कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक से ठीक एक दिन पहले पार्टी में नया सियासी बवंडर खड़ा हो गया है. जमीनी स्तर पर जुड़े पार्टी अध्यक्ष समेत संगठन स्तर पर आमूलचूल बदलाव की मांग को लेकर अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को 23 वरिष्ठ नेताओं की ओर से पत्र लिखे जाने की जानकारी सामने आई. एक लिहाज से देखें तो नेतृत्व के मुद्दे पर पार्टी दो खेमे में बंटी नजर आ रही है. हालांकि अंदरूनी सूत्रों की मानें तो इस मसले पर पार्टी के वरिष्ठ और युवा नेता आमने-सामने हैं. पार्टी के अंदर एक बड़ा तबका वरिष्ठ नेताओं की इस चिंता को कांग्रेस (Congress) नेतृत्व पर दबाव और अपने भविष्य की चिंता के तौर पर देख रहा है ताकि संगठन में उनका दबदबा बरकरार रहे.
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आज सोनिया दे सकती हैं इस्तीफा
हालांकि इस पत्र की खबर सामने आने के साथ ही पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ एवं युवा नेताओं ने सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में भरोसा जताया और इस बात पर जोर दिया कि गांधी-नेहरू परिवार ही पार्टी को एकजुट रख सकता है. कांग्रेस की कई प्रदेश इकाइयों के अध्यक्षों और सांसदों ने भी सोनिया गांधी को पत्र लिखकर उनके और राहुल गांधी के नेतृत्व में विश्वास जताया है. कांग्रेस के भीतर यह पूरा बवंडर सीडब्ल्यूसी की बैठक से एक दिन पहले शुरू हुआ. यह बैठक सोमवार सुबह वीडियो कांफ्रेस के माध्यम से होनी है. कुछ खबरों में कहा गया कि इस बैठक में सोनिया गांधी पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश कर सकती हैं.
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कांग्रेस का नया अध्यक्ष समय के गर्भ में
कांग्रेस का नया अध्यक्ष कौन होगा, यह वक्त तय करेगा. पार्टी के अंदर पूर्णकालिक अध्यक्ष की मांग ने कांग्रेस को लगभग दो हिस्सों में बांट दिया है. सूत्रों की मानें तो पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकतर नेताओं के कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बहुत अच्छे रिश्ते नहीं है, क्योंकि राहुल गांधी ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद युवा नेतृत्व पर ज्यादा भरोसा जताया है. राजस्थान संकट में राहुल गांधी ने गुलाम नबी आजाद और मुकुल वासनिक की जगह अजय माकन और रणदीप सुरजेवाला पर भरोसा किया.
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पत्र वास्तव में राहुल गांधी के प्रति अविश्वास
कांग्रेस के कई नेता इस पत्र को राहुल गांधी के खिलाफ अविश्वास के तौर पर भी देख रहे हैं. पार्टी ने पिछले एक माह में कई बार अधिकारिक तौर पर दोहराया है कि पूरी पार्टी राहुल गांधी को अध्यक्ष पद पर देखना चाहती है. यह पत्र राहुल गांधी के मुद्दे पर पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़े करता है. इसके साथ पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले नेताओं को अपने भविष्य की चिंता है. गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता है. उनका राज्यसभा का कार्यकाल अगले साल फरवरी में पूरा हो रहा है. कश्मीर से उन्हें राज्यसभा सीट मिलनी लगभग नामुमकिन है. ऐसे में पार्टी उनकी जगह किसी दूसने नेता को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बना सकती है. संगठन में उनके पास कोई पद नहीं है. ऐसे में वह संगठन के अंदर अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं.
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सबके अपने-अपने स्वार्थ
ऐसे ही लोकसभा सांसद मनीष तिवारी और शशि थरुर लोकसभा में संसदीय दल का नेता नहीं बनाए जाने से नाराज हैं. यूपीए-दो सरकार को लेकर पार्टी में उठे सवालों पर भी मनीष तिवारी ने काफी अक्रामक रुख अपनाया था. उन्होंने यह सवाल भी उठाए थे कि 2014 में हार के साथ 2019 के हार के कारणों पर भी विचार किया जाना चाहिए. इस लिहाज से देखें तो पार्टी अध्यक्ष को भेजे पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले नेताओं में सबसे चौकाने वाला नाम मुकुल वासनिक और मिलिंद देवड़ा है. मिलिंद के राहुल गांधी के साथ अच्छे रिश्ते रहे हैं, पर महाराष्ट्र से राज्यसभा नहीं मिलने से देवड़ा नाराज हैं. यही वजह है कि यूपीए-दो सरकार को लेकर पार्टी के अंदर उठी आवाजों को लेकर वह काफी मुखर रहे हैं. उन्होंने पार्टी नेतृत्व को भी घेरा था.
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हंगामेदार रहेगी सीडब्ल्यूसी की बैठक
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल शास्त्री मानना है कि इस तरह के पत्र से पार्टी को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि नुकसान होगा. हालांकि वह इस बात से सहमत है कि कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है. पार्टी के एक नेता ने कहा कि राहुल गांधी अब भी पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी नहीं संभालते हैं, तो पार्टी के अंदर इस तरह के गुट और मजबूत होते जाएंगे. हालांकि इतना तय है कि सीडब्ल्यूसी की बैठक के हंगामेदार रहने के आसार हैं. बैठक में असंतुष्ट नेताओं द्वारा उठाये गये मुद्दों पर चर्चा और बहस होने की संभावना है. गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी की बागडोर 1998 में संभाली और सभी चुनौतियों के बावजूद उन्होंने पार्टी को एकजुट रखा हुआ है.