Advertisment

इन बड़े चेहरों को मैदान में उतारने के पीछे क्या है बीजेपी की स्ट्रैटिजी, जानें सियासी समीकरण

मध्य प्रदेश की वर्तमान राजनीति पर अगर हम नजर डाले तो भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे की टक्कर का है. दोनों ही दलों में दर्जनों नेता हैं. अपने-अपने क्षेत्रों में नेताओं की लोकप्रियता से गुटबाजी भी चरम पर है.

author-image
Prashant Jha
एडिट
New Update
mp election

विधानसभा चुनाव( Photo Credit : न्यूज नेशन)

Advertisment

मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनाव को लेकर अभी से ही कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. 230 विधानसभा सीटों के लिए जहां बीजेपी फिर से सत्ता पर काबिज होने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रही है. वहीं, 20 सालों से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस सियासी जंग फतह करने में जुटी है. इस बार के चुनाव का मुकाबला बेहद रोचक रहने वाला है. दोनों ही दलों में गुटबाजी चरम पर है. कांग्रेस कई गुटों में बंटी नजर आ रही है तो भाजपा चुनाव से पहले कई खेमों में है. यह अलग बात है कि भाजपा की गुटबाजी अभी तक खुलकर सामने नहीं आई है, लेकिन भाजपा को यह तो लगने लगा है कि प्रदेश का सियासी हाल इस बार मुफीद नहीं है. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस बात को भांप लिया है कि चुनाव परंपरागत रूप से नहीं लड़ा जा सकता है. भाजपा हाईकमान ने टिकट बंटवारे में ऐसा उल्टफेर किया है जिसका अंदाजा किसी को नहीं था.

खासकर राज्य की राजनीति छोड़कर केंद्र की राजनीति करने वाले नेताओं को तो बिलकुल ही नहीं रहा होगा.  क्योंकि 2014 में जब भाजपा नेतृत्व एनडीए सत्ता में आई तो मध्य प्रदेश के कई सांसदों को मोदी-शाह ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया. इसमें नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, समेत कई दिग्गज नेताओं को केंद्रीय मंत्री बनाया था. इसके अलावा कैलाश विजयवर्गीय, गणेश सिंह, रीती पाठक, राकेश सिंह जैसे नेताओं का केंद्र में कद बढ़ा, लेकिन मध्य प्रदेश में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे की है .ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व ने दिग्गज नेताओं को विधायकी लड़ाने के लिए सियासी मैदान में उतारा है.

पार्टी में गुटबाजी बड़ी वजह 

भाजपा को लगता है कि इन चेहरों के दम पर वह प्रदेश में फिर से सरकार बनाएगी. वहीं, कांग्रेस कमलनाथ और दिग्गी राजा के सहारे नैय्या पार करने की जुगत में है. लेकिन इस सबके बीच भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को मंत्री और सांसदों को उतारने की जरूरत क्यों पड़ी. क्या पार्टी हाईकमान को गुटबाजी का डर है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि लंबे समय से पार्टी राज्य में सरकार चला रही है. पार्टी में नेताओं के अपने-अपने गुट हैं. खासकर प्रदेशस्तर पर गुटबाजी ज्यादा होती रहती है. इसलिए केंद्रीय नेतृत्व ने इससे बचने के लिए नए चेहरों पर भरोसा जताया है.  

दरअसल, बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश को लेकर संशय की स्थिति में है. उसे लगता है कि इस बार मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार के लिए सिंहासन का ताज काटों भरा है इसलिए उसने उन चेहरों को तवज्जो दी है जो अपने दम पर सीट निकालने का माद्दा रखते हो. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अभी तक के भाषणों में शिवराज सरकार की किसी उपलब्धि का जिक्र नहीं किया है. बल्कि पूरे भाषण में वो केन्द्र सरकार की बड़ी उपलब्धियों को गिनवाते रहे. कार्यकर्ताओं को मिशन 150 का लक्ष्य दे दिया. मतलब साफ है कि मध्यप्रदेश में शिवराज का चेहरा जीत के लिए केद्रीय नेतृत्व को फीका नजर आ रहा है.

प्रदेश में ये है सियासी गणित

मध्य प्रदेश की वर्तमान राजनीति पर अगर हम नजर डाले तो भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे की टक्कर का है. दोनों ही दलों में दर्जनों नेता हैं. अपने-अपने क्षेत्रों में नेताओं की लोकप्रियता से गुटबाजी भी चरम पर है. कांग्रेस तो इस समस्या से पहले से ही जूझती आ रही है. भाजपा भी इससे अछूती नहीं है. भाजपा में भी क्षत्रपों के अपने-अपने गुट हैं. बात चाहें महाकौशल की हो या मालवा, विंध्य, ग्वालियर- चंबल और बुंदलेखंड की हर क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा के दिग्गजों की दखलअंदाजी से सियासी माहौल गरम है. भाजपा-कांग्रेस में क्षत्रपों की बात करें तो विंध्य में अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल भैया का अपना दबदबा है. वहीं, बीजेपी के राजेंद्र शुक्ला की सियासी पकड़ यहां मजबूत है. उसी तरह महाकौशल की 38 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ मजबूती से पकड़ बनाए हुए हैं. छिंदवाड़ा में कमलनाथ पंजे के सहारे निर्णायक मोड़ में हैं.  तो वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रह्लाद पटेल सियासी समा बांधे हुए हैं. ओबीसी जाति से आने वाले प्रह्लाद पटेल की सियासी जमीन यहां पर मजबूत स्थिति में है. मालवा-निमाड़ की 66 सीटों पर दोनों ही दलों की नजर है. यहां से कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे हैं. कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव समेत कई दिग्गज नेता चुनावी मैदान में हैं. तो भाजपा से कैलाश विजयवर्गीय समेत कई नेता ताल ठोक रहे हैं. वहीं, मध्य भारत पर कांग्रेस के दिग्विजय सिंह नजर गड़ाए हैं. वहीं, मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए शिवराज सिंह चौहान किसी जादूगर से कम नहीं हैं. वैसे तो शिवराज सिंह की लोकप्रियता इतनी मजबूत है कि वह प्रदेश में अपने बूते कमल खिला देते हैं, लेकिन प्रदेश की सियासत पर नजर रखने वाले पंडितों का कहना है कि इस बार बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश जीतना आसान नहीं है. बीजेपी को कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिल रही है. कर्नाटक जीत के बाद से कांग्रेस का कॉन्फिडेंस काफी हाई है. छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी ने कहा कि हम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जीत रहे हैं और राजस्थान में भी जीतना तय है.  

चुनावी मैदान में हैं ''महराज''

ग्वालियर चंबल में कभी कांग्रेस का प्रमुख चेहरा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब बीजेपी में आए चुके हैं. इस क्षेत्र में बीजेपी के कई चेहरे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा समेत कई नेता पार्टी के प्रमुख चेहरा हैं. ग्वालियर चंबल में भाजपा की सियासी जमीन कमजोर है. पार्टी इस बार यहां से अधिक से अधिक सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है. वहीं, कांग्रेस की बात की जाए तो कांग्रेस के लिए यह क्षेत्र कमजोर है. कांग्रेस यहां से गोविंद सिंह के भरोसे नैया पार करने में लगी हुई है.    

ग्वालियर चंबल रिजन में ज्योतिरादित्य सिंधिया की पकड़ मजबूत है. तीन साल पहले जब सिंधिया अपने 20 विधायकों के साथ भाजपा का दामन थामे थे तो उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें प्रदेश की कमान सौंप सकती है, लेकिन भाजपा ने अभी उनपर उतना भरोसा नहीं जताया जितनी की सिंधिया उम्मीद जता रहे थे. लिहाजा एक दर्जन से अधिक संधिया समर्थक चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सिंधिया को 35 से 40 सीटें दी थी, लेकिन इस बार बीजेपी ने उन्हें 5 से 6 सीटें ही दी है. ऐसे में सिंधिया को यह स्वीकार करना होगा कि कांग्रेस जैसी ऐसी स्थिति भाजपा में फिलहाल नहीं है. सिंधिया को यह भी कबूल करना होगा कि भाजपा में लंबे समय तक बना रहना है तो सियासी संतुलन बनाकर ही आगे बढ़ना होगा. साथ ही उन्हें संगठन में भी अपने समर्थकों को आगे बढ़ना होगा.

कांग्रेस और बीजेपी में कांटे की टक्कर
कुल मिलाकर मध्य प्रदेश चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कांटे का होने वाला है. चुनावी शंखनाद के बाद तो राजनीतिक दल सियासी पिच बनाने में दिनरात एक किए हुए हैं. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अपने नेताओं को मिशन 150 का टारगेट फतह करने का मंत्र दिया है. वहीं, कांग्रेस हाईकमान कमलनाथ और दिग्विजय समेत अन्य दिग्गजों के सहारे सत्ता में आने का दावा कर रहा है. 

Source : News Nation Bureau

MP News madhya pradesh election madhya pradesh election 2023 Madhya Pradesh Assembly Election 2023 madhya pradesh election news today 17 november mp assembly election mp assembly election
Advertisment
Advertisment
Advertisment