बिहार संभवतः देश का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां चुनावी बिसात पर शह-मात का खेल जातीय समीकरणों से तय होता है. इस लिहाज से देखें तो भारतीय जनता पार्टी ने सूबे में राजनीतिक दूरदृष्टि को अमल में लाकर अपनी बिसात बिछा दी है. बीजेपी ने तारकिशोर प्रसाद को उपमुख्यमंत्री बतौर पेश किया है. तारकिशोर वैश्य समुदाय से आते हैं. सुशील मोदी को डिप्टी सीएम नहीं बनाने का फैसला कहीं भारी न पड़ जाए, इसके लिए ही पार्टी तारकिशोर को आगे लेकर आई. लोकसभा चुनाव के ठीक बाद करीब डेढ़ साल पहले संजय जायसवाल को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. जायसवाल भी वैश्य ही होते हैं. यूं भी देश भर में बीजेपी के वोटरों का एक बड़ा हिस्सा वैश्य समुदाय से आता है. इसे समझ केसरिया दल बिहार में इस समाज के बलबूते अपनी सियासी जमीन पक्की करने में अभी से जुट गया है.
राजद के खिलाफ मजबूत वोट बैंक की तैयारी में बीजेपी
बिहार में करीब पिछले डेढ़ दशक से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) भले ही सत्ता से बाहर है, लेकिन राज्य का मजबूत और बड़ा वोट बैंक अभी भी इस पार्टी के साथ जुड़ा है. बीजेपी ये अच्छे से समझती है कि अगर बिहार में लंबे समय तक राजनीति में टिकना है तो आरजेडी के बराबर वोटबैंक तैयार करना होगा. इसी कड़ी में वैश्य समाज को पार्टी तरजीह दे रही है, जिसकी सूबे के मतदाताओं में हिस्सेदारी लगभग 8 फीसदी इस साल के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन और एनडीए ने मिलकर 34 वैश्य प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिसमें से 24 ने जीत दर्ज की है. गौर करने वाली बात यह हे कि बीजेपी ने 16 वैश्य प्रत्याशियों को टिकट दिया, जिसमें से 15 ने जीत दर्ज की है. मुजफ्फरपुर का केवल कुढ़नी ऐसी विधानसभा सीट है जहां एनडीए के वैश्य प्रत्याशी की हार हुई है.
यह भी पढ़ेंः मंत्री रह चुकी हैं बिहार की नई डिप्टी CM रेणु देवी, जानें उनका सियासी सफर
जीत की गारंटी है वैश्य मतदाता
इनके बलबूते बिहार में बीजेपी एक नई जातिय समीकरण बनाने की तैयारी में जुटी है. कई गैर राजनीतिक संगठन मिलकर वैश्य समाज का एक मजबूत वोट बैंक एकजुट करने में जुटे हैं. वैश्य समाज के नामपर करीब 28 जाति और उपजाति के लोगों को लामबंद करने की तैयारी चल रही है. खास बात यह है कि इसमें अनुसूचित कैटेगरी में गिने जाने वाले बुनकर जाति के साथ उच्च जाति में गिने जाने वाले मारवाड़ी समाज के लोगों को भी वैश्य समाज में गिना जा रहा है. इस समाज के तहत बिहार में 28 जातियों को एकजुट किया जा रहा है. इसमें कलवार, जायसवाल, रौनियार, तैलिक, कानू, हलवाई, शौण्डिक, चौरसिया, स्वर्णकार, वर्णवाल, पटवा, अग्रवाल, केशवरवानी, माहूरी, कुम्भकार, पोद्दार, अग्रहरी, कसेरा, मालाकार, नागर, लहेरी, तिल्ली, खटिक, लोहार, बढ़ई, सिन्दुरिया जैसी जातियों को गिना जाता है. मौजूदा कानून व्यवस्था में ये जातियां ओबीसी, ईबीसी, एससी और उच्च कैटेगरी में आती हैं, लेकिन वर्ण व्यवस्था के दौर में ये सभी वैश्य ही थे. कोशिश की जा रही है कि अगर ये जातियां राजनीतिक रूप से एकजुटता दिखाती हैं तो पूरे समाज का ज्यादा भला हो सकता है.
रेणुका देवी से महिला और अति पिछड़ा वर्ग पर निशाना
वैश्य समुदाय से आते हैं जबकिके बाद रेणु देवी को आगे लाकर बीजेपी ने अतिपिछड़ा वर्ग के साथ महिला मतदाताओं को सियासी संदेश देने की रणनीति चली है. जाहिर है बीजेपी बिहार में एनडीए में बड़े भाई की भूमिका में आने के बाद अब नंबर वन पार्टी बनने की दिशा में कदम बढ़ रही है. बीजेपी की नजर बिहार के अतिपिछड़ा और महिला वोटबैंक पर भी है. इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए रेणु देवी को बीजेपी विधायक दल का उपनेता चुना है. अतिपिछड़ा समुदाय के नोनिया जाति से आने वाली रेणु देवी बिहार में नोनिया, बिंद, मल्लाह, तुरहा जैसी अतिपिछड़ी जाति को बीजेपी की विचारधारा से जोड़ने में ट्रंप कार्ड साबित हो सकती हैं. चंपारण इलाके में उनका अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है, जो बीजेपी का मजबूत गढ़ है. बिहार में अतिपिछड़ा वोटरों पर जेडीयू की पकड़ मानी जाती है. इसी तरह से शराबबंदी के बाद से महिलाओं के बीच नीतीश की पकड़ अच्छी है. इस चुनाव में एनडीए की जीत में महिलाओं की भूमिका काफी अहम थी. ऐसे में बीजेपी हर हाल में महिलाओं को अपने साथ साधकर रखना चाहती है.
यह भी पढ़ेंः जानिए बिहार के नए डिप्टी CM तारकिशोर प्रसाद के बारे में, जो हैं करोड़पति
बीजेपी का वोट शेयर
नीतीश कुमार की सियासी तौर पर यह आखिरी पारी है. ऐसे में बीजेपी की नजर नीतीश कुमार के अति पिछड़ा और महिला वोटवैंक को अपने साथ लाने की रणनीति पर है. इसीलिए बीजेपी ने विधानमंडल का नेता वैश्य समुदाय से चुना है तो उपनेता अतिपिछड़ा समाज से आने वाली रेणु देवी को बनाया है ताकि उन्हें अभी से ही राजनीतिक संदेश दिया जा सके ताकि 2025 में जब विधानसभा का चुनाव हो तो राजनीतिक समीकरण पार्टी के पक्ष में मजबूती के साथ जुड़ा रहे. हालिया टुनाव में भी चुनावों में राजद सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आई है. उसने 75 सीटें हासिल कीं और दूसरे नंबर पर रही भारतीय जनता पार्टी ने 74 सीटें जीतीं. जदयू ने 43, कांग्रेस ने 19 और अन्य दलों और निर्दलीय के खाते में 31 सीटें गईं. बीजेपी-जदयू के साथ सरकार बनाने में जरूर सफल रही हो, पर इसका वोट शेयर गिरा है, जबकि राजद और कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा है. भाजपा ने 2005 के चुनाव में 10.97 फीसद (फरवरी, 2005) वोट पाया था, जिसमें 2015 तक लगातार बढ़त जारी रही. 2015 के चुनावों में भाजपा का वोट शेयर 24.42 फीसद था, लेकिन 2020 के चुनावों में भाजपा का वोट शेयर गिरकर 19.46 प्रतिशत हो गया. पर इस बार भाजपा का वोट शेयर तो गिरा, लेकिन इसकी सीटों की संख्या में इजाफा हुआ, जो कि 2005 में हुए दो चुनावों के साथ ही 2010 और 2015 के चुनावों के उलट है. इन चुनावों में भाजपा का वोट शेयर अधिक था, पर सीटें कम थीं.
फिलहाल का गणित
दलित
बिहार में करीब 16 प्रतिशत दलित वोट हैं और इनमें से लगभग पांच प्रतिशत पासवान हैं जो पारंपरिक तौर पर स्वर्गीय रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को वोट देते हैं. बाकी दलितों का 11 प्रतिशत वोटबैंक हैं और इन्हें महादलित के तौर पर भी जाना जाता है. ये महादलित जातियां नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को अपना वोट देते रहे हैं
यह भी पढ़ेंः नीतीश कैबिनेट में ये चेहरे होंगे शामिल, देखें पूरी लिस्ट
अति पिछड़ी जातियां
अति पिछड़ी जातियों (ईबीसी) का वोटबैंक 26 प्रतिशत है और 2005 के बाद से इनमें से अधिकांश लगातार नीतीश कुमार को वोट दे रहे हैं. हालांकि, नरेंद्र मोदी के उभार के बाद इनकाका झुकाव भाजपा की तरफ हुआ है. नीतीश के लिए राहत की बात ये है कि वह भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में इस वोटबैंक का फायदा अंत में उन्हें ही हुआ भी.
अन्य पिछड़ी जातियां
अगर अन्य पिछड़ी जातियों की बात करें तो उनके 26 प्रतिशत वोट हैं. इनमें से लगभग 15 प्रतिशत यादव हैं जो पारंपरिक तौर पर लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के कट्टर समर्थक रहे हैं. इसके अलावा 8 प्रतिशत कुशवाहा हैं जिनमें से कुछ पर उपेंद्र कुशवाहा और कुछ पर नीतीश का प्रभाव है. नीतीश कुमार की खुद की कुर्मी जाति के 4 प्रतिशत वोट हैं और ये पूरा वोट उन्हें ही जाता रहा है.
यह भी पढ़ेंः राहुल गांधी पर राजद का हमला, महागठबंधन में शुरू आरोप-प्रत्यारोप
उच्च जातियां
बिहार की आबादी में उच्च जातियों की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है और पारंपरिक तौर पर ये वोटबैंक भाजपा और कांग्रेस के बीच शिफ्ट करता रहा है. अभी ज्यादातर उच्च जातियां भाजपा को वोट देती हैं और अपने इस आधार को बनाए रखने के लिए पार्टी ने अपनी कुल 110 टिकटों में से 51 उच्च जाति के उम्मीदवारों की दी हैं. पार्टी ने राजपूतों को सबसे अधिक लुभाने की कोशिश की है और उन्हें 22 टिकट दीं.
मुस्लिम
धार्मिक समीकरण की बात करें तो बिहार में लगभग 17 प्रतिशत मुस्लिम हैं और ये मुख्यतौर पर राजद को वोट देते रहे हैं. यादव और मुस्लिम यानि MY फैक्टर के कारण ही लालू प्रसाद यादव इतने साल तक राज्य की सत्ता पर काबिज रहे. आज भी राजद की यही मुख्य ताकत है.
Source :