'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' नारे के बावजूद स्कूलों में बढ़ रही है छात्राओं की ड्रॉप आउट दर

समाज में महिलाओं की स्थिति में धीरे धीरे ही सही, पर सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है। यह परिवर्तन शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के आंकड़ों में दिखाई देता है, लेकिन अभी भी बहुत सी चुनौतियाँ हैं जिनका हमें जवाब देना है।

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'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' नारे के बावजूद स्कूलों में बढ़ रही है छात्राओं की ड्रॉप आउट दर

'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' बस एक नारा, छात्राओं के ड्रॉप आउट दर में वृद्धि

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समाज में महिलाओं की स्थिति में धीरे धीरे ही सही, पर सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है। यह परिवर्तन शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के आंकड़ों में दिखाई देता है, लेकिन अभी भी बहुत सी चुनौतियाँ हैं जिनका हमें जवाब देना है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हाल ही में जारी रिपोर्ट में महिलाओं की स्थिति को लेकर कुछ खुशखबरी हैं, और कुछ चिंताएं भी। जहां एक ओर प्राथमिक शिक्षा में भागीदारी को लेकर छात्र-छात्राओं का दाखिला बढ़ा है वहीं उच्च शिक्षा में लगातार छात्राओं के स्कूल छोड़ने सम्बन्धी मामलों से निपटना भी एक बड़ी चुनौती है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। एक दशक पहले हुए सर्वेक्षण में शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी 55.1 प्रतिशत थी जो अब बढ़ कर 68.4 तक पहुंच गयी है। यानी इस क्षेत्र में 13 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गयी है।

वहीं सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना भी यहां काम नहीं कर पा रही है, क्योंकि स्कूलों में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के बीच पढाई छोड़ने की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है।

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मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2014-15 में राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिक शिक्षा के दौरान पढाई छोड़ने वाली छात्राओं की संख्या 4.34 फीसदी थी और माध्यमिक स्तर पर 17.86 फीसदी थी।

बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम का अधिकार होने के बावजूद प्राथमिक शिक्षा के बाद लड़कियों में ड्रॉप आउट की संख्या लगातार बढ़ती जाती है। उच्चतर माध्यमिक स्तर पर लड़कियों का नेट नामांकन अनुपात प्राथमिक रूप से 88.7% से घटकर 51.93% और निराशाजनक 32.6% हो गया। आँकड़ों के अनुसार लगभग हर पांच में से एक लड़की ने कक्षा 8 के बाद स्कूल छोड़ दिया है।

लड़कियों में बढ़ती ड्रॉप आउट संख्या के कई कारण हैं, जैसे बाल विवाह, परिवारों का पलायन, स्कूलों में बुनियादी ढांचे की कमी, पीने के पानी समस्या और शौचालय के लिए उचित सुविधाओं का उपलब्ध ना होना है। गरीबी, स्कूलों की अनुपलब्धता और चीजों का पहुंच में न होना एक बड़ी वजह है जो छात्राओं को स्कूल छोड़ने पर मजबूर करता है।

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माध्यमिक शिक्षा में ड्रॉप आउट की संख्या बढ़ने का एक और कारण है बाल मज़दूरी, इस दौरान बच्चों की उम्र 10-11 के बीच होती है जो बाल श्रम के लिए सबसे उपयुक्त वक्त होता है।

हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, एमएचआरडी ने आधार नंबर द्वारा ड्रॉप-आउट होने वाले विद्यार्थियों पर नजर रखने की एक नई प्रणाली शुरू की है, ताकि बच्चे को स्कूल में वापस लाने के लिए शीघ्र कदम उठाया जा सके। डाटा को राष्ट्रीय नियोजन शिक्षा योजना और प्रशासन (एनयूईएपीए) द्वारा मेनटेन किया जाएगा।

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Source : Vineet Kumar

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