पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान दो मामले प्रमुखता से उठ रहे थे. पहला, अकाली दल के नेता बिक्रमजीत सिंह मजीठिया पर ड्रग मामला, दूसरा, राज्य में बेअदबी मामलों की संख्या में वृद्धि. दोनों मामलों से पहला मामला शिरोमणि अकाली दल के शीर्ष नेतृत्व से जुड़ा था. बिक्रमजीस सिंह मजीठिया सुखबीर सिंब बादल के साले और हरसिमरत कौर बादल के भाई हैं. दोनों मामलों ने शिरोमणि अकाली दल को भारी नुकसान उठाना पड़ा. राज्य में उस दौरान दबी जुबान से यह कहा ज ारहा था कि बेअदबी मामले में कहीं न कहीं शिरोमणि अकाली दल का हाथ है.
इस धारणा ने शिरोमणि अकाली दल को चुनाव के दौरान राजनीतिक रसातल में फेंक दिया. हालांकि, बेअदबी के मामलों में विशेष जांच दल (एसआईटी) की वर्चुअल क्लीन चिट शिअद को राज्य में राजनीतिक समीकरणों में अपनी जगह बनाने का मौका दे सकती है. लेकिन संगरूर लोकसभा उपचुनाव में सिमरनजीत सिंह मान की जीत ने शिरोमणि अकाली दल से यह मौका भी छीनती नजर आ रही है. फिलहाल देखना यह है कि आने वाले दिनों में पंथक वोट किस करवट बैठता है. बेअदबी के मामलों में शामिल होने के आरोपों के चलते हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में अकाली दल विधानसभा की 117 सीटों में से सिर्फ तीन सीटें जीतने में ही सफल रही थी.
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं के बेअदबी के मामलों में अकाली दल के शामिल होने के मुद्दे को आक्रामक रूप से उठाया था, जो मालवा, दाओबा और माझा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उसकी हार का कारण बना. कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू, जो अब रोड रेज के एक मामले में जेल में बंद हैं, बे अदबी मामलों पर अपनी स्थिति का बचाव करने के लिए पार्टी को नीचे गिराने में कामयाब रहे थे.
अकाली दल को नहीं मिला पंथिकों का सहारा
इसने हाल ही में हुए संगरूर उपचुनावों में हमले को बेअसर करने की कोशिश की, खोई हुई जमीन को वापस पाने की उम्मीद में कट्टर पंथिक राजनीति का सहारा लिया. लेकिन बेअदबी के दाग मिटाना मुश्किल था. एक आतंकी मामले में एक सिख दोषी की बहन को खड़ा करने के बावजूद, पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से भी पीछे रह गई. यहां तक कि पार्टी द्वारा अपने पारंपरिक वोट बैंक को वापस लेने के लिए उठाए गए सिख कैदियों के मुद्दे का भी वांछित परिणाम नहीं मिला.
एसआईटी, सीबीआई जांच
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह और उनके अनुयायियों को बेअदबी के मामलों दोषी ठहराने के लिए गठित एसआईटी की जांच और 467 पन्नों की रिपोर्ट में तत्कालीन सीएम प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल का जिक्र नहीं करने से अकाली दल को फायदा मिलेगा. और कांग्रेस और AAP पर निशाना साधने और 2024 के चुनावों से पहले राज्य की राजनीति में अपने पैर जमाने में मदद कर सकता है.
महानिरीक्षक सीमा रेंज एसपीएस परमार की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय एसआईटी का गठन पिछले साल अप्रैल में किया गया था. एसआईटी के पूर्व प्रमुख कुंवर विजय प्रताप द्वारा दायर आरोप पत्र को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था.
प्रताप, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं और आप विधायक हैं, द्वारा की गई जांच में पाया गया कि पंजाब में शिअद-भाजपा शासन के दौरान, गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाएं सुखबीर सिंह बादल, तत्कालीन डीजीपी सुमेध सिंह सैनी और सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा की पूर्व नियोजित करतूत थीं.”
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गौरतलब है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की एक पूर्व जांच ने डेरा की संलिप्तता से इनकार किया था और किसी भी राजनीतिक लिंक से इनकार किया था. लेकिन तत्कालीन पंजाब सरकार ने सीबीआई के निष्कर्षों को खारिज कर दिया था.
परमार के नेतृत्व वाली वर्तमान एसआईटी ने डेरा की भूमिका को खारिज करने वाले सीबीआई के दावों को भी खारिज कर दिया. सीबीआई ने हाल ही में नाभा जेल में कथित संलिप्तता और हत्या के आरोप में डेरा अनुयायी मोहिंदर पाल बिट्टू को क्लीन चिट दे दी थी. सीबीआई ने आरोपियों के खिलाफ सबूतों के अभाव में मामले की जांच बंद कर दी थी.
HIGHLIGHTS
- बिक्रम सिंह मजीठिया पर ड्रग मामले से अकाली दल की छवि हुई धूमिल
- चुनाव के समय राज्य में बेअदबी मामलों की संख्या में हुई थी वृद्धि
- एसआईटी की रिपोर्ट में नहीं है प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल का नाम