दिल्ली दंगों को लेकर के कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई. पुलिस की जांच पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि ये दंगे दिल्ली पुलिस की विफलता के लिए हमेशा याद रखे जाएंगे. कोर्ट ने कहा कि एक ही अपराध के लिए पांच बार पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. पुलिस ने भी जांच के नाम पर कोर्ट की आंखों में पट्टी बांधने का काम किया. कोर्ट को यह भी पुलिस को बताना पड़ा कि एक ही संज्ञेय अपराध के लिए पुलिस 5 एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती है. सवाल यह कि क्या पुलिस को इस बात की जानकारी नहीं थी कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही कह चुका है कि एक ही अपराध के लिए अलग-अलग एफआईआर दर्ज नहीं किया जा सकता है.
गुरुवार को हुए सुनवाई में कोर्ट ने आरोपी ताहिर हुसैन के भाई शाह आलम और दो अन्य लोगों को आरोपों से मुक्त करते हुए बारी कर दिया था. सबूतों के अभाव में तीन लोगों को बरी करना क्या करदाताओं की गाढ़ी कमाई की भारी बर्बादी नहीं है. सवाल यह है कि पुलिस से आखिर चूक कहां हो गई. पुलिस इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है.
पुलिस की विफलता के तौर पर इस दंगे को लोग याद करेंगे
नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों की सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा है कि मैं अपने आप को ये कहने से नहीं रोक पा रहा हूं इतिहास बंटवारे के बाद हुए इस सबसे भयंकर दंगे को पुलिस की विफलता के तौर पर याद रखेगा. इस कार्रवाई में पुलिस अधिकारियों की निगरानी में साफ कमी महसूस की गई, वहीं पुलिस ने भी जांच के नाम पर कोर्ट की आंखों में पट्टी बांधने का काम किया है.जज ने जोर देकर कहा कि दंगों की कार्रवाई के दौरान पुलिस ने सिर्फ चार्जशीट दाखिल करने की होड़ दिखाई है, असल मायनों में केस की जांच नहीं हो रही. ये सिर्फ समय की बर्बादी है.
पुलिस ने करतदाताओं के पैसों को किया बर्बाद
कोर्ट ने पुलिस को कह दिया कि यह समय की बर्बादी है. यानी करदाताओं के पैसे से इन्हें पगार मिलता है. वो बस ऐसे ही बर्बाद कर रहे हैं. कोर्ट ने इस मामले मे तीन आरोपियों शाह आलम ,राशिद सैफी और शादाब को आरोप मुक्त करते हुए कहा कि पुलिस की जांच से साफ है कि उसने जांच के नाम पर महज कोर्ट की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश की है और कुछ नहीं. पुलिस का मकसद जांच का है ही नहीं, ये सिर्फ टैक्सपेयर्स की गाढ़ी कमाई की बर्बादी है.
कई आरोपी जेल में बंद है क्योंकि केस का ट्रायल शुरू नहीं हुआ है
कोर्ट ने ये भी कहा कि बहुत से केस में पिछले डेढ़ साल से आरोपी जेल में बंद है ,सिर्फ इसलिए कि क्योंकि उनके केस का ट्रायल शुरू ही नहीं हो पाया और सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर करने में व्यस्त है. कुछ आंकड़ों के जरिए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने बताया कि दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिले में हुए दंगों में 750 मामले दाखिल किए गए हैं,उसमें भी ज्यादातर केस की सुनवाई इस कोर्ट द्वारा की जा रही है. सिर्फ 35 मामलों में ही आरोप तय हो पाए हैं.
पुलिस ने लोगों के भीड़ को कैसे नहीं देखा
कोर्ट ने पुलिस से भी सवाल पूछा कि जब दंगे के दौरान लूटपाट हो रही थी, हिंसा हो रही थी. तब लोगों ने इस भीड़ को कैसे नहीं देखा. ये बात समझ से परे है और ये सवाल खड़े करती है.
एक प्रकरण के लिए पांच एफआईआर कैसे किए गए?
दिल्ली पुलिस ने एक ही परिवार के कई सदस्यों की शिकायत पर पांच एफआईआर दर्ज की थी. 5 एफआईआर में आरोपी को अभियोजन का सामना करना पड़ रहा था. आरोप है कि जब पीड़ित 24 फरवरी की शाम को मौजपुर इलाके में अपने घर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि उनका घर आग के हवाले कर दिया गया है जिससे 7-10 लाख रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ.
आतिर की ओर से वकील तारा नरूला ने दलील दी कि सभी एफआईआर एक ही घर से संबंधित हैं, जिसे परिवार के कई सदस्यों की शिकायत पर दर्ज किया गया है और यहां तक कि दमकल की एक ही गाड़ी आग बुझाने आई थी.
वकील ने दलील दी कि यह प्रकरण सुप्रीम कोर्ट से तय सिद्धांत के दायरे में है कि एक अपराध के लिए एक से ज्यादा एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है.
वहीं, दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि संपत्ति अलग थी और नुकसान को वहां रहने वाले लोगों ने झेला है. यह भी दावा किया कि हर एफआईआर का विषय दूसरों से अलग है.
जिसपर कोर्ट ने कहा कि सभी 5 एफआईआर की सामग्री एक समान हैं और कमोबेश एक जैसे ही हैं और एक ही घटना से संबंधित है. कोर्ट ने कहा कि एक ही घटना के लिए 5 अलग-अलग एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट से तय कानून के खिलाफ है.
दिल्ली पुलिस की जांच पूरी तरह गायब है
कोर्ट ने कहा कि शिकायत की पूरी संवेदनशीलता और कुशलता के साथ जांच की जानी थी, लेकिन इस जांच में वह गायब है.कोर्ट ने कहा कि खराब जांच की वजह से पीड़ितों/शिकायतकर्ताओं को कष्ट पहुंचता है. उनका मामला अनसुलझा रह जाता है. अदालत ने कहा कि यह अदालत ऐसे मामलों को न्यायिक प्रणाली के गलियारों में बिना सोचे-समझे इधर-उधर भटकने की इजाजत नहीं दे सकती है. इससे अदालत का कीमती न्यायिक समय खराब हो रहा है, जबकि यह ‘ओपन एंड शट’ मामला है.
HIGHLIGHTS
- दिल्ली दंगा केस में पुलिस ने दिखाई लापरवाही
- दिल्ली कोर्ट ने पुलिस को लगाई फटकार
- तीन आरोपियों को आरोप मुक्त किया गया
Source : Arvind Singh