आपातकाल के समय इंदिरा गांदी सरकार ने नियम-कानून की जमकर धज्जियां उड़ाई. सरकार की नीतियों का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वाले छात्रों-युवाओं को जेल में टाल दिया गया. यहां तक की विपक्ष के साथ-साथ सत्तापक्ष के कई नेताओं को जेल में डाला गया तो कुछ की निगरानी की जाती रही. पूरे आपातकाल के दौरान लोकतंत्र का गला घोंटा गया. सरकारी संस्थाओं का कांग्रेस पार्टी और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हित में दुरुपयोग किया गया. आपातकाल के दौरान इंदिरा-संजय गांधी को सलाह देने या उनके आदेश पर अमल कराने का जिम्मा कई नेताओं और अधिकारियों ने उठाया. जिसमें-विद्याचरण शुक्ल, बंशीलाल, एचकेएल भगत, सिद्धार्थ शंकर रे और नौकरशाह जगमोहन का नाम प्रमुख है. आज हम इंदिरा गांधी -संजय गांधी के खास और तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल (वीसी शुक्ल) की बात कर रहे हैं, कि किस तरह से उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का इंदिरा गांधी के इशारे पर दुरुपयोग किया.
जनवरी 1976 में, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने आपातकाल और इंदिरा गांधी के ट्वेंटी-पॉइंट कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए टेलीविजन के लिए फिल्में करने के लिए फिल्म जगत की मशहूर हस्तियों को शामिल करने का फैसला किया. मंत्रालय की यह भी इच्छा थी कि फिल्म जगत का कोई पार्श्व गायक सरकार और उसकी योजनाओं की प्रशंसा में जिंगल गाएं. फिल्मी दुनिया के सहयोग को सुरक्षित करने के लिए, मंत्रालय की एक टीम अप्रैल 1976 में बॉम्बे गई. यह टीम मंत्री, वीसी शुक्ला के आदेश पर गया था.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय की टीम ने जीपी सिप्पी, बीआर चोपड़ा, सुबोध मुखर्जी और श्रीराम वोहरा जैसे प्रसिद्ध फिल्म निर्माताओं के साथ बैठक की. उस बैठक में सिप्पी ने कहा कि, किशोर कुमार किसी भी तरह से इस पहल से जुड़ने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने मंत्रालय के अधिकारियों से कुमार से सीधे संपर्क करने को कहा. इस बैठक के बाद मंत्रालय में संयुक्त सचिव सीबी जैन ने किशोर कुमार से बात की और उन्हें बताया कि सरकार के मन में क्या है. उन्होंने कहा कि मंत्रालय की टीम उनसे (कुमार) उनके आवास पर जाकर इस प्रस्ताव के बारे में बात करना चाहेगी. किशोर कुमार ने मंत्रालय के अधिकारियों से मिलने से इनकार कर दिया. उन्होंने जैन से कहा कि वह अस्वस्थ हैं; और स्टेज शो नहीं कर सकते; क्योंकि उन्हें 'दिल में कुछ परेशानी' थी और उनके डॉक्टर ने उन्हें 'किसी से न मिलने' की सलाह दी थी; और यह कि वह किसी भी सूरत में रेडियो या टीवी के लिए गाना नहीं चाहते थे.
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किशोर कुमार के 'नहीं' उत्तर से संयुक्त सचिव को बुरा लगा. आपातकाल के बाद उन्होंने शाह आयोग को बताया कि किशोर कुमार 'कुटिल' थे और उनसे (जैन) और अन्य अधिकारियों से मिलने से इनकार करना 'बेहद अभद्र व्यवहार' था. दिल्ली लौटने पर, जैन ने एमआईबी के सचिव एसएमएच बर्नी से मुलाकात की और उन्हें बताया कि किशोर कुमार न केवल मंत्रालय के साथ सहयोग नहीं कर रहे थे, बल्कि मंत्रालय के अधिकारियों के साथ उनका व्यवहार भी 'बेहद अभद्र और अवांछित' था. इसके बाद बर्नी ने एक आधिकारिक नोट में विभाग के अधिकारियों को निर्देशित किया कि किशोर कुमार को टेलीफोन पर मंत्रालय के अधिकारियों से बात करने के लिए 'मनाया' जाए. लेकिन किशोर कुमार किसी भी तरह अधिकारियों से बात करने को तैयार नहीं हुए.
किशोर कुमार के रूख को देखते हुए एमआईबी के सचिव ने बहुमुखी प्रतिभा के धनी किशोर कुमार को दंडित करने का फैसला किया. बर्नी ने आदेश दिया कि किशोर कुमार के सभी गीतों को आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) और दूरदर्शन से प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए और जिन फिल्मों में किशोर कुमार ने अभिनय किया था, उन्हें आगे की कार्रवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाना था.
इस नौकरशाह का आदेश और भी असाधारण था कि 'श्री किशोर कुमार के गीतों के ग्रामोफोन रिकॉर्ड की बिक्री पर रोक लगा दी जाए'. किशोर कुमार के खिलाफ इस कार्रवाई का उद्देश्य दुगना था. एक, उसे सबक सिखाने के लिए; और दो, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कुमार के खिलाफ इस कार्रवाई का पूरे फिल्म उद्योग पर प्रभाव पड़े, कि वे सभी सरकार के मन-मुताबिक काम करने से मना करने की हिम्मत न कर सकें. बर्नी ने अपने नोट में कहा कि इन उपायों का 'फिल्म निर्माताओं पर ठोस प्रभाव पड़ा'. बर्नी के फरमान के बाद, ऑल इंडिया रेडियो ने किशोर कुमार पर 4 मई को और दूरदर्शन पर 5 मई को प्रतिबंध लगा दिया. एमआईबी के अधिकारियों ने पॉलीडोर और एचएमवी रिकॉर्ड कंपनियों से भी संपर्क किया, ताकि 'श्री किशोर कुमार के रिकॉर्ड की बिक्री को रोकने के तरीकों और साधनों पर चर्चा की जा सके'. जबकि पॉलीडॉर गैर-कमिटेड रहा, एचएमवी, प्रसिद्ध ग्रामोफोन रिकॉर्ड कंपनी ने 'एचएमवी की अपनी पहल पर किशोर कुमार को किसी भी व्यक्तिगत रिकॉर्डिंग या एकल आइटम को रिकॉर्ड करने के लिए रोकने के लिए' सहमति व्यक्त की.