केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने उत्तर प्रदेश में 71 हेक्टेयर से अधिक प्रमुख व्यावसायिक भूमि को तालाब के रूप में दिखाकर नाममात्र की दरों पर पट्टे पर देने के आरोप में शत्रु संपत्ति का प्रबंधन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ चार प्राथमिकी दर्ज की है. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि कथित घोटाला शत्रु संपत्ति से संबंधित है, जिन्हें लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर में चीन और पाकिस्तान की नागरिकता लेने वालों ने छोड़ दिया था. शत्रु संपत्ति वर्तमान में भारत की शत्रु संपत्ति संरक्षक (सीईपीआई) के पास है.
अधिकारियों ने कहा कि एजेंसी ने इस सिलसिले में दिल्ली, कोलकाता, उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गाजियाबाद, नोएडा, बुलंदशहर और बाराबंकी में 40 स्थानों पर छापेमारी की. उन्होंने कहा कि केंद्रीय एजेंसी ने दिल्ली में भारत की शत्रु संपत्ति (सीईपीआई) के तत्कालीन कार्यवाहक संरक्षक समंदर सिंह राणा, उत्पल चक्रवर्ती, सहायक संरक्षक और रमेश चंद्र तिवारी, एक सेवानिवृत्त पर्यवेक्षक (दोनों लखनऊ में स्थित) के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी) और 471 (जालसाजी) और रिश्वत से संबंधित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है.
यह भी पढ़ें : शनिवार को जारी होगा UP Board का रिजल्ट, ऐसे देख सकते हैं परिणाम
इसके अलावा, सीबीआई ने चार प्राथमिकी में 41 लाभार्थियों को भी आरोपी बनाया है - दो प्राथमिकी लखनऊ इकाई में जबकि दो अन्य प्राथमिकी गाजियाबाद इकाई में दर्ज की गई थी. सीईपीआई के पास निहित शत्रु संपत्ति उन भारतीयों की परित्यक्त संपत्ति है, जिन्होंने युद्ध के बाद चीन और पाकिस्तान की नागरिकता ले ली थी. सरकार ने इन संपत्ति को भारतीय रक्षा अधिनियम, 1962 के तहत उनके प्रवास और राष्ट्रीयता में परिवर्तन के बाद अपने कब्जे में ले लिया.
गृह मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, ‘‘शत्रु संपत्ति में उस संपत्ति को शामिल किया जाता है जो 10 सितंबर, 1965 से 26 सितंबर, 1977 तक की अवधि में किसी शत्रु व्यक्ति या शत्रु कंपनी के नाप पर रही थीं और इन्हें शत्रु संपत्ति नियम, 2015 के कड़े प्रावधानों के अनुसार शत्रु संपत्ति के रूप में माना जाता है.’’
इसमें कहा गया है कि चीनी और पाकिस्तानी नागरिकों या कंपनियों की संपत्ति सीईपीआई के पास शत्रु संपत्ति के रूप में अधिकृत है. प्राथमिकी में कहा गया है कि सीईपीआई के अधिकारियों ने कथित तौर पर ‘‘पट्टेदारों के पक्ष में पट्टे के समझौतों में हेरफेर और धोखाधड़ी’’ कर और बिना समझौतों के इन्हें पट्टे पर देकर लाभार्थियों के साथ मिलीभगत की.
इसने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना लीज रेंटल एरियर को माफ कर अदालत से बाहर अनधिकृत तरीके से बंदोबस्त और अन्य अवैध तरीकों से पट्टों को नियमित किया गया, जिससे सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ.
उन्होंने कहा कि लाभार्थियों में से एक रमेश चंद्र तिवारी के भाई अविनाश तिवारी थे, जो राज्य के राजस्व विभाग में तैनात थे. सीईपीआई द्वारा की गई जांच के अनुसार तिवार को 5,000 रुपये की वार्षिक दर पर 177 पेड़ों वाले आम के बाग की आठ एकड़ भूमि का पट्टा दिया गया था, जबकि इसकी बाजार दर 5.55 लाख रुपये सालाना है.
सीबीआई के एक प्रवक्ता ने गाजियाबाद इकाई में दर्ज प्राथमिकी के बारे में कहा, ‘‘निजी व्यक्तियों के साथ साजिश में लोक सेवकों ने नोएडा एक्सटेंशन, गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, कासगंज आदि में स्थित लगभग 17 हेक्टेयर की प्रमुख उच्च मूल्य भूमि के बड़े हिस्से को पट्टे पर देकर सरकारी खजाने को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाया.’’
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि उक्त भूखंड बेहद मामूली किराये पर दिए गए थे, जिससे निजी बिल्डर को अवैध निर्माण की अनुमति मिली और शत्रु संपत्ति के मामले में पट्टे के समझौते किए गए.
क्या है शत्रु संपत्ति ?
शत्रु सम्पत्ति अधिनियम 1968 भारतीय संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसके अनुसार शत्रु सम्पत्ति पर भारत सरकार का अधिकार होगा. पाकिस्तान से 1965 में हुए युद्ध के बाद 1968 में शत्रु संपत्ति (संरक्षण एवं पंजीकरण) अधिनियम पारित हुआ था. इस अधिनियम के अनुसार जो लोग बंटवारे या 1965 में और 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान चले गए और वहां की नागरिकता ले ली थी, उनकी सारी अचल संपत्ति 'शत्रु संपत्ति' घोषित कर दी गई. उसके बाद पहली बार उन भारतीय नागरिकों को संपत्ति के आधार पर 'शत्रु' की श्रेणी में रखा गया, जिनके पूर्वज किसी ‘शत्रु’ राष्ट्र के नागरिक रहे हों. यह कानून केवल उनकी संपत्ति को लेकर है और इससे उनकी भारतीय नागरिकता पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है.
इस अधिनियम के प्रावधानों को महमूदाबाद के राजा ने अदालत में चुनौती दी थी और सर्वोच्च न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय दिया था किन्तु 'शत्रु संपत्ति संशोधित अध्यादेश 2016' के लागू होने और 'शत्रु नागरिक' की नई परिभाषा के बाद विरासत में मिली ऐसी संपत्तियों पर से भारतीय नागरिकों का मालिकाना हक़ ख़त्म हो गया है. भारत में कुल 9,280 शत्रु संपत्ति है. जिसमें उत्तर प्रदेश में 4,991 और पश्चिम बंगाल में 2,737 शत्रु संपत्ति है.
द कस्टोडियन ऑफ एनमी प्रॉपर्टी फॉर इंडिया (CEPI), भारत रक्षा अधिनियम, 1939 के तहत स्थापित एक कार्यालय है. भारत में कस्टोडियन के माध्यम से सभी शत्रु संपत्तियां भारत सरकार के कब्जे में है. 1965 के युद्ध के बाद, भारत और पाकिस्तान ने 1966 में ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर किए और युद्ध के बाद दोनों पक्षों द्वारा ली गई संपत्ति की संभावित वापसी पर बातचीत करने का वादा किया. उस वादे को तोड़ते हुए, पाकिस्तान ने 1971 में अपने सभी शत्रु संपत्तियों का निपटारा कर दिया.
HIGHLIGHTS
- सीबीआई ने चार प्राथमिकी में 41 लाभार्थियों को भी आरोपी बनाया है
- शत्रु संपत्ति वर्तमान में भारत की शत्रु संपत्ति संरक्षक (सीईपीआई) के पास है
- भारत में कुल 9,280 शत्रु संपत्ति है. जिसमें यूपी में 4,991 और पश्चिम बंगाल में 2,737 है