केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का 69वां दिन भी ढल चुका है. सरकार से कुछ लेकर लौटने की आस के साथ आए किसान अब भी खाली हाथ हैं और आगे का किसान आंदोलन राजनीति के दलदल में आकर फंस गया है. किसानों के मंच पर अब सियासत का रंग चढ़ चुका है. सरकार के खिलाफ नारों में 'जय किसान' के साथ राजनीतिक धुरंधरों की जय जयकार हो चली है. क्योंकि सभी की निगाह उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनावों पर लगी है. विपक्षी दल समर्थन देकर किसान मंच पर कब्जा कर चुके हैं.
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पिछले 2 महीने के आंदोलन में नाम मात्र ही सिमटा गाजीपुर बॉर्डर 26 जनवरी के बाद से सियासत का अखाड़ा बन चुका है. जहां किसान भले ही न पहुंच रहे हों, मगर वोट के तराजू में किसानों को तौलकर राजनीतिक रोटियां सेकने वालों की लंबी लाइन लगी है. किसानों के मंच पर अन्नदाता की जगह अब सियासत का बोलबाला है. दिल्ली से महाराष्ट्र तक सभी किसान मंच आ चढ़े हैं. जिसकी तस्वीर हर दिन दिखाई पड़ रही है. गाहे बगाहे नेताओं के मुख से इसका जिक्र भी अब होने लगा है. मंगलवार को किसानों के समर्थन देने पहुंचे राष्ट्रीय लोकदल के नेता कुंवर नरेंद्र सिंह ने भी इस पर बात रख दी है.
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मथुरा संसदीय क्षेत्र से बीजेपी की हेमा मालिनी के सामने चुनाव लड़ चुके राष्ट्रीय लोकदल के नेता कुंवर नरेंद्र सिंह गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचे, लेकिन जो बयान उन्होंने दिया उसने इस मंच का खुलासा करके रख दिया है. कुंवर नरेंद्र सिंह ने कहा है कि मंच पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है. सभी पार्टियों के लोग यहां पहुंच रहे हैं. उसकी वजह भाजपा है, लेकिन कम से कम नरेंद्र सिंह ने इस बात को माना कि अब किसान आंदोलन का यह मंच सिर्फ किसानों का ही नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक पार्टियां भी इस पर कब्जा कर चुकी हैं.
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यहां राजनीतिक दलों को अन्नदाता की बेबसी से कहीं अधिक उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए अपनी वोट दिख रही है. और इससे भी ज्यादा लोकदल जैसे दलों को अपनी खोई जमीन नजर आने लगी है. ऐसे में किसान आंदोलन किसानों का न रहकर राजनीतिक हो चला है.. हालांकि समझने वाली बात यह भी है कि इसी को तो भारतीय जनता पार्टी बीते हफ्तों से चिल्लाती आ रही है, मगर अब तक देश का नागरिक बीजेपी की बचकानी बातें ही समझता रहा. बहरहाल, अब किसान मंच से भी ऐलान हो चुका है. अब यह आंदोलन राजनीतिक हो चला है.