प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बुधवार को मंत्रिमंडल विस्तार (Cabinet Expansion) के साथ फेरबदल कर कई सियासी तीर चलाए हैं. इन तीरों का जहां आगामी राज्यों में आसन्न विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) और फिर लोकसभा चुनाव 2024 (Loksabha Elections 2024) निशान हैं, वहीं कुछ तीर ऐसे भी रहे जो जवाबदेही और केंद्र सरकार के कामकाज के तौर पर चलाए गए. पीएम मोदी के विस्तार में 6 कैबिनेट मंत्रियों समेत दर्जन भर मंत्रियों की छुट्टी कर दी गई. यह इस बात का सूचक है कि मंत्रिमंडल में बने रहने के लिए जुबानी जमा-खर्च से ही काम नहीं चलेगा, बल्कि काम करना होगा. काम भी ऐसा-वैसा नहीं, बल्कि जो मोदी सरकार की उपलब्धियों को सामने लाने वाला हो. जाहिर है देर से हुए विस्तार में पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजों, कोरोना महामारी से प्रभावित सरकार की छवि तथा उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों में आने वाले चुनावों का भी काफी प्रभाव है.
ट्विटर की लड़ाई ले डूबी रविशंकर प्रसाद को
कानून और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद को ट्विटर बनाम सरकार की लड़ाई ले डूबी. प्रधानमंत्री मोदी शुरू से ही अपने मंत्रियों और सांसदों को सोशल मीडिया के बेहतर इस्तेमाल और इसके जरिए लोगों तक पहुंच बढ़ाने के लिए कहते रहे हैं. माना जा रहा है कि प्रसाद ने ट्विटर विवाद को सही से हैंडल नहीं किया, जिसकी वजह से सरकार और पीएम पर भी सवाल उठे, जो उनकी छुट्टी की एक वजह बना. प्रसाद के पास कानून मंत्रालय भी था. पिछले महीने ही दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में सख्त टिप्पणी की थी. पिंजरा तोड़ ग्रुप की सदस्य नताशा समेत तीन आरोपियों को जमानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य ने संवैधानिक रूप से मिले विरोध के अधिकार और आतंकी गतिविधियों के बीच की लाइन को धुंधला कर दिया है. कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में भी कई मामलों में कानून मंत्रालय सरकार का पक्ष मजबूती से नहीं रख पाया.
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उम्र के साथ-साथ सरकार पर उठा सवाल बने वजह जावडेकर के इस्तीफे की
सूचना-प्रसारण मंत्री और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से भी इस्तीफा ले लिया गया. सरकार के प्रवक्ता होने के नाते जावड़ेकर और उनके मंत्रालय की जिम्मेदारी थी कि वह कोरोना काल में सरकार की छवि सही करने के लिए कदम उठाएं, लेकिन उनका मंत्रालय इसमें असफल रहा. देसी मीडिया तो छोड़िए विदेशी मीडिया में भी मोदी सरकार की बहुत भद्द पिटी. इसका सीधा खामियाजा पीएम मोदी को अपनी बिगड़ती साख के तौर पर उठाना पड़ा. दूसरे जावडेकर 70 साल के हैं. ऐसे में उनकी उम्र भी एक वजह रही कैबिनेट से बाहर होने की.
हर्षवर्धन को भारी पड़ा कोरोना से निपटने में मिसमैनेजमेंट
कोरोना संक्रमण की दूसरी मारक लहर और ऑक्सीजन की कमी ने मोदी सरकार के सारे किए-कराए पर पानी फेर दिया. विपक्ष को इसकी आड़ में एक मौका मिला और उसने जमकर न सिर्फ तीर चलाए, बल्कि मोदी सरकार को कठघरे में भी खड़ा कर दिया. अस्पतालों में बेड की कमी, ऑक्सीजन की कमी और टीकों समेत अन्य दवाओं से जुड़ी दिक्कतों से पार पाने में स्वास्थ्य मंत्री वह सक्रियता नहीं दिखा सके, जो उन्होंने कोरोना की पहली लहर में दिखाई थी. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में सरकार पर कई सवाल उठे और स्वास्थ्य मंत्रालय़ हालात से निपटने के अलावा सरकार के खिलाफ लगातार बन रही नकारात्मक छवि को दुरुस्त करने में असफल रहा. गौरतलब है कि पिछली सरकार में भी हर्षवर्धन से स्वास्थ्य मंत्रालय वापस ले लिया गया था.
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स्वास्थ्य कारणों से शिक्षा मंत्री के पद से हटे निशंक
एजुकेशन मिनिस्टर रमेश पोखरियाल निशंक का भी इस्तीफा हुआ. हालांकि उनका खराब स्वास्थ्य इसकी प्रमुख वजह बताया जा रहा है. कोरोना संक्रमित होने के बाद से उन्हें काफी दिक्कत पेश आ रही थी. यहां तक कि निशंक को 15 दिन तक आईसीयू में रहना पड़ा. उस पर उनकी शैक्षिक आर्ह्ताओं को लेकर भी विपक्ष हमलावर रहा. कोरोना काल में सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाओं से लेकर अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के रद्द या स्थगन पर पीएम मोदी को सीधे हस्तक्षेप करना पड़ा. इन तमाम बातों से निशंक की कार्यप्रणाली सवालिया निशान से घिर गई थी. ऐसे में अंततः उन्हें कैबिनेट से हटाकर ही सभी मामलों में पटाक्षेप कर दिया गया.
प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा ले गई गंगवार को
कोरोना संक्रमण की पहली लहर में प्रवासी मजदूरों के पलायन ने मोदी सरकार को हद दर्जे तक आहत किया. श्रम मंत्री संतोष गंगवार को भी मोदी मंत्रिमंडल से इसकी वजह से बाहर का रास्ता दिखाया गया. कोरोनाकाल में प्रवासी मजदूरों की परेशानियों को सही तरीके से दूर कर उनमें विश्वास का बाव नहीं जगा पाना प्रमुख कारम रहे. इन सबी बातों ने श्रम मंत्रालय की साख को गहरे रसातल में पहुंचा दिया था. सुप्रीम कोर्ट भी प्रवासी मजदूरों के सवाल पर मंत्रालय पर तीखी टिप्पणी कर चुका था. विदेशी मीडिया में भी इस पर खूब सवाल उठे थे.
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कर्नाटक सरकार की उथल-पुथल ले डूबी सदानंद गौड़ा को
जाहिर है कि कोरोना काल में किस मंत्री का प्रदर्शन कैसा रहा, यह उनके मंत्रिमंडल में रहने या जाने का एक बड़ा कारक बनी. पिछले एक महीने से पीएम नरेंद्र मोदी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं संग हर मंत्री के कामकाज की समीक्षा कर रहे थे. समीक्षा के आधार पर ही सबका रिपोर्ट कार्ड भी तैयार किया गया. इस कड़ी में केमिकल और फर्टिलाइजर मिनिस्टर सदानंद गौड़ा को भी हटाया गया. इसके पीछे कर्नाटक में सरकार के भीतर चल रही उथल पुथल भी एक वजह बताई जा रही है. कर्नाटक से अब चार नए लोगों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है.
बंगाल में बीजेपी की हार ले डूबी बाबुल सुप्रियो को
पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी के परफॉरमेंस की वजह से राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो और देबाश्री चौधरी की मंत्रिमंडल से छुट्टी हुई. मंत्री होने के बावजूद बाबुल सुप्रियो विधानसभा सीट भी नहीं जीत पाए. उनके कुछ बयानों ने भी पार्टी की किरकिरी की. देबाश्री चौधरी भी बंगाल चुनाव में असरदार साबित नहीं हुई. थावरचंद गहलोत को मंत्री पद से हटाकर कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया है और इसके पीछे उनकी उम्र को वजह बताया गया. राज्यमंत्री संजय धोत्रे को स्वास्थ्य वजह से इस्तीफा देना पड़ा. इसके अलावा रतनलाल कटारिया, प्रताप सारंगी को भी मंत्रिमंडल से हटाया गया. उनके रिपोर्ट कार्ड को इसका आधार बनाया गया.
HIGHLIGHTS
- दिग्गज नेताओं को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया पीएम मोदी ने
- संदेश साफ है वरिष्ठता नहीं काम का आधार बनेगा भविष्य की राह
- नए चेहरों को भी इसी आधार पर दिए गए कैबिनेट में पद