केंद्र सरकार जन्म प्रमाण पत्र (Birth Certificate) को जीवन के लगभग हर क्षेत्र में एक अनिवार्य दस्तावेज बनाने के लिए एक प्रस्ताव पेश करने जा रही है. विधेयक के मसौदे में जन्म और मृत्यु पंजीकरण (आरबीडी) अधिनियम, 1969 में संशोधन का प्रस्ताव है. इसके तहत शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश, मतदाता सूची (Electoral List) में नाम दर्ज कराने, केंद्र और राज्य सरकार की नौकरियों में नियुक्ति, ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट बनवाने के लिए जन्म प्रमाणपत्र अनिवार्य होगा. तकनीकी तौर पर केंद्रीय रूप से संग्रहीत डेटा वास्तविक समय में अपने आप ही अपडेट हो जाएगा. इसके लिए किसी मानवीय श्रम की जरूरत भी नहीं पड़ेगी. यही नहीं, किसी व्यक्ति के 18 वर्ष के होने पर मतदाता सूची से उसका नाम स्वतः जुड़ जाएगा और मौत पर अपने आप ही डिलीट हो जाएगा. प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों के लिए जरूरी होगा कि वे मृतक के परिजनों समेत स्थानीय रजिस्ट्रार को मृत्यु प्रमाणपत्र (Death Certificate) की एक प्रति उपलब्ध कराएं, जिसमें मौत का कारण भी साफ-साफ दर्ज हो. हालांकि आरबीडी अधिनियम, 1969 के तहत जन्म और मृत्यु का पंजीकरण पहले से जरूरी है, जिसका उल्लंघन एक दंडनीय अपराध है. अब सरकार स्कूलों में प्रवेश और विवाह पंजीकरण (Marriage Registration) जैसी बुनियादी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए पंजीकरण को अनिवार्य बनाकर और सुधार लाना चाहती है.
जन्म प्रमाणपत्र इन कामों के लिए होगा जरूरी
गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित आरबीडी अधिनियम, 1969 में संशोधन करने वाले विधेयक में कहा गया है कि स्थानीय रजिस्ट्रारों द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र का उपयोग संशोधन लागू होने की तारीख या उसके बाद किसी व्यक्ति के जन्म की तारीख और स्थान को साबित करने के लिए किया जाएगा. मसलन शिक्षण संस्थानों में प्रवेश; ड्राइविंग लाइसेंस जारी करना; मतदाता सूची तैयार करना; विवाह का पंजीकरण; केंद्र-राज्य सरकार, स्थानीय निकायों-सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, वैधानिक निकायों, केंद्र और राज्य सरकार के तहत स्वायत्त निकायों में नियुक्ति; नियमों द्वारा निर्धारित पासपोर्ट और अन्य मामलों में इसका इस्तेमाल किया जाएगा. इस संशोधन विधेयक के 7 दिसंबर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है. गौरतलब है कि इस संशोधन विधेयक पर लोगों की प्रतिक्रिया लेने के लिए पिछले साल रखा गया था. इसके जवाब में कई राज्य सरकारों से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं, जिनके अनुरूप संशोधन विधेयक में आवश्यक परिवर्तन किए गए. अब विधि विभाग विधेयक की जांच कर रहा है और फिर इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा. इसके बाद सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश करने की कोशिश करेगी. एक सूत्र के मुताबिक चूंकि आगामी शीतकालीन सत्र में केवल 17 बैठकें होंगी. ऐसे में विधेयक पर चर्चा संसद के अगले सत्र में भी की जा सकती है.
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राष्ट्रीय स्तर पर एकत्र होगा जन्म-मृत्यु का डेटाबेस
गौरतलब है कि जन्म और मृत्यु के अनिवार्य पंजीकरण का पहले से प्रावधान मौजूद है, लेकिन संशोधन विधेयक के अनुरूप कानून बनने के बाद जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्र तमाम उद्देश्यों के लिए प्रस्तुत करना जरूरी होगा. इस डाटाबेस को मतदाता सूची से जोड़ा जाएगा. किसी व्यक्ति के 18 वर्ष का होने पर उसका नाम मतदाता सूची में शामिल किया जाएगा और किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा. यह पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी. इस तरह गृह मंत्रालय के अधीन भारत के रजिस्ट्रार जनरल राष्ट्रीय स्तर पर जन्म और मृत्यु के पंजीकृत डेटाबेस को बनाए रखने में सक्षम बनाएगा. भले ही ऐसा डेटा राज्य सरकारों या नगरपालिका की देखरेख में भी रखा जाता हो. इस तरह भारत के रजिस्ट्रार जनरल के पास उपलब्ध राष्ट्रीय स्तर पर जन्म और मृत्यु डेटाबेस का उपयोग जनसंख्या रजिस्टर, चुनावी रजिस्टर और आधार, राशन कार्ड, पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस डेटाबेस को अपडेट करने में हो सकेगा. इस कड़ी में केंद्र सरकार अस्पतालों और नर्सिंग होम जैसे संस्थानों को जन्म और मृत्यु की सही जानकारी देने के लिए अधिक जवाबदेह बनाने का भी इरादा रखती है. प्रस्तावित संशोधन में कहा गया है, 'मृत्यु किसी भी चिकित्सा संस्थान में हो, उन संस्थानों के लिए अनिवार्य होगा कि वे मृतक के नजदीक रिश्तेदार समेत रजिस्ट्रार को भी मृत्यु के स्पष्ट कारण का एक प्रमाण पत्र प्रदान करें.
जन्म-मृत्यु का पंजीकरण स्तर बढ़ा है
नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) की रिपोर्ट के अनुसार देश में जन्म के पंजीकरण स्तर 2010 में 82.0 फीसदी से बढ़कर 2019 में 92.7 फीसदी हो गया. साथ ही पंजीकृत मृत्यु का स्तर 2010 में 66.9 फीसदी से बढ़कर 2019 में 92.0 फीसद हो गया है. गौरतलब है कि सीआरएस पर जन्म और मृत्यु का ऑनलाइन पंजीकरण कराया जाता है. हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्य पहले से ही सीआरएस के माध्यम से सभी जन्म और मृत्यु दर्ज कर रहे हैं. गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, केरल, कर्नाटक, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश जैसे अन्य राज्यों की अपनी प्रणाली है या ये राज्य आंशिक रूप से सीआरएस पोर्टल का इस्तेमाल करते हैं. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव जैसे कुछ केंद्र शासित प्रदेश केंद्रीय पोर्टल के माध्यम से पंजीकरण करते हैं, लेकिन अन्य जैसे दिल्ली, लक्षद्वीप, पुडुचेरी और जम्मू और कश्मीर में उनकी अपनी प्रणाली है. प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य ऐसे सभी डेटाबेसों को एक साझा मंच पर लाना है. गृह मंत्रालय इसे अमली-जामा पहनाने के लिए सीआरएस को अपग्रेड कर रहा है ताकि जन्म और मृत्यु का पंजीकरण रियल टाइम में हो सके. साथ ही इस काम के लिए मानवीय श्रम की जरूरत भी नहीं पड़े.
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एनआरसी की दिशा में पहला कदम
यदि संशोधन लागू हो जाते है, तो केंद्र 2010 में पहली बार तैयार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने में इस डेटा का उपयोग कर सकेगा है. गौरतलब है कि 2015 में डोर-टू-डोर सर्वेक्षण के बाद एनपीआर के डेटा संशोधित किए गए थे. एनपीआर में पहले से ही 119 करोड़ निवासियों का डेटाबेस है और नागरिकता नियम, 2003 के तहत यह नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) के निर्माण की दिशा में पहला कदम है.
HIGHLIGHTS
- जन्म और मृत्यु पंजीकरण (आरबीडी) अधिनियम, 1969 में संशोधन का प्रस्ताव
- आरबीडी संशोधन विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है
- एनआरसी के लिए इस संशोधन विधेयक को पहला कदम करार दिया जा सकता है