एमजीआर यानी एमजी रामचंद्रन, जिन्हें तमिल सिनेमा से लेकर राज्य की राजनीति का एक किंवदंति माना जाता है. वहीं एमजीआर, जिन्होंने तमिलनाडु की मौजूदा सत्ताधारी एआईएडीएमके की 48 साल पहले स्थापना की थी. अब भाजपा उन्हीं एमजीआर की लोकप्रियता को भुनाते हुए राज्य की जनता से भावनात्मक रूप से जुड़ने की कोशिश करती दिख रही है. सूबे में बीजेपी को जड़ों को सींचने के लिए ही पार्टी के चाणक्य और गृह मंत्री अमित शाह दो दिवसीय दौरे पर थे. शाह यूं ही तमिलनाडु नहीं गए. यह भी उन राज्यों में से एक है जहां अगले साल चुनाव होने हैं. बीजेपी के 'चुनावी चाणक्य' की इस दक्षिण राज्य में मौजूदगी के पीछे कुछ ऐसे एंगल भी हैं जो दिखाए नहीं जा रहे, मगर उनपर काम जारी है.
महीने भर में दूसरी बार एमजीआर कार्ड
बीजेपी ने तमिलनाडु में महीने भर में दूसरी बार 'एमजीआर कार्ड' खेला है. गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को तमिलनाडु दौरे के दौरान चेन्नई में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एमजीआर की तस्वीर पर फूल-माला चढ़ाकर विशेष तौर पर श्रद्धांजलि दी. इससे पहले छह नवंबर को पूरे राज्य में वेल यात्रा निकालने के दौरान तमिल सिनेमा के महान अभिनेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन की तस्वीरों का भाजपा ने इस्तेमाल किया था. गृहमंत्री अमित शाह ने एमजीआर को महान नेता बताते हुए कहा कि तमिलनाडु के विकास के लिए उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. माना जा रहा है कि तमिलनाडु के गौरव का प्रतीक बन चुके एमजीआर को उचित सम्मान और तवज्जो देकर भाजपा राज्य की जनता से जुड़ने और दिलों में बसने की कोशिश कर रही है.
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एमजीआर औऱ जयललिता के जरिये राजनीतिक संदेश
सियासी गलियारे में माना जा रहा है कि गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को चेन्नई दौरे के दौरान एआईएडीएमके संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री एमजीआर और जयललिता को श्रद्धांजलि देने के साथ उनकी तारीफ कर राज्य में बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है. तमिलनाडु की राजनीति पर नजर रखने वाले भाजपा के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी ने कहा, 'हर राज्य के कुछ प्रतीक और विभूतियां होती हैं, जिनसे जनता का गहरा जुड़ाव होता है. एमजीआर ऐसी ही विभूति हैं. अगर भाजपा उन्हें सम्मान दे रही है तो बुरा क्या है. वैसे भी राज्य में फिलहाल एआईएडीएमके के साथ गठबंधन है, ऐसे में पार्टी के संस्थापक एमजीआर को सम्मान देने को दूसरे अर्थों में नहीं देखना चाहिए.'
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एम अलगिरि से मुलाकात
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने दौरे के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के बड़े बेटे एम अलगिरि से भी मुलाकात की. यह मुलाकात बेहद मानी जा रही है. वजह यह बताई जा रही है कि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी अलगिरि की संभावित पार्टी केडीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है. अलगिरि डीएमके में काफी उपेक्षित रहे हैं. ऐसे में वह अपनी अलग पार्टी कलैनार डीएमके बनाने पर विचार कर रहे हैं. अलगिरी के केडीएमके के साथ गठबंधन होने से बीजेपी को फायदा हो या न हो, राज्य में मुख्य विपक्षी दल डीएमके को नुकसान जरूर पहुंचेगा.डीएमके के नुकसान में भी बीजेपी अपना फायदा देख रही है, क्योंकि इससे उसकी सहयोगी और सत्ताधारी पार्टी एआईएडीएमके को मदद मिलेगी. इसके अलावा बीजेपी का राज्य में जनाधार नहीं है. उसकी छवि भी तमिलनाडु की प्रमुख पार्टियों की तरह ब्राह्मण विरोधी आंदोलन के अनुकूल भी नहीं है. ऐसे में एक द्रविड़ पार्टी का साथ लेकर बीजेपी प्रदेश में अपने जनाधार के विस्तार की उम्मीद लगाए है.
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एआईएडीएमके से तल्खी और मजबूरी
राज्य में बीजेपी का सत्ताधारी एआईएडीएमके के साथ गठबंधन है. दोनों पार्टियों के बीच हाल के दिनों में तल्खी बढ़ने के संकेत भी मिले हैं. जयललिता के निधन के बाद पार्टी के करीबी कई उद्योगपतियों के यहां छापेमारी और इसके अलावा बागी नेता ओ पनीरसेल्वम के विद्रोह तथा पार्टी के विभाजन तक में बीजेपी का हाथ माना जाता है. बीते छह नवंबर से भाजपा की तमिलनाडु इकाई ने एक महीने के आउटरीच प्रोग्राम के तहत एक यात्रा निकाली थी. जिसमें भाजपा की ओर से एमजीआर की तस्वीरों के इस्तेमाल पर एआईएडीएमके नेताओं ने नाराजगी भी जाहिर की थी. सहयोगी एआईएडीएमके नेताओं का मानना रहा कि भाजपा उनके आइकॉन को अपने फायदे के लिए भुना रही है. बताया जाता है कि एआईएडीएमके के शीर्ष नेतृत्व के पास बीजेपी की ऐसी आक्रामक सियासी नीतियों से निपटने में दक्षता नहीं थी. ऐसे में पार्टी का बीजेपी से गठबंधन को मजबूरी ही माना जा रहा है. हाल ही में वेल यात्रा को लेकर बीजेपी और एआईएडीएम के मतांतर खुलकर सामने आए थे. सत्ताधारी दल ने राज्य में बीजेपी के वेल यात्रा पर रोक लगा दी थी. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव से तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके से भाजपा का गठबंधन है. फिर भी तल्खी के बीच अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का एआईएडीएमके गठबंधन के साथ उतरना तय माना जा रहा है. हालांकि, भाजपा राज्य में अपने दम पर पार्टी का विस्तार करने की कोशिशों में जुटी है. लगातार पार्टी एक्शन मोड में है.
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वेल यात्रा से माहौल बना रही बीजेपी
विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी की वेल यात्रा को लेकर भी राज्य में जबर्दस्त कोहराम मचा है. बीजेपी की एक महीने के लिए निर्धारित इस यात्रा का समापन 6 दिसंबर को होना है. ऐसे में बीजेपी के इस अभियान को लेकर न सिर्फ सत्ताधारी दल बल्कि तमिलनाडु के विपक्षी दल भी नाराज हैं. विपक्षी दलों ने सरकार ने अनुरोध किया है कि इस यात्रा पर तत्काल रोक लगाई जाए. कोरोना वायरस का हवाला देते हुए राज्य सरकार ने बीजेपी को वेल यात्रा की परमिशन नहीं दी है लेकिन बीजेपी भी आर-पार के मूड में यात्रा को जारी रखना चाहती है. इस वजह से कई बीजेपी नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया है. वेल यात्रा को विपक्षी दल राज्य में दंगा फैलाने की साजिश बता रहे हैं. राज्य सरकार ने भी प्रदेश में कट्टरता को हावी न होने देने का हवाला देते हुए इस यात्रा पर रोक लगाने की बात कही थी. हालांकि, बीजेपी ने इन सब आरोपों का खंडन किया है. वेल यात्रा में बीजेपी का राजनीतिक उद्देश्य तो है, यह बात तमिलनाडु के पार्टी अध्यक्ष मुरुगन के इस बात से साफ हो जाती है, जो उन्होंने यात्रा की शुरुआत में कहा था. मुरुगन ने कहा था कि वेल यात्रा राज्य की राजनीति का टर्निंग पॉइंट साबित होगी.
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बीजेपी की राज्य में स्थिति
बीजेपी की तमिलनाडु में बहुत मजबूत उपस्थिति नहीं है. बीते विधानसभा चुनाव की बात करें तो प्रदेश की 232 सीटों के लिए 2016 के चुनाव में डीएमके को 89 सीटें मिली थीं और एआईएडीएमके को 134 सीटें हासिल हुई थीं. वहीं, बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी। साल 2016 के चुनाव में तमिलनाडु में बीजेपी को 2.86 फीसदी वोट मिले थे. इन सबके बावजूद बीजेपी तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव को लेकर माहौल बना रही है. प्रदेश में जमीनी स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पार्टी हर वह चीज कर रही है, जो उसे सही लगता है. इसके लिए बीजेपी अपने सहयोगी दलों से भी टकराव मोल लेने में गुरेज नहीं कर रही है. बीते चार सालों से पार्टी लगातार मीडिया में बनी हुई है. बताया गया कि तमिलनाडु के किसी भी क्षेत्रीय न्यूज चैनल पर डिबेट के दौरान बीजेपी का एक नेता जरूर मौजूद रहता है.