दिल्ली हिंसाः अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट एकतरफा और सांप्रदायिक, राष्ट्रपति को खुला पत्र

दिल्ली में भड़की हिंसा (Delhi Violence) पर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट को एकतरफा, पक्षपाती और सांप्रदायिक बताते हुए बुद्धिजीवियों औऱ शिक्षाविदों के समूह (GIA) ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को खुला पत्र लिखा है.

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Nihar Saxena
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Delhi Violence

रिवॉल्वर लेकर पुलिस को धमकाने वालों को किया रिपोर्ट में नजरअंदाज.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में दिल्ली में भड़की हिंसा (Delhi Violence) पर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रिपोर्ट विगत 10 जुलाई को प्रस्तुत कर दी है. अब इसी रिपोर्ट को एकतरफा, पक्षपाती और सांप्रदायिक बताते हुए बुद्धिजीवियों औऱ शिक्षाविदों के समूह (GIA) ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) को एक खुला पत्र लिखा है. इसमें रिपोर्ट के तमाम अंशों पर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया है कि दिल्ली दंगों के कारणों पर इस तरह एकतरफा, वह भी मीडिया के एक समूह का आधार बनाते हुए रिपोर्ट वास्तव में विक्टिम कार्ड ही खेल रही है.

तथ्यों की अनदेखी कर मीडिया की रिपोर्ट को बनाया आधार
राष्ट्रपति को संबोधित खुले पत्र में पहला आरोप भी यही है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग विक्टिम कार्ड खेल रहा है. पत्र में कहा गया है कि पूर्वी दिल्ली को हिंसा की आग में झोंक देने वाली दंगे पूर्व नियोजित थे, जो एक खास समुदाय के लोगों को सबक सिखाने के लिए ही अंजाम दिए गए थे. जीआईए का कहना है कि रिपोर्ट में कहा गया कि हिंसा के बाद की गई लीपापोती में दंगों के रणनीतिकारों, नेताओं औऱ दोषियों को बचाते हुए पीड़ितों को ही दोषी बना दिया गया. इसके लिए मीडिया के एक खास समूह की रिपोर्टिंग को आधार बनाया गया. जीआईए का साफतौर पर आरोप है कि इसके लिए तथ्यों और जमीनी हकीकत को आधार नहीं बनाते हुए मीडिया के एक हिस्से का आधार बनाया गया.

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सीएए विरोधी धरना-प्रदर्शन शांतिप्रिय नहीं था
यही नहीं, जीआईए का आरोप है कि विक्टिम कार्ड खेलते हुए अल्पसंख्यक आयोग ने यह तथ्य भी नजरअंदाज किया कि सीएए का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं है. इसके बावजूद रिपोर्ट में कहा गया कि धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया गया. उन्हें भारत का नागरिक मानने के बजाय एक दूसरे संप्रदाय का ही माना गया. इस भेदभाव और उससे उपजी नफरत से ही सीएए के खिलाफ अल्पसंख्यक एकत्र होकर धरना-प्रदर्शन में भाग लेने लगे, जो विधि सम्मत और शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित किए जा रहे थे. यहां भी दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने झूठ का ही सहारा लिया कि धरना-प्रदर्शन शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित किए जा रहे थे. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि दिल्ली दंगों पर 13 मामले दर्ज किए गए और इनमें से सात पूर्वी दिल्ली की हिंसा से जुड़े हुए थे. यानी सीएए विरोधी धरना-प्रदर्शन शांतिप्रिय नहीं था.

एकतरफा रिपोर्ट
इसके साथ ही जीआईए ने आरोप लगाया है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने 'प्रो-सीएए रैली (प्रदर्शनकारी)' शब्द भी गढ़ा. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस-प्रशासन के सहयोग से प्रो-सीएए प्रदर्शनकारियों ने हिंसा का नंगा-नाच खेला, जिसकी जद में अधिकतर दिल्ली के मुसलमान ही आए. जीआईए ने सवाल उठाया है कि आखिर यह प्रो-सीएए प्रदर्शनकारी कौन थे, क्या सीएए लागू होने से उन पर कोई असर पड़ रहा था. इसके साथ ही समूह ने हिंसा के राजनीतिकरण का आरोप भी अल्पसंख्यक आयोग पर मढ़ा है. जीआईए का कहना है कि दिल्ली हिंसा के लिए कपिल मिश्रा और बीजेपी पर उकसावेपूर्ण बयानबाजी का आरोप लगाया गया. इसके विपरीत कांग्रेस की सफूरा जरगर-इशरत जहां तो अर्बन नक्सल जेहादी संगठन मसलन पिंजरा तोड़ औऱ जमात-ए-इस्लामी की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया गया. अब दिल्ली पुलिस की जांच भी यही संकेत दे रही है कि कांग्रेस और जमात से जुड़े लोगों ने धरना-प्रदर्शन को हिंसा के दवानल में बदला.

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भारत को बदनाम करने की साजिश है रिपोर्ट
इसके साथ ही जीआईए ने साफतौर पर आरोप लगाया है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट भारत देश को बदनाम करने का प्रयास भर है. इसके लिए उन्होंने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष के पिछले कारनामों का जिक्र किया है. गौरतलब है कि अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पक्षपात और मिलीभगत होने से कानून व्यवस्था बनाए रखने के जिम्मेदार हिंसा का खुद अंग हो गए. जीआईए का साफतौर पर कहना है कि यह रिपोर्ट देश की कानून-व्यवस्था को ही कठघरे में खड़ा करती है. जीआईए का कहना है कि चार्जशीट में जिन नामों को शामिल किया जाता है, उनके खिलाफ सबूत और तथ्यों के आधार पर फैसला लिया जाता है. इस तरह जांच प्रक्रिया को ही अलग दिशा देने की कोशिश करती है दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट.

कपिल का तो नाम बाकी भड़काऊ बयान देने वाले कहां गए
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम से भड़काऊ बयानबाजी करने का आरोप लगाया गया है. इसके उलट सच्चाई यही है कि योगी आदित्यनाथ ने ऐसा कोई भी भड़काऊ बयान कभी दिया ही नहीं. इसके साथ ही अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट में कपिल मिश्रा के भड़काऊ बयानों का जिक्र है. इसके विपरीत सोनिया गांधी, वारिस पठान, अमानतुल्लाह खान, उमर खालिद, शरजील इमाम, शरजील उस्मानी समेत कम से कम 300 भड़काऊ भाषणों का कहीं कोई जिक्र नहीं किया गया है.

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अल्पसंख्यक आयोग खुद को ही मान बैठा न्यायपालिका
जीआईए ने राष्ट्रपति से साफतौर पर कहा है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने खुद ही न्यायपालिका होने का मुगालता पाल कर रिपोर्ट तैयार की है. खासकर जब अल्पसंख्यक आयोग की टीम ने महज एक दिन ही हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया. ऐसे हिंसा में महज एक दिन में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है. इसके विपरीत अल्पसंख्यक आयोग ने सारा दोष चुने हुए लोगों पर ही मढ़ दिया है. इस खुले पत्र पर जीआईए कन्वेनर मोनिका अरोड़ा समेत रामलाल आनंद यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रेरणा मल्होत्रा, मिरांडा हाउस कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर सोनाली चितालकर, दिल्ली यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ श्रुति मिश्रा और इंस्टीट्यू ऑफ होम इकोनॉमिक्स की असिस्टेंट प्रोफेसर दिव्यांशा शर्मा के हस्ताक्षर है.

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