बिहार चुनाव के ये 5 मुद्दे तय करेंगे मतदान की दिशा

कोरोना संक्रमण के दौर में होने जा रहे इस सबसे बड़े चुनाव में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) औऱ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार के 15 साल दांव पर होंगे.

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Nihar Saxena
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Bihar Assembly Election

पोस्टर वॉर से मिल रहा बिहार चुनाव का संकेत.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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शुक्रवार को निर्वाचन आयोग (Election Commission) ने बिहार विधानसभा के लिए चरणबद्ध मतदान की तारीखों की घोषणा कर चुनावी समर का बिगुल फूंक दिया है. कोरोना संक्रमण के दौर में होने जा रहे इस सबसे बड़े चुनाव में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) औऱ नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार के 15 साल दांव पर होंगे. इस बड़े दांव के संकेत बिहार की सड़कों पर शुरू हो चुके पोस्टर वॉर (Poster War) से भी मिल रहे हैं. हालांकि अगर आजाद भारत के विधानसभा चुनाव इतिहास पर नजर डालें तो पश्चिम बंगाल (34 साल वाम सरकार) को छोड़ दें तो किसी भी अन्य राज्य में तीन कार्यकाल के बाद चौथी बार सूबे की कमान संभालना निवर्तमान मुख्यमंत्री के लिए खासा मुश्किल होता है. इसे राजनीतिक पंडित इनकम्बेंसी फैक्टर बोलते हैं. इस लिहाज से इतना साफ है कि बिहार में 1 अक्टूबर के साथ अधिसूचना जारी होने से शुरू होने जा रही चुनावी जंग में पांच मुद्दे प्रभावी होने जा रहे हैं.

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बेरोजगारी
हालिया 10-15 साल के दौरान हुए लोकसभा और विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें, तो बेरोजगारी के मुद्दे को शायद ही किसी राजनीतिक दल ने तवज्जों दी हो. ज्यादातर चुनावों में नेताओं के ऊपर निजी हमले, सांप्रदायिक रंग, आरक्षण, विकास आदि की बातें मुद्दे बनते रहे हैं. लंबे समय बाद बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल आरजेडी बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश में है. दरअसल, कोरोना वायरस की वजह से लागू हुए देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से बिहार में करीब 26 लाख युवा लौटे हैं. इन लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट है. इसमें से ज्यादातर बेरोजगार 30 साल के हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की कोशिश में हैं. दावा किया गया है कि आरजेडी सत्ता में आई तो इन बेरोजगारों को रोजगार दिया जाएगा.

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कृषि सुधार बिल
यह संयोग ही है कि जिस दिन केंद्रीय चुनाव आयोग बिहार में चुनाव की तारीख घोषित करता है, उसी दिन देश भर में कृषि बिलों के खिलाफ विपक्ष और किसान संगठनों ने भारत बंद का आयोजन किया. केंद्र सरकार ने संसद में विपक्षी दलों के वॉकआउट के बीच कृषि सुधार बिलों को पास किया है. इसका चुनाव का तात्कालिक मुद्दा बनना तय है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और उनके भाई तेजप्रताप यादव इसके विरोध में शुकर्वार को ट्रैक्टर पर बैठकर जनसैलाब के साथ विरोध प्रदर्शन कर अपनी ताकत दिखा चुके है. कांग्रेस भी इस मुद्दे को जोर शोर से उठा रही है. कृषि सुधार बिल का एनडीए की सहयोगी दल शिरोमणी अकाली दल (शिअद) भी विरोध कर रही है.

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बिहार को विशेष राज्य का दर्जा
पिछले दो चुनावों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करते देखे गए थे, लेकिन बीजेपी के साथ दोबारा गठबंधन होने के बाद उन्होंने इस मुद्दे को भूला दिया है. अब आरजेडी इस मुद्दे का थाम चुकी है. आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव लगातार कह रहे हैं कि वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई को जारी रखेंगे. विशेष राज्य के दर्जा दिलाने के मुद्दे को लेकर नीतीश कुमार दिल्ली और पटना में रैलियां कीं, हस्ताक्षर अभियान चलाया था, लेकिन अब वह इसे भूल चुके हैं.

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कोरोना और बाढ़ राहत
कोरोना काल और बाढ़ के दौरान केंद्र सरकार के सहयोग से बिहार सरकार ने ग्रामीण इलाकों में मुफ्त अनाज बांटा है. इसके अलावा नकद राशि भी खाते में भेजी गई है, जबकि विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि इसमें धांधली हुई है. साथ ही आरजेडी नेता तेजस्वी यादव आरोप लगाते रहे हैं कि बाढ़ राहत के नाम पर सरकार ने कुछ नहीं किया. इतना ही नहीं एनडीए के घटक दल एलजेपी भी कोरोना और बाढ़ राहत में कमी को लेकर नीतीश सरकार पर सवाल उठाती रही है. एनडीए खेमा डबल ईंजन की सरकार को मुद्दा बनाती दिख रही है. हालांकि चुनाव की घोषणा से ठीक पहले पीएम मोदी ने बिहार को कई हजार करोड़ रुपये की योजनाएं दी हैं.

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नीतीश बनाम तेजस्वी
बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा भी बड़ा मुद्दा साबित हो सकता है. एनडीए खेमा का चेहरा सुशासन बाबू कहे जाने वाले नीतीश कुमार हैं, वहीं विपक्ष में तेजस्वी यादव हैं. अनुभव के हिसाब से दोनों चेहरों में बड़ा अंतर है. इसके अलावा नीतीश कुमार की साफ सुथरी छवि है, वहीं तेजस्वी यादव और उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. खुद की परिवार से अलग छवि गढ़ने के लिए तेजस्वी यादव ने चुनाव पोस्टरों से पिता, मां, बहन सभी भी हटा दिया है. एनडीए खेमा इसी को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है. इस बार के विधानसभा चुनाव प्रचार में नेताओं की जुबान पर सुशांत सिंह राजपूत, हरिवंश, रघुवंश प्रसाद जैसे नाम दिखेंगे. एनडीए खेमा इसे जोरशोर से उठा रहा है. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की सीबीआई जांच को एनडीए खेमा अपनी उपलब्धी बता रहा है. वहीं आरजेडी के वरिष्ठ नेता को लेकर तेज प्रताप यादव का एक लोटा पानी वाले बयान को भी एनडीए खेमा जोर शोर से प्रचारित कर रहा है.

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