अब इसमें कोई भी संदेह नहीं रह गया है कि जून में लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच हुआ हिंसक संघर्ष ड्रैगन की एक पूर्वनियोजित साजिश थी. वास्तव में चीन अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति के तहत जापान से लेकर दक्षिण एशिया में भारत सरीखे पड़ोसी देशों को सैन्य गतिरोध के जरिये उकसाता आ रहा था. बीजिंग इसके लिए अपने पड़ोसी देशों से सैन्य या सुरक्षा बलों के जरिये गतिरोध कायम रखना चाहता था. चीन की इस नापाक चाल का खुलासा बुधवार को एक अमेरिकी रिपोर्ट में किया गया है.
अमेरिकी रिपोर्ट में चीनी साजिश का खुलासा
चीनी सैनिकों संग हुई हिंसक झड़प में भारत को अपने 20 जवानों की शहादत देनी पड़ी थी, जबकि चीन की पिपुल्स लिबरेशन आर्मी के भी अच्छी-खासी संख्या में जवान संघर्ष में मारे गए थे. 1975 के बाद से यह पहला मौका था जब भारत-चीन को हिंसक संघर्ष में अपने सैनिकों की जान गंवानी पड़ी. इसके बाद से ही भारत-चीन के बीच शुरू हुए गतिरोध को कई माह बीत चुके हैं. अब युनाइटेड स्टेट्स चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन ने कांग्रेस को लगभग 587 पन्नों की एक रिपोर्ट प्रेषित की है. यह रिपोर्ट बताती हैं कि बीजिंग प्रशासन ने गलवान हिंसा की तैयारी पहले से एक नापाक साजिश के तहत कर रखी थी. उसकी इस पूर्व नियोजित साजिश में हिंसक झड़प के दौरान मारे जाने वाले सैनिकों को लेकर भी अच्छे से सोचा-विचारा गया था.
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चीनी रक्षा मंत्री ने की थी सशस्त्र संघर्ष की वकालत
इस अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि गलवान संघर्ष से कुछ हफ्ते पहले चीनी रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगही ने साफ-साफ कहा था कि चीन को पड़ोसी देशों से लगती अपनी सीमाओं पर स्थायित्व लाने के लिए सशस्त्र संघर्ष से परहेज नहीं करना चाहिए. चीनी रक्षा मंत्री के इस उकसावे भरे बयान के कुछ ही दिन बाद चीनी प्रशासन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स की संपादकीय में लिखा गया कि अगर भारत चीन-अमेरिकी संघर्ष में उलझता है तो उसे व्यापार औऱ आर्थिक संबंधों के मोर्चे पर बहुत बड़ा झटका लगेगा.
अपने इरादों में नाकाम रहा चीन
रिपोर्ट में ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन की तनवी मदान के हवाले से कहा गया है कि गलवान के हिंसक संघर्ष से लगभग हफ्ते भर पहले से गलवान घाटी में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के एक हजार सैनिकों को जमावड़ा था. इसी रिपोर्ट में कुछ विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि चीन की इस पूर्व नियोजित साजिश को भारत के कूटनीतिक और सैन्य जवाब से गहरा झटका लगा. अमेरिका संग भारत को एक साथ आने और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर निर्माण से रोकने के ड्रैगन के प्रयासों को गहरी ठेस पहुंची है. बीजिंग प्रशासन किसी भी लिहाज से गलवान संघर्ष को अपनी सफलता करार नहीं दे सकता है. चीन की आक्रामकता भारत के संदर्भ में निष्प्रभावी रही है.
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दर्दनाक इतिहास है गलवान घाटी का
गौरतलब है कि गलवान घाटी क्षेत्र का इतिहास बेहद दर्दनाक है. लदाख में एलएसी पर स्थित गलवान इलाके को चीन ने अपने कब्जे में ले रखा है. चीन के अतिक्रमण को रोकने के लिए भारतीय जवान गलवान नदी में भी नाव के जरिए नियमित गश्त करते हैं. गलवान घाटी भारत की तरफ लदाख से लेकर चीन के दक्षिणी शिनजियांग तक फैली है. यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह पाकिस्तान और चीन के शिनजियांग दोनों के साथ लगा हुआ है.
गुलाम रसूल पहलवान का नाम पर है गलवान घाटी
गलवान नदी का नाम गुलाम रसूल गलवान के नाम पर पड़ा था. वह लेह के रहनेवाले ट्रेकिंग गाइड थे. साल 1900 के आसपास उन्होंने गलवान नदी को खोजा था. गलवान नदी काराकोरम रेंज के पूर्वी छोर में समांगलिंग से निकलती है, फिर पश्चिम में जाकर श्योक नदी में मिल जाती है. साल 1962 में भारत-चीन के बीच हुए भयानक युद्ध की नींव गलवान इलाका ही माना जाता है. तब गलवान के आर्मी पोस्ट में 33 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई दर्जनों को बंदी बना लिया गया था. इसके बाद से चीन ने अक्साई-चिन पर अपने दावे वाले पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. यहीं से भारत-चीन के बीच युद्ध की शुरुआत हुई.
Source : News Nation Bureau