सरकार ने सभी किस्म के बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया है. यानि अब देश से बासमती चावल को निर्यात नहीं किया जा सकेगा. हालांकि ये बैन उस चावल पर लगाया गया है जिनके दाम 1200 डॉलर प्रति टन से कम हैं. और साथ ही ये बैन अस्थाई रूप से लगाया गया है, लेकिन इससे होगा क्या? सरकार ने ये फैसला क्यों लिया है और इसका आप पर क्या असर होगा? चलिए समझने की कोशिश करते हैं.
25 अगस्त को सरकार ने पैराबॉइल्ड राइस यानी उबले चावल के निर्यात पर 20 फीसदी एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाने का फैसला किया था. ये फैसला 16 अक्टूबर 2023 तक के लिए हैं. पिछले साल यानी 2022 में भारत से 74 लाख टन उबले चावल का निर्यात किया गया था. दुनिया में भारत के पैराबॉइल्ड राइस की हिस्सेदारी करीब 25 से 30 फीसदी है. जुलाई 2023 में सरकार ने नॉन बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया था और इससे पहले टूटे चावल के निर्यात पर भी बैन लगाया गया था..
अब सवाल है कि आखिर भारत सरकार को ये फैसला क्यों लेना पड़ा? दरअसल, घरेलू मांग को पूरा करने के लिए सरकार को अक्सर इस तरह के फैसले करने होते हैं. भारत सरकार के इस फैसले से चावल के बढ़े दामों पर नियंत्रण किया जा सकता है. यानी चावल की महंगाई काबू में आएगी. कालाबाजारी पर लगाम लगेगी और चावल से जुड़ी सरकारी योजनाओं के लिए भी कोई कमी नहीं आएगी. रिपोर्ट्स बताती हैं कि चावल की रिटेल महंगाई जुलाई में बढ़कर 12.96 प्रतिशत पर पहुंच गई जो जून में 12 प्रतिशत और जुलाई 2022 में 4.3 प्रतिशत रही थी. लेकिन इस सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है. भारत के इस फैसले से ग्लोबल सप्लाई चेन पर असर होगा. दुनिया भर में चावल की कीमतें बढ़ जाएंगी. खासतौर से उन देशों में जहां भारत का चावल आयात किया जाता था.
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बता दें कि दुनिया के चावल एक्सपोर्ट में भारत का कुल हिस्सा 40 फीसदी से भी अधिक है. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि नॉन बासमती सफेद चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगाने के फैसले के बाद दुनिया में चावल की कीमतें 12 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं. आपको याद होगा कि इस फैसले के बाद दुनिया भर से ऐसे कई वीडियो सामने आए थे जिनमें लोगों को चावल के लिए लंबी लाइनों में लगे देखा गया था.
दुनियाभर में चावलों की कीमतों में 15-25 फीसदी तक बढ़ोतरी
अप्रैल के बाद पैराबॉइल्ड चावल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब 26 फीसदी बढ़ी हैं. दुनिया भर में भारत के चावल पर लगाए प्रतिबंधों के बाद कीमतों में करीब 15 से 25 फीसदी तक का इजाफा हुआ है. भारत के निर्यात पर रोक के फैसले के बाद दुनिया के अन्य चावल उत्पादक और निर्यातक देशों ने चावल के दामों में बढोतरी कर दी है. थाईलैंड के अलावा वियतनाम और पाकिस्तान का चावल अब ज्यादा कीमतों को ग्लोबल मार्केट में बेचा जा रहा है. रिपोर्ट बताती हैं कि भारत के प्रतिबंध का असर बांग्लादेश और नेपाल के अलावा अफ्रीकी देशों में सबसे अधिक है जो भारतीय टूटे चावल या भारतीय गैर बासमती सफेद चावल पर निर्भर थे.
अब भारत के ताजा फैसले से अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के कई और हिस्सों में भी चावल की कीमतों में बढोतरी हो सकती है. लेकिन इधर भारत के लिए घरेलू स्थितियों को देखना भी जरूरी है. उपभोक्ता मंत्रालय के आंकडे कहते हैं कि एक जनवरी 2023 को देश में चावल का औसत दाम 37 रुपए 62 पैसे था. जो 27 अगस्त को 41 रुपए 7 पैसे पर पहुंच गया था. और इस फैक्ट को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता कि सीपीआई़ आधारित महंगाई दर बढ़कर 15 महीने के उच्च स्तर यानी 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई थी. और इस महंगाई का बड़ा कारण थी खाद्य महंगाई.
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सब्जी और मसालों के दामों में भी इजाफा
फिलहाल न केवल दालों की कीमतें बढ़ी हुई हैं बल्कि सब्जियों और मसालों की कीमतों में भी खासा इजाफा हुआ है. इस महंगाई को काबू में करने के लिए ही सरकार एक के बाद एक बड़े फैसले ले रही है. न केवल प्याज के निर्यात पर 40 फीसदी शुल्क लगाया गया है बल्कि ऐसा माना जा रहा है कि सरकार चीनी के निर्यात पर भी कोई बड़ा फैसला ले सकती है. इससे पहले सरकार ने गेहूं निर्यात पर भी प्रतिबंध लगाया था. इसके बाद गेहूं के आटे. सूजी और मैदा के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया था.
एक सवाल ये भी है कि आखिर जो भारत दुनिया भर में चावल की सप्लाई कर रहा था. उसने चावल के निर्यात पर रोक क्यों लगा दी. तो इसका जवाब छुपा है मानसून में और खराब मौसम में . और इसका जवाब छिपा है अलनीनो की स्थितियों में. कुल मिलाकर बात यही है कि मौसम भी महंगाई के लिए जिम्मेदार है. अब देखना ये होगा कि ये महंगाई कब तक सताएगी और कब तक मौसम की परछाई से पीछे छूट पाएगा.
वरुण कुमार की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau