तानाशाही चल रही है. इस दौरान म्यांमार में काफी अशांति है. लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की की गिरफ्तारी और जुंटा शासन लागू होने के बाद देश का माहौल अराजकता पूर्ण हो गया, तो कई म्यांमारवासी जो लोकतंत्र समर्थक थे और जुंटा शासन के उत्पीड़न से बचने के लिए म्यांमार छोड़कर भारत की तरफ रूख किया. म्यांमार के ज्यादातर शरणार्थियों ने सीमा से सटे मिजोरम राज्य में प्रवेश किया.
म्यांमार के साथ 400 किलोमीटर की सीमा साझा करने वाले राज्य मिजोरम ने कई शरणार्थियों को प्रवेश करने की अनुमति दी और आसपास के गांवों के लोगों ने उन्हें रहने की जगह के साथ ही भोजन और कपड़े भी उपलब्ध कराए. म्यांमार से आए परिवारों के साथ बहुत से बच्चे भी थे. जिनके पढ़ने पढ़ने की समस्या उत्पन्न हो गयी. ऐसे में मिजोरम के स्कूलों में इन बच्चों का दाकिला भी कराया गया. मिजोरम ने 2021 के अंत में सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को म्यांमार के शरणार्थियों के बच्चों को मानवीय आधार पर सरकारी स्कूलों में प्रवेश देने का निर्देश दिया.
“म्यांमार शरणार्थियों के लगभग 400 बच्चे हैं जो छह से 14 वर्ष के आयु वर्ग में आते हैं. उनमें से ज्यादातर चम्फाई और आइजोल जिलों में हैं. उन्हें सरकारी स्कूलों में प्रवेश दिया जाएगा. ” मिजोरम के शिक्षा मंत्री लालचंदमा राल्ते ने बताया कि म्यांमार से बड़ी संख्या में बच्चे उत्पीड़न से बचने के लिए अपने माता-पिता के साथ भारत आए थे.
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राज्य ने सीमा से लगे गांवों में म्यांमार में रह रहे बच्चों को पढ़ाने में भी सक्रिय भूमिका निभाई. चंपई जिला भी उसमें शामिल है जहां स्कूल म्यांमार के बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे सीखने से न चूकें. एक रिपोर्ट मीडिया में कहा गया है कि 300 से 500 से अधिक बच्चे हर रोज स्कूलों में जाने के लिए मिजोरम में प्रवेश करने के लिए सीमा पार करते हैं.
म्यांमार की एक महिला ने कहा कि देश में अशांति के कारण स्कूलों को बंद कर दिया गया है जिससे बच्चों को खतरा है. उसने कहा कि वह नहीं चाहती कि अशांति के कारण उसकी बेटी पढ़ाई से वंचित रहे. महिला ने कहा, "मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बेटी अपनी पढ़ाई से चूके, मैंने उसे जोखावथर के सेंट जोसेफ स्कूल में भर्ती कराया."
मिजोरम पुलिस ने बच्चों को राज्य में प्रवेश की अनुमति दे दी है. वे सीमा चौकियों की निगरानी करते हैं और सीमा पर लोहे के गेट को सुबह 7 से 9 बजे तक खुला रखते हैं क्योंकि म्यांमार के ख्वामावी और आसपास के अन्य क्षेत्रों के छात्र स्कूलों में जाने के लिए राज्य में प्रवेश करते हैं. यात्रा में करीब आधे घंटे का समय लगता है.
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि कुछ दिनों में स्कूलों में जाने के लिए सीमा पार करने वाले छात्रों की संख्या 500 को पार कर जाती है. ये छात्र जोखावथर के नौ सरकारी और निजी स्कूलों में नामांकित हैं. वे न केवल भारतीय छात्रों के साथ, बल्कि उन लोगों के साथ भी कक्षाएं साझा करते हैं जो अपने माता-पिता के साथ म्यांमार की जनता के उत्पीड़न से भाग गए हैं.
2021 में, जब केंद्र ने मिजोरम सरकार से म्यांमार के अप्रवासियों के प्रवाह को रोकने के लिए कहा, तो राज्य ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर मानवीय संकट से आंखें मूंदने और म्यांमार के चिन लोगों और मिज़ोरम के मिज़ो के बीच गहरे संबंधों को समझने का आग्रह किया.
मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने मार्च 2021 में अशांति शुरू होने और शरणार्थियों के मिजोरम में प्रवेश शुरू करने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा, "मैं समझता हूं कि कुछ विदेश नीति के मुद्दे हैं जहां भारत को सावधानी से आगे बढ़ने की जरूरत है. हालांकि, हम इस मानवीय संकट को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. मिजोरम सिर्फ उनके कष्टों के प्रति उदासीन नहीं रह सकता. हम अपने पीछे घट रहे इस मानवीय संकट से आंखें नहीं मूंद सकते."
उनका पत्र एक पत्र के जवाब में था जिसमें केंद्र ने मिजोरम राज्य को शरणार्थियों को स्वीकार नहीं करने के लिए कहा था. भारत 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है. इसमें राष्ट्रीय शरणार्थी सुरक्षा ढांचा नहीं है लेकिन कई मामलों में म्यांमार और अफगानिस्तान के शरणार्थियों को सहायता प्रदान की है.