जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वदलीय बैठक शुरू हो चुकी है. प्रधानमंत्री की यह बैठक केंद्र शासित प्रदेश में राजनीतिक विश्वास बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसने 5 अगस्त, 2019 को अपना विशेष दर्जा खो दिया था. धारा 370 खत्म किए जाने के करीब दो साल के बाद केंद्र सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ बातचीत की जा रही है. बैठक में 8 राजनीतिक दलों के 14 नेताओं के साथ चर्चा हो रही है. बैठक का एजेंडा क्या है, यह अभी तक पता नहीं चल सका है, मगर एक बात स्पष्ट है कि जम्मू कश्मीर के अंदर भविष्य में कुछ बड़ा ही होगा, जिस पर मंथन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हो रहा है. मजबूत कयास राज्य में चुनावों को लेकर हैं तो कई और भी अटकलें लगाई जा रही हैं. जिसमें चर्चाएं यह भी हैं जम्मू कश्मीर में क्या दिल्ली या पुडुचेरी विधानसभा का फॉर्मूला लिया जा सकता है. हालांकि दिल्ली या पुडुचेरी विधानसभा का फॉर्मूला किया है, जिसे जम्मू-कश्मीर में लाया जा सकता है, उससे समझना जरूरी है.
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पुडुचेरी की तर्ज पर होगा जम्मू कश्मीर का शासन व्यवस्था ?
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 (J&K Reorganisation Bill 2019) में साफ लिखा था कि जम्मू कश्मीर की अपनी एक विधानसभा होगी यानी जम्मू कश्मीर में चुनाव भी होंगे और राज्य का सीएम भी होगा. राज्य में कुल 107 विधानसभा सीटें होंगी, जिनमें 24 पीओके के लिए खाली रहेंगे. 370 ख़त्म होने से पहले राज्य में 111 विधायक थे, 87 चुने हुए, 2 नॉमिनेटेड और 24 पीओके के लिए वैकेंट. अगर विधानसभा में महिला सदस्य कम हों तो एलजी को ये अधिकार है कि वो दो महिला सदस्यों को नॉमिनेट कर सकता है. जम्मू कश्मीर से राज्य सभा के लिए 4 सदस्य चुने जा सकेंगे. जम्मू कश्मीर से लोकसभा के लिए 4 सदस्य चुने जा सकेंगे. पुडुचेरी पर लागू होने वाला Article 239A जम्मू कश्मीर में भी लागू होगा.
जम्मू कश्मीर में राज्यपाल की जगह एलजी होगा. कानून व्यवस्था का जिम्मा एलजी के पास होगा. विधानसभा क़ानून बना सकेगी. विधानसभा से पास बिल को एलजी की मंजूरी लेनी होगी. एलजी चाहे तो किसी भी बिल को रोक सकते हैं या राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज सकते हैं. अगर कोई कानून केंद्र से टकराता है तो विधानसभा से पारित क़ानून रद्द माना जाएगा. चुना हुआ सीएम अपने मंत्रालय में विधानसभा की कुल सदस्य का 10 फीसदी मंत्री बना सकता है. केंद्र के पास आर्टिकल 360 के तहत फिनांशियल इमरजेंसी घोषित करने का अधिकार होगा.
पुडुचेरी में क्या है शासन व्यवस्था
यूटी होने के बावजूद पुडुचेरी में अपनी विधानसभा है. 33 विधानसभा सीटें हैं , जिनमें 30 पर चुनाव होते हैं. 3 सीटों पर केंद्र सरकार नामित सदस्य चुने जाते हैं. पुडुचेरी विधान सभा में सीएम का चुनाव होता है. केंद्र की तरफ से एलजी राज्य का नेतृत्व करते हैं. पुलिस और कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी एलजी की होती है. विधान सभा कानून बना सकता है. अगर कोई कानून केंद्र से टकराता है तो विधानसभा से पारित कानून रद्द माना जाएगा.
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जम्मू कश्मीर को दिल्ली की तर्ज पर राज्य का दर्जा दिया जा सकता है
दिल्ली की अपनी विधानसभा है. सभी 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव होते हैं. सीएम और एलजी दोनों है. एलजी केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. एलजी के पास पुडुचेरी के मुक़ाबले ज्यादा पावर है. कानून व्यवस्था एलजी के जिम्मे है. कई मामलों में जमीन का जिम्मा एलजी के पास है. डीडीए की जमीन पर सीएम फैसला नहीं ले सकते. मोदी सरकार दिल्ली के एलजी को ज़्यादा अधिकार देने वाला बिल पास करा चुकी है. इस बिल के बाद दिल्ली की चुनी हुई सरकार के मुकाबले एलजी के पास पहले से ज्यादा अधिकार हैं. हर फैसले के लिए दिल्ली सरकार को एलजी की राय लेना अनिवार्य है.
अलग जम्मू राज्य की मांग
शिवसेना और डोगरा फ्रंट जम्मू को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रही है. जम्मू की शिकायत ये है कि कश्मीर का विधानसभा में बहुमत है लिहाजा उनकी नहीं सुनी जाती. कश्मीरी पंडित भी जम्मू को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं.
जम्मू को ज्यादा ताकत देने की तैयारी
परिसीमन के जरिये जम्मू को ज़्यादा ताकत देने की तैयारी हो सकती है. 2011 की जनगणना के अनुसार विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण होगा. ऐसा करने से विधानसभा में कम से कम 7 और सीट बढ़ सकती हैं. 7 सीटें बढ़ने से विधानसभा की कुल सीट 90 हो जाएगी. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 24 खाली सीटें पीओके के लिए रिजर्व है. पीओके की रिजर्व 24 सीटों में से एक तिहाई सीटें भरने की मांग है. पीओके की 8 सीटों में वोट वहीं देंगे जो पीओके से विस्थापित होकर जम्मू इलाके में आए हैं. जम्मू क्षेत्र की मौजूदा सीट 37 हैं. सीटों में से POK के 8 सीट जुड़ जाए तो संख्या 45 हो जा सकती है. परिसीमन कोटे से 7 सीटें जुड़ने के बाद कुछ सीटें भी जम्मू क्षेत्र में जुड़ेंगे.
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घट सकती है कश्मीर की ताकत
अगर ऐसा हुआ तो जम्मू क्षेत्र की सीटें कश्मीर क्षेत्र की 46 सीटों से ज़्यादा हो जाएंगी. कश्मीर की 46 सीटों में से 3 कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित करने की मांग है. कश्मीर की 3 आरक्षित कश्मीरी पंडित की सीटों पर कश्मीरी पंडित ही वोट डाल सकेंगे. अगर ऐसा हुआ तो विधानसभा में कश्मीर की राजनीतिक ताकत घटेगी. अनुच्छेद 370 हटाने के बाद आरक्षित सीटों में अनुसूचित जनजाति का कोटा भी तय होगा. एक अनुमान के मुताबिक एससी-एसटी के सीटों की संख्या 5 से 6 तक हो सकती है.
370 और 35A खत्म होने से पहले विधानसभा सीटों की स्थिति
कश्मीर - 46 सीटें
जम्मू - 37 सीटें
लद्दाख - 4 सीटें
HIGHLIGHTS
- जम्मू कश्मीर पर टिकीं देश की नजरें
- कश्मीर के भविष्य पर दिल्ली में बैठक
- पीएम मोदी संग 14 नेताओं का मंथन