भजन सोपोरी: टूट गयी जम्मू-कश्मीर और शेष भारत के बीच की सांस्कृतिक कड़ी 

भजन सोपोरी 74 साल के थे और बीमारी से जूझ रहे थे. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत (संतूर) में उनके योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया था.

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Pradeep Singh
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भजन सोपोरी( Photo Credit : News Nation)

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प्रसिद्ध संतूर वादक पंडित भजन सोपोरी  (Pandit Bhajan Sopori) का आज यानि बृहस्पतिवार को गुरुग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया. भजन सोपोरी 74 साल के थे और बीमारी से जूझ रहे थे. हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत (संतूर) में उनके योगदान के लिए उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया था. पंडित भजन सोपोरी के निधन से देश में शोक का माहौल है. सोशल मीडिया पर लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. पंडित भजन सोपोरी को संतूर के संत और स्ट्रिंग्स के राजा के रूप में माना जाता था.

आज संतूर एक वाद्य यंत्र के रूप में देश विदेश में प्रसिद्ध है. लेकिन संतूर को लोकप्रिय करने का श्रेय भजन सोपोरी को जाता है. लंबे समय तक संतूर को कश्मीर का लोक वाद्य माना जाता है. लेकिन यह सूफी वाद्य है. सूफी गायन में संतूर के अपने ठाठ रहे हैं. सूफी कलाकारों के दल में सितार वादक तो कई हो सकते हैं लेकिन संतूर वादक एक ही होता रहा है और वही दल का नायक भी होता है. संतूर लम्बे समय से कश्मीर में सूफी गायन में बजता रहा है. इसका प्राचीन नाम शततंत्री वीणा रहा है. आज भी कश्मीर में ऐसे चार-पांच सूफी दल हैं. सोपोरी के दादा शंकर पंडित संतूर के संस्कृत में बन्दिशें गाया करते थे. उनके पिता शंभूनाथ सोपोरी भी संतूर कलाकार थे. पिता के ही मार्गदर्शन में उन्होंने संतूर सीखा.  

संतूर को हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अनुकूल करने के लिए संतूर में कई बदलाव किए गए हैं. शंभू नाथ सोपोरी ने 25 गोटे (ब्रिज) के संतूर को 27 ब्रिज का किया और भजन सोपोरी ने इसे 44 ब्रिज का कर दिया. ब्रिज बढ़ाने से संतूर पर तीन सप्तक के स्वर बजाए जा सकते हैं.  

जीवन एवं परिवार

भजन सोपोरी  का जन्म 1948 में  जम्मू-कश्मीर राज्य के श्रीनगर में हुआ था. उनका पूरा नाम भजन लाल सोपोरी है और इनके पिता पंडित शंभू नाथ सोपोरी भी एक संतूर वादी थे. भजन सोपोरी को घर पर ही उनके दादा एससी सोपोरी और पिता एसएन सोपोरी से संतूर की विद्या हासिल हुई. यूं भी कह सकते हैं कि संतूर वादन की शिक्षा उन्हें विरासत में मिली थी. दादा और पिता से इन्हें गायन शैली व वादन शैली में शिक्षा दी गई थी. भजन सोपोरी ने अंग्रेजी साहित्य में मास्टर्स डिग्री हासिल की थी. इसके उपरांत वाशिंगटन विश्वविद्यालय से पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का अध्ययन भी किया. 

2016 में  67 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर, पंडित भजन सोपोरी को जम्मू-कश्मीर स्टेट लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया था. सोपोरी कश्मीर घाटी के सोपोर के रहने वाले हैं और अपने वंश को प्राचीन संतूर विशेषज्ञों से जोड़ते हैं. वह भारतीय शास्त्रीय संगीत के सूफियाना घराने से ताल्लुक रखते हैं. उनके परिवार ने छह पीढ़ियों से अधिक समय से संतूर बजाया है. उनका पहला सार्वजनिक प्रदर्शन प्रयाग संगीत समिति और इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में हुआ था जब वे 10 वर्ष के थे. सोपोरी के बेटे अभय रुस्तम सोपोरी भी संतूर वादक हैं.

सोपोरी ने अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 1953 में पांच साल की उम्र में दिया था. उनके प्रदर्शन को भारत में प्रसारित किया गया है और वहां के सांस्कृतिक संघों और बेल्जियम, मिस्र, इंग्लैंड, जर्मनी, नॉर्वे, सीरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में दर्शकों द्वारा देखा गया है. सोपोरी ने  1990 में ऑल इंडिया रेडियो के साथ काम किया.

पंडित सोपोरी को जम्मू-कश्मीर और शेष भारत के बीच सांस्कृतिक कड़ी के रूप में माना जाता था. सामापा (संगीत और प्रदर्शन कला के लिए सोपोरी अकादमी) नामक एक संगीत अकादमी भी चलाते थे. जो भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है. SaMaPa कैदियों के उपचार के लिए संगीत का उपयोग करने और समाज और कैदियों के बीच भावनात्मक बंधन बनाने के उद्देश्य से, जेल के कैदियों के साथ संगीत को बढ़ावा देने में लगा रहा.  अकादमी ने कई संगीतकारों को प्रशिक्षित किया है और पुराने वाद्ययंत्रों को पुनर्जीवित किया. इसे 2011 में राज्य सरकार का डोगरी पुरस्कार प्रदान किया गया.  भजन सोपोरी ने 2015 में संगीत के क्षेत्र में योगदान के लिए सामापा पुरस्कारों की घोषणा की.

पुरस्कार
भजन सोपोरी को 1992 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2004 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया.2009  में उन्हें बाबा अलाउद्दीन खान पुरस्कार से सम्मानित किया गया. भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान के लिए उन्हें 2011 में एमएन माथुर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.   

Bhajan Sopori cultural link Santoor maestro Pandit Bhajan Sopori passes away Sopore valley of Kashmir
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