Advertisment

गंगा में लाशों से डॉल्फिन समेत लोगों को नुकसान! समझें कैसा है खतरा

गंगा नदी में शव मिलने के बाद विशेषज्ञों की भी चिंता बढ़ गई है. फिलहाल पानी से वायरस फैलने का प्रमाण तो अभी नहीं मिला है, पर इतनी भारी संख्या में नदियों में लाश मिलना बहुत खतरनाक है.

author-image
Dalchand Kumar
New Update
Ganga

गंगा में लाशों से डॉल्फिन समेत लोगों को नुकसान! समझें कैसा है खतरा( Photo Credit : फाइल फोटो)

Advertisment

कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के कारण गंगा के किनारों पर नजर आए भयावह मंजर ने हर किसी को हैरान कर दिया. गंगा नदी में लाशें बह रही थीं तो किनारों पर रेत में न जाने कितने शव दफन थे. उत्तर प्रदेश के कई शहरों से ये खौफनाक तस्वीरें सामने आईं. गंगा के किनारों पर न जाने कितने शवों को रेत में ही दफन किया जा चुका है. कुछ यही हाल गंगा के किनारे उत्तर प्रदेश से सटे और बिहार के जिलों में भी था. अब तक उत्तर प्रदेश से लेकर बिहार शासन-प्रशासन इस पूरे मामले की जड़ तक पहुंचने में लगा हुआ है. अब तक जो हुआ सो हुआ, मगर चिंता तो अब इस बात की है कि इन लाशों से न सिर्फ डॉल्फिन समेत तमाम जानवरों को नुकसान हो सकता है, बल्कि गंगा के किनारे रहने वाले लोगों को भी खतरा हो सकता है. मगर गंगा नदी में शव मिलने के बाद विशेषज्ञों की भी चिंता बढ़ गई है. फिलहाल पानी से वायरस फैलने का प्रमाण तो अभी नहीं मिला है, पर इतनी भारी संख्या में नदियों में लाश मिलना बहुत खतरनाक है.

यह भी पढ़ें : प्रयागराज के इस गांव में कोरोना का कहर, 1 महीने में करीब 18 लोगों की मौत

गंगा में शवों के मिलने का असर सीधे जीवों पर

वैसे तो लावारिस लाशों को गंगा में बहाने से रोकने की कोशिशें तेज हो गई हैं. मगर गंगा के घाटों पर लाशों के मिलने का सीधा असर जीवनदानियी गंगा के जल में रहने वाले उन जीवों पर पड़ सकता है, जो सिर्फ गंगा में पाए जाते हैं. अब तक गंगा के जल कितना संक्रमित हो चुका है, कितना नहीं. इस पर कोई भी कुछ दावे से नहीं कह सकता. डॉल्फिन और घड़ियाल का संरक्षण सीधे मां गंगा की लाइफ लाइन से जुड़ा है. नममि गंगे जैसे प्रोजेक्ट पर भी संकट खड़ा हो सकता है. गंगा का पानी को पहले ही प्रदूषण से बचाने की जंग जारी है, जिस पर हर साल करोड़ों रूपये खर्च किए जाते हैं. अगर गंगा के पानी में कोरोना के फैलने की आशंका सही साबित हुई तो निर्मल और अवरिल गंगा का सपना हकीकत से और दूर हो जाएगा.

लोगों को संक्रमण होने का खतरा

माना जा रहा है कि अगर शव बहाने का सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा तो गंगा नदी के पर्यावरण पर घातक असर पड़ेगा. गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घटेगी तो खास तौर पर बैक्टीरियल लोड बढ़ेगा. जिसका जानवरों के साथ साथ मानव स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ेगा. नदी में बहाए  गए शवों को विशेष प्रकार के कछुआ और मछलियां खा जाती हैं. चूंकि ये शव कोरोना से संक्रमित हैं तो वह भी उनके पेट में पहुंचेंगे. चूंकि मछलियां लोगों का खाद्य स्रोत होती हैं और ऐसे में ये तत्व लोगों की थाली में भी पहुंच सकते हैं. मसलन लाशों को नदी में बहाने से उसमें बैक्टीरियल लोड बढ़ेगा, जो गंभीर खतरा होगा. गंगा के पानी का नहाने, पीने आदि में उपयोग से लोगों को संक्रमण हो सकता है.

यह भी पढ़ें : दिल्ली पुलिस ने कोर्ट से पूछताछ के लिए नवनीत कालरा की हिरासत मांगी

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

इसको लेकर अगर आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने की मानें तो नदियों में शव मिलना बेहद गंभीर है. आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे कहते हैं कि गंगा नदी में शवों का मिलना खतरनाक हो सकता है. कोरोना काल में शवों का नदियों में प्रवाह ठीक नहीं है. तो हीं बीएचयू के सीनियर डॉक्टर कहते हैं कि इस तरह से अगर नदियों में लाश मिलेगी तो बीमारियों का खतरा बढ़ेगा और इससे ज्यादा महामारी फैलेगी. हालांकि विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के जीन विज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि अभी तक कोरोना वायरस को लेकर जो भी स्टडी हुई है. वे इस बात को रिजेक्ट करती है कि यह डिजीज वाटर बार्न है. तो अगर पानी में वायरस जाता भी है तो उसका किसी भी व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

दूसरी ओर बीएचयू के सीनियर डॉक्टर डॉ ओमशंकर कहते हैं कि गंगा के अंदर बहुत सारी लाशें मिली हैं. ये लाशें कोरोना से संक्रमित हैं और लोगों के पास जलाने की सुविधा नहीं थी तो उन्होंने लाशों को गंगा में प्रवाहित कर दिया. डॉ ओमशंकर कहते हैं कि हमारा मानना है कि आम लाशों को भी गंगा में इस सोच के साथ प्रवाहित कर दिया जाता है. जानवरों की लाशों को भी प्रवाहित कर दिया जाता है. इससे गंगा का पानी प्रदूषित होता है. इस बारे में पहले कह चुका हूं और फिर से कहना चाहता हूं कि कोरोना से संक्रमित लाशों को गंगा में प्रवाहित करना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात है और इससे बीमारियां फैलेगी और कई तरह की महामारी फैल सकती है.

इस मसले पर भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रुचि बडोला का कहना है कि पहले भी यह देखा गया है कि पहले भी संक्रमित बीमारियों के मरीजों के शव अगर पानी में फेंके जाते थे तो उसके कारण बड़े पैमाने पर गंगा भी प्रदूषित होती है और उसके आसपास रहने वाले गांव के लोगों पर भी इसका बड़ा फर्क दिखाई देता है. उनका कहना है कि लोगों को यह नहीं करने की जरूरत है, इससे बड़े पैमाने पर बीमारी फैल सकती है. डॉ रूचि बडोला की मानें तो कोरोना के मृत व्यक्तियों के शव को खाने से जलीय या स्थलीय जीव जंतुओं पर फिलहाल किसी तरह का कोई असर नहीं दिखाई दिया है. डॉ रूचि बड़ौला का कहना है कि अभी विश्व स्तर पर ऐसी कोई भी रिसर्च सामने नहीं आई है, जिसमें जलीय जीवो या किसी अन्य जीव में कोई प्रभाव देखा गया हो. यहां तक की मछलियों का सेवन करने वाले लोगों में भी इसका कोई प्रभाव अभी तक नहीं देखा गया.

यह भी पढ़ें : राजनीतिक लाभ के लिए ना हो दवाओं की जमाखोरी, नेता इसे DGHS को सौंपे- दिल्ली HC 

अब तक गंगा में मिल चुके हैं हजारों शव

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी, उन्नाव, कन्नौज, कानपुर, रायबरेली और प्रयागराज में गंगा नदी के किनारे शवों को रेत में दफनाए जाने के मामले सामने आए. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में 2000 से अधिक शव आधे-अधूरे तरीके या जल्दबाजी में दफनाए गए या गंगा किनारे पर मिले हैं. दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट कहती है कि पिछले हफ्ते अकेले उन्नाव में एक हजार के करीब शवों को नदी के किनारे दफनाया गया था. जबकि एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, संगम नगरी प्रयागराज के ऋंगवेरपुर धाम में गंगा के किनारे बीते करीब डेढ़ महीने में हजारों शवों को गंगा नदी के किनारे रेत में दफन कर दिया गया. बिहार के बक्सर जिले में भी गंगा किनारे सैकड़ों शव मिल चुके हैं.

HIGHLIGHTS

  • गंगा के किनारों पर भयावह मंजर
  • रेत में दफन और नदी में बहती लाशें
  • अब जीवों और दूसरे लोगों को खतरा
Ganga River Ganga Ganga Dead Body Prayagraj Ganga गंगा प्रदूषण गंगा खतरा
Advertisment
Advertisment