आंध्र प्रदेश में बड़ी उम्मीदों के साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दक्षिणी राज्य तिरुपति से अपनी राजनीतिक विजय शुरू करना चाहती है. भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और सह-प्रभारी सुनील देवधर ने दावा किया, 'आंध्र प्रदेश में भगवा पार्टी का पहला पड़ाव तिरुपति है. तेलंगाना में शानदार प्रदर्शन के बाद, अब तिरुपति के लोग भाजपा के प्रति अपना झुकाव दिखा रहे हैं.'
सत्तारूढ़ युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के मौजूदा सांसद बल्ली दुर्गा प्रसाद का हाल ही में कोरोना संक्रमण के कारण निधन हो गया जिससे राष्ट्रीय पार्टी को लंबी दौड़ के लिए तेलुगू राजनीतिक गलियारे को आजमाने का मौका मिला है. मंदिर शहर की सीट ने खुद को भाजपा के लिए एक अप्रत्याशित अवसर के रूप में प्रस्तुत किया, क्योंकि तिरुपति में ससंदीय सीट पर जीतना एक बड़ी बात होगी.
पार्टी ने शनिवार को तिरुपति में अपनी राज्य कार्यकारिणी की बैठक की, जिसकी शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन और वंदेमातरम से हुई. पार्टी में कई नियुक्तियों के बाद यह पार्टी की पहली राज्य कार्यकारी बैठक थी. आंध्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सोमू वीरराजू ने कहा, 'यह राज्य की पहली कार्यकारी बैठक थी. हमने राज्य की वर्तमान और भविष्य की राजनीति जैसे कई मुद्दों पर विचार-विमर्श किया.'
बैठक के बाद, भाजपा ने तिरुपति में एक रैली की, जिसमें वीरराजू के अनुसार भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ-साथ तिरुपति के आम लोग भी शामिल हुए. उन्होंने कहा, 'भ्रष्ट परिवार दलों को रौंदने का उत्सह दिखाने के लिए तिरुपति के लोगों को मेरा विशेष आभार.' यहां पारिवारिक दलों से मतलब वाईएसआरसीपी और तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) से है. 1980 के दशक की शुरुआत से, आंध्र प्रदेश में मुख्य रूप से दो दलों कांग्रेस और तेदेपा की सरकार रही है.
तेदेपा के साथ-साथ कांग्रेस के अपना आधार खो देने के बाद वाईएसआरसीपी योग्य राजनीतिक ताकतों में से एक के रूप में उभरी है. अब यह वह जगह है जहां भाजपा आंध्र प्रदेश में भविष्य में बड़े पैमाने पर अपना छाप छोड़ने की ख्वाहिशमंद है. अगर हम मानते हैं कि वाईएसआरसीपी ने कांग्रेस का स्थान ले लिया है और तेदेपा का मूल आधार बरकरार है, तो यह देखा जाना बाकी है कि भाजपा कहां तक जाना चाहती है, क्योंकि परंपरागत रूप से दो-दलीय राज्य में ज्यादा राजनीतिक अवसर उपलब्ध नहीं हैं, हालांकि वामपंथी दल और अन्य मौजूद हैं, मगर इनका अधिक प्रभाव नहीं है.
हालांकि, भाजपा को अभिनेता-राजनेता पवन कल्याण की स्थानीय सहयोगी पार्टी जनसेना से बहुत उम्मीदें हैं, जिसका राजनीतिक गलियारे में बहुत अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है. एक जुझारू अभियान के बाद जिसमें कल्याण ने खुद को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया, कल्याण ने 2019 के चुनावों में उन दोनों सीटों को खो दिया जिससे वह लड़े.
कुछ राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा तिरुपति में कल्याण की छवि से लाभान्वित हो सकती है, क्योंकि जाति का फैक्टर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिस बारे में कई लोगों का मानना है कि इसने 2009 के चुनावों में चिरंजीवी को जीत में मदद की थी हालांकि वह अपने गृह जिले पलाकोलू में हार गए, जहां से उनके ससुराल वाले और अधिकांश रिश्तेदार हैं.
राष्ट्रीय पार्टी के पास अभी भी अपनी रणनीति पर विचार करने का समय है, क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा अभी तिरुपति उपचुनाव शेड्यूल निर्धारित करना बाकी है. ईसाई आबादी का एक बड़ा हिस्सा और मुस्लिम मतदाता आधार भी है, जिसे अभी तक भाजपा द्वारा लुभाया नहीं गया है.
Source : News Nation Bureau