नेपाल में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पहल पर भंग हुई संसद के बाद सियासी पारा चढ़ा हुआ है. एक समय नक्शे समेत भारतीय सीमा के हिस्सों को अपना बता कर भारत विरोध पर डटे ओली के तेवर बीते दिनों कुछ नरम पड़े हैं. इसके पीछे पीएम नरेंद्र मोदी की कूटनीति ज्यादा जिम्मेदार है, जिसके तहत कई दिग्गजों ने नेपाल दौरा किया. हालांकि ओली के तेवरों में ढील आती देख अब चीन फिर से सक्रिय हो गया है. काठमांडू में चीनी राजदूत के हाथ से बाजी निकलते देख बीजिंग प्रशासन अपना एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल रविवार को काठमांडू भेज रहा है. मकसद सिर्फ यही है कि कैसे इस सागरमाथा वाले देश पर ड्रैगन की पकड़ कमजोर नहीं पड़ने पाए.
आज काठमांडू पहुंचेगा चीनी उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल
इतना तो साफ है कि ओली के हालिया कदम से नेपाल की सत्तारूढ़ गठबंधन पार्टी में दो फाड़ हो गए हैं. एक का नेतृत्व केपी शर्मा ओली कर रहे हैं, जिन पर कुर्सी पर जमे रहने के लिए चीन की आक्रामक नीतियों को नजरअंदाज करने समेत साम-दाम-दंड भेद अपनाने का आरोप है. वहीं दूसरे खेमे का नेतृत्व पुष्प कमल दहल प्रचंड के हाथों में है. फिलवक्त चीन प्रचंड को ही अपने वश में करने के लिए अपना एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेज रहा है. इसके पहले चीनी राजदूत होऊ यांकी प्रचंड से कई दौर की बातचीत कर चुकी हैं.
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ओली की संसद भग करना चीन के लिए बड़ा झटका
प्राप्त जानकारी के मुताबिक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग के सबसे वरिष्ठ वाइस मिनिस्टर गुओ येझाओ चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ काठमांडू पहुंच रहे हैं. यहां उनका एकमात्र उद्देश्य नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में हो चुके विभाजन को फिर से बदलने का प्रयास करना है. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के द्वारा संसद विघटन करने के फैसले के बाद, चीन के द्वारा बनाई गई इस पार्टी में भी विभाजन हो चुका है और अब चुनाव आयोग के फैसले के बाद विभाजन की औपचरिकता भी पूरी हो जाएगी. यह चीन के लिए किसी झटके से कम नहीं है. एक तो उसकी बनाई पार्टी विभाजित हो गई और नेपाल की सत्ता पर उसकी पकड़ भी ढीली पड़ गई है.
प्रचंड समेत भारत के पक्षधर नेताओं को मनाएगा चीन
इस पूरे प्रकरण में ओली को दोषी मानते हुए चीन की यह रणनीति है कि वह ओली को सत्ता से बेदखल करे और प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाए, ताकि ओली खेमे में रहे नेता प्रचंड की तरफ आ जाएं और ओली बिल्कुल अलग-थलग पड़ जाएं. इस रणनीति के तहत पिछले 24 घंटे में काठमांडू स्थित चीनी राजदूत होऊ यांकी ने प्रचंड से तीन बार मुलाक़ात की है. किसी भी हालत में संसद पुनार्स्थापित करने और प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाने के लिए दौड़-धूप कर रहे यांकी ने माधव नेपाल, झलनाथ खनाल, बामदेव गौतम सहित कई नेताओं से मुलाकात कर अपना इरादा बता दिया है.
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भारत ने भी चले मजबूत दांव
हालांकि नेपाल की प्रमुख प्रतिपक्षी दल 'नेपाली कांग्रेस' ने स्पष्ट कर दिया है कि वो ओली के द्वारा उठाए गए असंवैधानिक कदम के खिलाफ जरूर है, लेकिन ताजा जनादेश लेने के लिए चुनाव में जाने से पीछे नहीं हटेगी. यानी कि कांग्रेस पार्टी ने चीन के चंगुल में नहीं फंसने का संकेत दे दिया है. इसके पीछे भारत की मोदी सरकार की कूटनीति कहीं अधिक जिम्मेदार है. इसके तहत सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे, रॉ प्रमुख सामंत गोयल समेत बीजेपी की अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रकोष्ठ के प्रमुख के विजय चौथाईवाले की काठमांडू यात्रा के भी कम मायने नहीं हैं. इनकी यात्रा के बाद ही ओली ने चीन के चंगुल से निकलने के लिए असंवैधानिक कदम उठाते हुए संसद भंग करा दी.
चीनी राजदूत के इशारे पर नाच रहे थे ओली
गौरतलब है कि ओली पर चीन की राजदूत हाओ यांकी के इशारों पर चलने के गंभीर आरोप हैं. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल में यह सियासी उथल-पुथल ऐसे समय पर हो रहा है जब चीन और भारत के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. यही नहीं, भारत और चीन दोनों ही नेपाल में अपनी मनपसंद सरकार को लाने के लिए पूरी ताकत झोके हुए हैं. ओली के नेतृत्व में नेपाल अब तक चीनी राजदूत के इशारे पर एक के बाद एक भारत विरोधी कदम उठा रहा था. चीन ने ओली के नेतृत्व में नेपाल से काफी फायदा उठाया लेकिन नए राजनीतिक तूफान से ड्रैगन को करारा झटका लगा है. अपने कार्यकाल के दौरान ओली अपने चुनावी वादों को भी पूरा नहीं कर पाए, इस कारण भी अंदरूनी 'प्रचंड दबाव' उन पर था.
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छवि पर आए भारत विरोधी छीटें
हालांकि ऐसा नहीं है कि ओली ने 'प्रचंड दबाव' को कम करने के लिए ही सियासी भूचाल लाने वाला कदम उठाया. इसके पीछे उनकी और पार्टी के दामन पर पड़े छींटें भी कम जिम्मेदार नहीं है. ओली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री पर आरोप लगा है कि उन्होंने चीन से कोरोना वायरस को रोकने के लिए मंगाए गए उपकरणों की खरीद में भ्रष्टाचार किया. राजनीतिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि चीन से जिन उपकरणों को मंगाया गया उसके लिए बाजार दर से ज्यादा पैसा लिया गया. नेपाल की भ्रष्टाचार निरोधक संस्था इसकी जांच कर रही है.