प्रारंभिक रूझानों के बाद पश्चिम बंगाल (West Bengal) की सियासत का गणित साफ हो गया. तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार सूबे में सरकार बनाने जा रही है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के दावे के अनुकूल तिहाई के अंक तक भी नहीं पहुंचती दिख रही. यह अलग बात है कि शुरुआती रुझानों में बीजेपी औऱ टीएमसी के बीच फासला कम था और दोनों ही पार्टियां कह सकते हैं कि 'अबकी बार, 200 पार' का नारा देने वाली बीजेपी 100 के अंदर ही सिमटती दिख रही है.
नाम बड़े औऱ प्रभाव छोटा
यही नहीं बाबुल सुप्रियो, स्वप्न दासगुप्ता और लॉकेट चटर्जी जैसे बीजेपी के कई दिग्गज पिछड़ते नजर आ रहे हैं. इन दिग्गज चेहरों के साथ ही पार्टी के पिछड़ने को लेकर बीजेपी खेमे में निश्चित तौर पर निराशा होगी. भले ही 2016 के मुकाबले बीजेपी ने 30 गुना बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन सरकार बनाने की उम्मीद पालने वाली पार्टी के लिए यह संतोषजनक नहीं कहा जा सकता. बीजेपी ने राज्य में टीएमसी के कई कद्दावर नेताओं को अपने पाले में करने में सफलता भले पा ली हो, लेकिन वह भगवा पार्टों को वोट दिलाने में सफल नहीं हो सके.
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मजबूत स्थानीय नेता और सीएम फेस की कमी
बीजेपी ने भले ही बंगाल में पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत केंद्रीय मंत्रियों और योगी आदित्यनाथ व शिवराज सिंह चौहान की बड़ी फौज को चुनावी समर में उतारा था, लेकिन नतीजों में इसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राज्य में कोई मजबूत चेहरा न होने के चलते यह स्थिति पैदा हुई है. दरअसल जनता के दिमाग में यह बात थी कि पीएम नरेंद्र मोदी बंगाल के सीएम नहीं बनने वाले. पार्टी की ओर से सूबे में सीएम के लिए किसी चेहरे का भी ऐलान नहीं किया गया था. माना जा रहा है कि ममता के मुकाबले एक मजबूत चेहरे का अभाव बीजेपी को खला है.
वोटो का ध्रुवीकरण टीएमसी को मिला फायदा
बीजेपी ने भले ही मुकाबले को पूरी तरह से द्विपक्षीय ही बना दिया, लेकिन यही समीकरण उसके लिए भारी पड़ा है. दरअसल लेफ्ट और कांग्रेस के सफाये से साफ है कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट हुआ वोट टीएमसी को ही गया है. खासतौर पर मुस्लिम समुदाय की ओर से एकजुट होकर टीएमसी को वोट गया है. यही समीकरण बीजेपी पर भारी पड़ता दिख रहा है. इसके उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं कि कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले मालदा में तृणमूल कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया है.
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कोरोना की दूसरी लहर का बीजेपी पर ज्यादा कहर
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर के कहर के चलते चुनाव प्रचार प्रभावित होने का नुकसान बीजेपी को हुआ है. हालांकि ये प्रेसिडेंसी वाले इलाके थे, जहां आखिरी के तीन राउंड्स में चुनाव था. इन इलाकों में ममता बनर्जी का गढ़ माना जाता रहा है. प्रेसिडेंसी में हावड़ा, हुगली, नार्थ और साउथ परगना और कोलकाता जैसे इलाके आते हैं. इनमें और मालदा रीजन में टीएमसी ने बढ़त कायम कर सफलता हासिल की है.
एकजुट रहा टीएमसी वोट, लेफ्ट में बीजेपी की सेंध
अब तक मिले रुझानों से यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी ने लेफ्ट-कांग्रेस के वोटों में बड़ी सेंध लगाकर सफलता हासिल की है. 2019 के आम चुनाव में 18 लोकसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी ने अपनी उसी सफलता को दोहराया है, लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने से चूक गई है. इससे साफ है कि उसने लेफ्ट और कांग्रेस के वोटों में तो सेंध लगाई है, लेकिन टीएमसी का वोटर उससे जुड़ा रहा है. यही नहीं बीजेपी विरोधी वोट भी उसे एकमुश्त मिला है.
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दीदी ओ दीदी ने बिगाड़ा काम
बंगाल में 'जय श्री राम' के नारे को चुनावी मुद्दा बनाकर उतरी बीजेपी को ध्रुवीकरण की बड़ी उम्मीद थी, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा है. बंगाल में बीजेपी के 100 सीटों से कम पर रहने से साफ है कि उसे लेफ्ट और कांग्रेस के बिखरे जनाधार से मदद मिली है, लेकिन ध्रुवीकरण नहीं हो सका है. यही नहीं, पीएम मोदी का लगातार दीदी ओ दीदी कहना भी गलत संदेश देकर गय़ा. लोगों को सूबे की सीएम खासकर एक महिला के प्रति इस तरह का आचरण गले नहीं उतरा. इसके चलते टीएमसी अपनी स्थिति को बरकरार रखने में कामयाब रही है.
HIGHLIGHTS
- बीजेपी के पास सीएम फेस औऱ दीदी के बराबर कद्दावर नेता की कमी
- कांग्रेस और लेफ्ट का वोट भी एक होकर टीएमसी के साथ गया
- बंगाल में तीसरी बार टीएमसी की सरकार का बनना तय