2020 कई बातों के लिए याद रखा जाएगा. एक तो साल की शुरुआत ही वैश्विक परिदृश्य पर कोरोना संक्रमण (Corona Epidemic) की दस्तक से हुई. दूसरे साल का अंत अमेरिका में नए राष्ट्रपति (American Presidential Elections 2020) के चुनाव से होगा. इस वजह से फिलवक्त पूरी दुनिया की निगाहें अमेरिका पर लगी हैं. एक बड़ी वजह यही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने वुहान से कोरोना संक्रमण के लिए चीन को जिम्मेदार मानकर तमाम प्रतिबंध लगाए. इस बीच भारत से चीन की तनातनी में भी ट्रंप मोदी सरकार (Modi Government) के साथ आ खड़े हुए हैं. इसके विपरीत डोनाल्ड ट्रंप के प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन (Joe Biden) ने कुछ ऐसे बयान दिए, जिन्हें भारत के खिलाफ कहा जा सकता है. एक तरह से देखें तो विश्व के सबसे ताकतवार लोकतंत्र की विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ संबंधों ने फिलवक्त वैश्विक समीकरणों को प्रभावित कर रखा है.
1804 से शुरू हुआ चुनाव
सही भी है अगर भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का गौरव प्राप्त है, तो अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र है. करीब 200 साल पहले 1804 में यहां चुनाव की शुरुआत हुई. पहले उपराष्ट्रपति का चुनाव भी इलेक्टोरल कॉलेज ही करता था, लेकिन तब अलग-अलग मत नहीं डाले जाते थे. उस समय जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलते थे, वह राष्ट्रपति बनता था और दूसरे नंबर पर रहने वाला व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होता था. यहां हर चार साल में चुनाव होते हैं.
अमेरिकी संसद
भारत की तरह अमेरिकी संसद में भी दो सदन होते हैं. पहला हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव जिसे प्रतिनिधि सभा भी कहा जाता है. इसके सदस्यों की संख्या 435 है. दूसरे सदन सीनेट में 100 सदस्य होते हैं. इसके अतिरिक्त अमेरिका के 51वें राज्य कोलंबिया से तीन सदस्य आते हैं. इस तरह संसद में कुल 538 सदस्य होते हैं.
यह भी पढ़ेंः अमेरिका में अब तक 5 करोड़ 87 लाख ने किया मतदान, परिणाम में देरी संभव
दो दलीय व्यवस्था
अमेरिकी लोकतंत्र में दो दलीय राजनीतिक व्यवस्था है, इसलिए त्रिशंकु संसद का खतरा भी नहीं होता. रिपब्लिकन और डेमोक्रेट यहां दो प्रमुख पार्टियां हैं. अन्य दलों का यहां कोई वजूद नहीं है. राष्ट्रपति बनने की आकांक्षा रखने वाले उम्मीदवार सबसे पहले एक समिति बनाते हैं, जो चंदा इकट्ठा करने और संबंधित नेता के प्रति जनता का रुख भांपने का काम करती है. कई बार यह प्रक्रिया चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाती है.
योग्यता
अमेरिकी संविधान के आर्टिकल 2 के सेक्शन 1 में वहां के राष्ट्रपति चुनाव की जानकारी विस्तृत रूप से दी गई है. इसमें तीन प्रमुख बातों का ध्यान दिया गया है जिसके तहत अमेरिकी चुनाव की नींव पड़ती है. अगर कोई व्यक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति बनना चाहता है तो तीन शर्तों को पूरा करना जरूरी है. उस व्यक्ति का जन्म अमेरिका में हुआ हो और वह 14 साल से देश में रह रहा हो. उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए. साथ ही राष्ट्रपति को अंग्रेजी भाषा आना भी आवश्यक है. राष्ट्रपति का चुनाव 538 इलेक्टर्स करते हैं. राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल मत हासिल करना आवश्यक होता है. अमेरिकी कानून के मुताबिक राष्ट्रपति पद के दो कार्यकाल के बाद कोई भी व्यक्ति तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकता.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया
दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव की प्रक्रिया भारत के मुकाबले काफी पेचीदा और लंबी होती है. अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद 2 में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया का उल्लेख है. संविधान में ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ के जरिए राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था है. हालांकि अमेरिकी संविधान निर्माताओं का एक वर्ग इस पक्ष में था कि संसद को राष्ट्रपति चुनने का अधिकार मिले, जबकि दूसरा धड़ा सीधी वोटिंग के जरिए चुनाव के हक में था. ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ को इन दोनों धड़ों की अपेक्षाओं के बीच की एक कड़ी माना गया.
यह भी पढ़ेंः अमेरिका ने भी भारत को शक्तिशाली माना, साथ काम करने को उत्सुक
पहले पहल पार्टी में चुनाव
अमेरिका में दो पार्टी का सिस्टम है पहली रिपब्लिकन और दूसरी डेमोक्रेट्स. दोनों पार्टियों को अपनी-अपनी तरफ से किसी एक व्यक्ति को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना होता है जिसे जनता वोट देती है. लेकिन इस उम्मीदवार को चुनने से पहले भी एक लंबी प्रक्रिया है क्योंकि राष्ट्रपति तो हर कोई बनना चाहता है लेकिन कोई उम्मीदवार कैसे बनेगा इसका चयन भी जनता या पार्टी के समर्थक करते हैं.
राष्ट्रपति चुनाव के पहले राजनीतिक दल अपने स्तर पर दल का प्रतिनिधि चुनते हैं. प्राथमिक चुनाव में चुने गए पार्टी के प्रतिनिधि दूसरे दौर में राजनीतिक दल का हिस्सा बनते हैं और अपनी पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं. यही वजह है कि कुछ राज्यों में जनता ‘प्राइमरी’ दौर में मतदान का इस्तेमाल न करके ‘कॉकस’ के जरिए पार्टी प्रतिनिधि का चुनाव करती है.
फिर आता है कॉकस और प्राइमरी का दौर
पार्टी का उम्मीदवार तय करने के लिए दो तरह से चुनाव किए जाते हैं पहला प्राइमरी और दूसरा कॉकसस. इसमें पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए खड़ा हो सकता है, उसे सिर्फ अपने समर्थकों का साथ चाहिए होता है. कॉकस में पार्टी के सदस्य जमा होते हैं. स्कूलों, घरों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर उम्मीदवार के नाम पर चर्चा की जाती है. वहां मौजूद लोग हाथ उठाकर उम्मीदवार का चयन करते हैं. वहीं प्राइमरी में मतपत्र के जरिए मतदान होता है. हर राज्य के नियमों के हिसाब से अलग-अलग तरह से प्राइमरी होती है और कॉकस प्रक्रिया भी हर राज्य के कानून के हिसाब से अलग-अलग होती है.
प्राइमरी और कॉकस का खेल
रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स, दोनों पार्टियों की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के लिए एक संख्या की जरूरत होती है वह संख्या जो प्राइमरी और कॉकसस के चुनावों में जरूरी होती है. उदाहरण के तौर पर अगर एक पार्टी की तरफ से 10 लोग राष्ट्रपति पद की रेस में है तो उन्हें हर राज्य में होने वाले प्राइमरी या कॉकसस चुनाव में सबसे अधिक डेलिगेट्स का समर्थन हासिल करना होगा, अंत में इन्हीं डेलिगेट्स की संख्या के आधार पर नेशनल कन्वेंशन की ओर बढ़ा जाता है.
यह भी पढ़ेंः चीन से तनाव के बीच अमेरिकी विदेश मंत्री रक्षा मंत्री आज आ रहे भारत
यहां से शुरू होती है चुनाव प्रक्रिया
राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया आयोवा और न्यू हैंपशायर से शुरू होती है. दोनों ही छोटे राज्य हैं मगर यहां की आबादी में 94 प्रतिशत लोग गोरे हैं, जबकि पूरे अमेरिका में गोरी आबादी 77 फीसदी है. यहां सबसे पहले कॉकस या प्राइमरी होता है. इन दो राज्यों में मिली जीत आगे की चुनावी मुहिम पर खासा असर डालती है. हालांकि यहां की जीत का अर्थ यह नहीं होता कि प्रत्याशी को पार्टी की उम्मीदवारी मिल ही जाएगी, लेकिन आयोवा और न्यू हैंपशायर की जीत मीडिया कवरेज दिलाने में जरूर मददगार होती है.
किस राज्य के पास कितनी ताकत?
अमेरिका भी भारत की तरह कई राज्यों का एक देश है. हर राज्य के पास सीटों की अपनी एक ताकत है जो प्राइमरी और बाद में फाइनल चुनाव में अपना किरदार निभाती है. कुछ राज्य ऐसे हैं जो अकेले दम पर पूरा चुनाव ही बदल सकते हैं जैसे कि भारत में उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के लिहाज से सबसे अहम राज्य है. प्राइमरी चुनाव के हिसाब से अमेरिका में सबसे ताकतवर राज्य कैलिफोर्निया है जिसके पास 415 डेलीगेट्स है, इसके बाद टेक्सस 228 और फिर नॉर्थ कैरोलिना 110 के आंकड़े के साथ आता है.
चुनाव का दिन
अमेरिका में चुनाव के लिए दिन और महीना बिलकुल तय होता है. यहां चुनावी साल के नवंबर महीने में पड़ने वाले पहले सोमवार के बाद पड़ने वाले पहले मंगलवार को मतदान होता है. हालांकि यहां 60 दिन पहले वोट डालने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इस अवधि में अमेरिका से बाहर रहने वाला व्यक्ति भी ऑनलाइन वोट डाल सकता है.
यह भी पढ़ेंः एक मंदिर ऐसा भी जहां दशहरा पर रावण की होती है पूजा, दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
20 जनवरी को होती है शपथ
2020 में डेमोक्रेट्स के कुल डेलिगेट्स की संख्या 3979 है और जीतने के लिए 1991 की जरूरत है, जबकि रिपब्लिकन के कुल डेलिगेट्स की संख्या 2550 है और उम्मीदवार बनने के लिए 1276 की जरूरत है. राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 से अधिक इलेक्टर्स के समर्थन की जरूरत होती है. जिसके पास 270 से अधिक का आंकड़ा होता है वह व्यक्ति 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेता है.
इस तरह बनता है मंत्रिमंडल
अमेरिका मंत्रिमंडल बनाने की प्रक्रिया भारत से बिलकुल ही भिन्न है. यहां मंत्री बनने वाले व्यक्ति के लिए जरूरी नहीं कि वह संसद का सदस्य हो, ना ही उसके लिए राजनीतिक दल का सदस्य होना जरूरी है. यदि राष्ट्रपति को लगता है तो वह विरोधी पार्टी के सदस्य अथवा किसी विषय विशेषज्ञ को भो मंत्री बना सकता है।.
Source : News Nation Bureau