इस वर्ष भारत अपना 71वां स्वतंत्रता दिवस माना रहा है। आज़ादी के 70 साल बाद भी भारत में संविधान की धारा 370 और धारा 35A एक विवादित विषय है। विभिन्न राजनीतिक दलों का इस मामले पर रवैया अलग-अलग है।
आख़िर क्यूं आज तक यह विवादों का विषय बना हुआ है? चलिए जानते हैं इतिहास के झरोखे से-
- 1947 ई. जब देश का विभाजन हुआ तो अंग्रेजों ने सभी रजवाड़ों को स्वतंत्र कर दिया। उस समय जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे।
- इस बात को ध्यान में रखते हुए भारत, जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत भारत और पाकिस्तान दोनो ही जम्मू-कश्मीर पर हमला नहीं कर सकते थे।
- भारत ने समझौते का मान रखते हुए अपना वादा निभाया लेकिन पाकिस्तान ने चुपके-चुपके कबीली मुसलमानों को जम्मू कश्मीर पर कब्जा करने के लिए भेज दिया।
- जब पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला किया तो राजा हरि सिंह ने भारत से अपनी सुरक्षा के लिए मदद मांगी और भारत में विलय होने की पेशकश की।
- कश्मीर मामले को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने अपने हाथों में ले लिया और पटेल को इससे अलग रखा। उस वक़्त नेहरु और अब्दुल्ला के बीच बातचीत हुई और जम्मू-कश्मीर की समस्या शुरू हो गयी।
- इन हालातों को देखते हुए संघीय संविधान सभा में गोपालस्वामी आयंगर ने धारा 306-ए का प्रारूप प्रस्तुत किया था, जो बाद में धारा 370 बन गई।
- 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति दी गई।
- नवंबर, 1956 में राज्य के संविधान का कार्य पूरा हुआ। 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।
- जम्मू-कश्मीर में पहली अंतरिम सरकार बनाने वाले नेशनल कॉफ्रेंस के नेता शेख़ अब्दुल्ला ने भारतीय संविधान सभा से बाहर रहने की पेशकश की थी।
क्या है धारा 35A? और क्या ये असंवैधानिक है?
1947 में हुए बंटवारे के दौरान लाखों लोग शरणार्थी बनकर भारत आए थे। ये लोग देश के कई हिस्सों में बसे और आज उन्हीं का एक हिस्सा बन चुके हैं।
दिल्ली, मुंबई, सूरत या जहां कहीं भी ये लोग बसे, आज वहीं के स्थायी निवासी कहलाने लगे हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीर में स्थिति ऐसी नहीं है। यहां आज भी कई दशक पहले बसे लोगों की चौथी-पांचवी पीढ़ी शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारों से वंचित है।
- 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था। इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया।
- अनुच्छेद 35A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके।
- यही अनुच्छेद परोक्ष रूप से जम्मू और कश्मीर की विधान सभा को, लाखों लोगों को शरणार्थी मानकर हाशिये पर धकेल देने का अधिकार भी दे देता है।
- अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) का जिक्र संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता। हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है।
- भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है। लेकिन 35A कहीं भी नज़र नहीं आता। दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो।
- भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है। 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था।
- भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है। यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है। इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है।
- अनुच्छेद 35A दरअसल अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा है। और अनुच्छेद 370 एक ऐसा विषय है जिससे न्यायालय तक बचने की कोशिश करता है। यही कारण है कि इस पर आज तक स्थिति साफ़ नहीं हो सकी है।
क्यूं है धारा 370 एक विवाद?
भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर पूरा संघ परिवार प्रारंभ से धारा 370 के खिलाफ रहा है। संघ का कहना है की इस धारा को 14 मई 1954 में संसद में बिना किसी प्रेसीडेंशियल बहस के लागू कर दिया गया था। यह भारत के संविधान के साथ धोखा है।
संघ परिवार ने इस धारा को समाप्त करवाने के लिए अभियान छेड़ा था। उनके नारे थे, 'एक देश में दो विधान नहीं', '370 धोखा है' और 'देश बचा लो'।
भाजपा का मुख्य तर्क है कि धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बहुल राज्य बना हुआ है और पूरे देश के साथ समरस नही हो पाया है। भाजपा धारा 370 को संविधान निर्माताओं की गलती मानती है।
वहीं नेशनल कांग्रेस सहित कई अन्य पार्टियां इसके समर्थन में बात करती हैं, उनका मत है कि जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की बुनियाद धारा 370 है जिसे हटाया नहीं जा सकता।
आपको बता दें कि 370 संविधान की अस्थायी, संशोधनीय और विशेषाधिकार वाली धारा है।
जम्मू-कश्मीर के विशेषाधिकार
- धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित क़ानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए।
- इसी विशेष दर्जें के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती, इसी कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बरख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।
- 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कही भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं।
- भारतीय संविधान की धारा 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
धारा 370 की खास बातें
- जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दो नागरिकता होती है- एक जम्मू-कश्मीर की दूसरी भारत की।
- जम्मू-कश्मीर का अपना अलग राष्ट्रध्वज होता है ।
- जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है।उदाहरण के लिये यदि आप जम्मू-कश्मीर में जाकर भारत के तिरंगे का अपमान कर देते हैं तो इसे अपराध नहीं माना जायेगा।
- भारत के उच्चतम न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते।
- भारतीय संविधान की धारा 360 जो वित्तीय आपातकाल से सम्बंधित है, वह धारा 370 के चलते जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
- भारतीय संविधान का भाग 4 में राज्यों के नीति निर्देशक तत्त्वों का प्रावधान है और भाग 4A में नागरिकों के मूल कर्तव्य गिनाये गए हैं, पर दिलचस्प बात यह है कि कोई भी नीति निर्देशक तत्व या कोई भी मूल कर्तव्य जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होता
- धारा 370 के चलते कश्मीर में RTI (Right to Information) लागू नहीं है । RTE (Right to Education) लागू नहीं है । CAG लागू नहीं होता । भारत का कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता।
- कश्मीर में महिलाओं पर शरियत कानून लागू है।
- कश्मीर में पंचायत का कोई प्रावधान नहीं है।
- कश्मीर में अल्पसंख्यको <हिन्दू- सिख> को 16% आरक्षण नहीं मिलता ।
- जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी।
- इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी।
Source : Vineet Kumar