China-Taiwan Tensions: चीन और ताइवान के बीच लंबे समय से चला आ रहा विवाद गहराता जा रहा है. अमेरिकी नेता नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा ने दोनों देशों के बीच एक नए विवाद को जन्म दे दिया है. पेलोसी के वापस जाते ही चीन ने ताइवान का घेराव शुरू कर दिया है. ऐसे में दोनों देशों के बीच युद्द की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता. चीन और ताइवान में जारी तनातनी के बीच हम आपको बताते हैं कि आखिर ये विवाद है क्या...
यह बात 1895 में उस समय की है
दरअसल, इस झगड़े को पूरी तरह समझने के लिए हमें अतीत में लौटना होगा. यह बात 1895 में उस समय की है, जापान एक बहुत शक्तिशाली राष्ट्र था. उसी समय चीन में चिंग राजवंश का शासन था. इस वंश का शासन अत्यंत कमजोर था, जिसका फायदा उठाकर जापान ने चीन पर हमला कर दिया और उसके एक बहुत बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया जिसको बाद में कोरिया और ताइवान के नाम से जाना गया. वैश्विक इतिहास में इसको प्रथम चीन-जापान युद्ध के नाम से जाना जाता है. 1945 में जब अमेरिका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला किया तो यह सुपर पॉवर देश बिखर गया और कोरिया और ताइवान उसके अधिकार से बाहर आ गए. ताइवान ने अपने आप को एक स्वतंत्र देश घोषित कर लिया.
नेशनलिस्ट और कम्युनिस्ट पार्टी का उदय
वहीं, जापान से मिली हार के बाद चीन का चिंग वंश कई छोटे-छोटे राजवंशों में बिखर गया, जिसको एक करने का बीड़ा उठाया वहां के एक प्रभावशाली नेता सन-यात-सेन ने 1912 में एक पार्टी का गठन किया. सेन बिखरे हुए चीन को एक करने के अपने इस प्रयास में बहुत हद तक सफल हो गए थे, लेकिन तभी 1925 में उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद पार्टी दो हिस्सों में बंट गई, जिसमें एक नेशनलिस्ट और कम्युनिस्ट पार्टी कहलाई. नेशनलिस्ट पार्टी को लीड कर रहे थे चार्ज कई शेक और कम्युनिस्ट के माओ जेडोंग. इसमें नेशनलिस्ट उदारवादी धड़ा था और कम्युनिस्ट तानाशाही.
चीन में सिविल वॉर छिड़ गया
दोनों ही नेता चीन पर अपना अधिकार करना चाहते थे, जिसको लेकर उनमें संघर्ष शुरू हो गया. 1927 में नेशनलिस्ट पार्टी ने चीन के शंघाई शहर में कम्युनिस्टों पर जुल्म ढाए और भयंकर कत्लेआम किया. इस युद्द में कम्युनिस्टों की करारी हार हुई. इस नरसंहार की वजह से चीन में सिविल वॉर छिड़ गया, जो 1950 तक चला. इसका फायदा उठाकर जापान ने चीन के मंचूरिया राज्य पर कब्जा कर लिया.
1950 तक चीन में नेशनलिस्ट पार्टी का एक भी समर्थक नहीं बचा
जापान को रोकने के लिए नेशनलिस्ट और कम्यूनिस्ट एक हो गए. लेकिन जापान को हरा नहीं सके. इतिहास में इस लड़ाई को सेकेंड साइनो-जापान वॉर का नाम दिया. 1945 में जापान के कमजोर पड़ने के बाद कम्युनिस्टने नेशनलिस्ट पार्टी के नेताओं व समर्थकों पर भयंकर अत्याचार शुरू कर दिए और उनको चीन से बाहर खदेड़ दिया. नेशनलिस्टों को चीन छोड़कर फारमूसा ( ताइवान) नामक द्वीप पर बसना पड़ा. 1950 तक चीन में नेशनलिस्ट पार्टी का एक भी समर्थक नहीं बचा. नेशनलिस्टों ने ताइवान को असली चीन बताते हुए उसको रिपब्लिक ऑफ चाइना घोषित कर दिया. वहीं, कम्युनिस्टों ने ताइवान को अपना हिस्सा बताते हुए चीन को पिपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना घोषित कर दिया. 1971 में संयुक्त राष्ट्र ने ताइवान की जगह चीन को मान्यता दी. तब से दोनों देश एक-दूसरे को अपना हिस्सा बताते हैं.
Source : Mohit Sharma