बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट का हिस्सा थी. इस गठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी शामिल रहीं. एआईएमआईएम ने सीमांचल इलाके में शानदार प्रदर्शन करते हुए न सिर्फ पांच सीटें जीतीं, बल्कि महागठबंधन के वोटों में सेंध लगाने में भी सफलता हासिल की. इस ऐतिहासिक जीत के बाद ओवैसी ने अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर करने में देर नहीं लगाई और पश्चिम बंगाल समेत उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़ने का इरादा जाहिर कर दिया. हालांकि एक खांटी राजनेता की तरह वह यह कहना भी नहीं भूले कि किस राज्य में किसके साथ गठबंधन करेंगे, इसका फैसला भविष्य में लिया जाएगा. हालांकि चुनावी पंडित बताते हैं कि वह सूबे के छोटे दलों से हाथ मिला राष्ट्रीय पार्टियों का खेल बिगाड़ेंगे. एआईएमआईएम के आगाज से बंगाल में जहां ममता बनर्जी संभावित खतरे को लेकर चिंतित हो गई हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश में ओवैसी के आगमन को भारतीय जनता पार्टी अपने नजरिये से देख रही है.
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यूपी में 19.3 फीसदी मुस्लिम वोट
अगर आंकड़ों की भाषा में कहें तो उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी 19.3 फीसदी है. अब तक मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस में बंटते रहे हैं. ऐसे में अगर एआईएमआईएम सूबे की राजनीति में दखल देती है, तो इन्हीं वोटों में और बंटवारा होगा. वैसे भी एआईएमआई उत्तर प्रदेश में 2015 से ही बेहद सक्रिय है. उसने 2017 के विधानसभा चुनाव में 38 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे. तब समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम मतदाताओं को ओवैसी से सावधान रहने की चेतावनी दी थी. हालांकि समाजवादी पार्टी के 57 प्रत्याशियों में से सिर्फ सात को ही जीत हासिल हुई थी. 403 में से जिन 38 सीटों पर एआईएमआईएम ने प्रत्याशी खड़े किए थे, उनमें चार पर उसे दूसरा स्थान हासिल हुआ था. तब भी ओवैसी ने कहा था कि आने वाले दिनों में वह यूपी में पार्टी को और मजबूत करेंगे. उन्होंने कहा था कि राज्य के 75 जिलों में से कम-से-कम 40 में पार्टी की मौजूदगी है जिसे बढ़ाया जाएगा.
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49 जिलों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक
ओवैसी की यह गणित आसानी से समझी जा सकती है. 2001 की जनगणना के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 80.61 फीसदी हिंदू जबकि 18.50 फीसदी मुस्लिम आबादी थी. 2011 की जनगणना में हिंदू आबादी घटकर 79.73 फीसदी रह गई, जबकि मुस्लिम आबादी बढ़कर 19.26 फीसदी हो गई. इन आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि राज्य के 70 में से 57 जिलों में हिंदू आबादी घट रही है. यानी अलीगढ़ में 19.85 फीसदी, इलाहाबाद में 13.38 फीसदी, आंबेडकर नगर में 16.75 फीसदी, आजमगढ़ में 15.58 फीसदी, बागपत में 27.98 फीसदी, बहराइच में 33.53 फीसदी, बलरामपुर में 37.51 फीसदी, बाराबंकी में 22.61 फीसदी, बरेली में 34.54 फीसदी, बिजनौर में 43.04 फीसदी, बदायूं 23.26 फीसदी, बुलंदशहर में 22.22 फीसदी, देवरिया में 11.56 फीसदी, फरीदाबाद में 14.80फीसदी, फर्रुखाबाद में 14.69 फीसदी, फतेहपुर में 13.32 फीसदी, फिरोजबाद में 12.60 फीसदी, गौतम बुद्ध नगर में 13.08 फीसदी, गाजियाबाद में 22.53 फीसदी, गोंडा में 19.76 फीसदी, हरदोई में 13.59 फीसदी, कन्नौज में 16.54 फीसदी, कानपुर नगर में 15.73 फीसदी, काशीराम नगर में 14.88 फीसदी, कौशांबी में 13.78 फीसदी, खेड़ी में 20.08 फीसदी, कुशीनगर में 17.40 फीसदी, लखनऊ में 21.46 फीसदी, महाराजगंज में 17.08फीसदी, मउ में 19.43 फीसदी, मेरठ में 34.43 फीसदी, मुरादाबाद में 50.80 फीसदी, मुजफ्फरनगर में 41.1 फीसदी, पीलीभीत में 24.11 फीसदी, रायबरेली में 14.10 फीसदी, रामपुर में 50.57 फीसदी, संत कबीर नगर में 23.58 फीसदी, संत रविदास नगर में 12.92 फीसदी, शाहजहांपुर में 17.55 फीसदी, श्रावस्ती में 30.79% फीसदी, सिद्धार्थ नगर में 29.23 फीसदी, सीतापुर में 19.9 फीसदी, सुल्तानपुर में 16.55 फीसदी, वाराणसी में 14.88 फीसदी, अमेठी में 20.06 फीसदी, शामली में 41.77 फीसदी, संभल में 32.88 फीसदी और हापुड़ में 32.39 फीसदी मुसलमान हैं.
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बीजेपी इसलिए मान रही है अच्छा
यदि राज्यों का मुस्लिम समाज कांग्रेस और सपा-बसपा जैसे धर्मनिरपेक्ष छवि वाले क्षेत्रीय दलों के बजाय एआईएमआईएम का ही वोट बैंक बन गया, तो ध्रुवीकरण को गति मिल जायेगी. ऐसे में दो धर्मों का समाज दो सियासी दलों में बंट सकता है. ऐसे हुआ तो भाजपा को बेहद लाभ होगा और जातियों के बिखराव का डर कम हो जायेगा. ओवैसी के यूबी में आगमन से सबसे बड़ा नुकसान समाजवादी पार्टी औऱ कांग्रेस को होगा. कांग्रेस के लिए हालांकि खोने के लिए कुछ नहीं है. हालांकि सपा के लिए जरूर खतरा बन कर उभरेगी एआईएमआईएम. अगर छोटे दलों से गठबंधन कर लिया तो ओवैसी कई सीटों पर समीकरण बदल सकते हैं.