खाप की 'खाद' से फिर से जिंदा हुआ किसान आंदोलन

किसान आंदोलन सरकार के लिए सिर दर्द बन चुका है. तो किसानों के समर्थन में खाप पंचायतें भी उतर चुकी हैं. खाप की 'खाद' से किसान आंदोलन फिर से जिंदा हो रहा है.

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Dalchand Kumar
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खाप की 'खाद' से फिर से जिंदा हुआ किसान आंदोलन( Photo Credit : फाइल फोटो)

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कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन पिछले करीब ढाई महीने से जारी है. सरकार अभी तक किसानों को शांत करने में विफल रही है. दोनों पक्षों के बीच कई दौर की बातचीत के बाद भी समाधान नहीं निकल पाया है. ऐसे में किसान आंदोलन सरकार के लिए सिर दर्द बन चुका है. तो किसानों के समर्थन में खाप पंचायतें भी उतर चुकी हैं. खाप की 'खाद' से किसान आंदोलन फिर से जिंदा हो रहा है. आम ग्रामीण जो भले ही किसानों के आंदोलन में खुद शरीक नहीं हो पा रहे हो, लेकिन आंदोलन का समर्थन करते हैं. हिंसा के विरोध में है. लाल किले में हुई घटना से अपमानित हैं. लेकिन फिर भी किसानों के समर्थन में है और कहते हैं कि हमारे गांव से कोई ना कोई दिल्ली जाएगा और बाकी जगह चक्का जाम में भागीदार बनेगा.

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बिना इंटरनेट के कैसे किसानों की भारी भीड़ जुट सकती है?  बिना आधुनिक कम्युनिकेशन की कैसे खाप खाद कितने किसान आंदोलन को पुनर्जीवित कर सकती है ? जिसमें पानी का काम राकेश टिकैत के आंसुओं ने किया. इस सिस्टम को दिल्ली में बैठकर नहीं समझा जा सकता. लिहाजा न्यूज नेशन की टीम ने हरियाणा की खाप में जाकर जानने की कोशिश की. दिल्ली से बदरपुर बॉर्डर और फरीदाबाद होते हुए न्यूज नेशन की टीम हरियाणा के पलवल तक पहुंची और खापों की किसान आंदोलन में भूमिका के बारे में जानकारी हासिल की.

हरिायाणा में रावत, तेवतिया, सहरावत, डागर, रंगीला, तमर, सौरौत समेत तकरीबन 52 खापें हैं. हालांकि इन सभी की अध्यक्षता एक ही व्यक्ति करता है. जो अपने हाथ से पत्र लिखकर बाकी खाप के अध्यक्षों के पास भेजता है. 650 ईसवीं राजा हर्षवर्धन के समय से खाप की यही परिपाटी चली आ रही है, जिसमें आधुनिक तकनीक का कोई किरदार नहीं है. 52 खाप के अध्यक्ष के लिहाज से हम बात करें तो अंग्रेजों के जमाने से इन्हें टाइटल मिला हुआ है. 1805 से यह खाप काम कर रही है और इससे पहले दहेज उन्मूलन समेत कई सामाजिक मुद्दों पर किसान एकजुट हो चुके हैं. अंग्रेजों के खिलाफ भी इस 52 खापों के समूह ने मिलकर काम किया था.

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खास बात यह है कि दिल्ली के बदरपुर से लेकर हरियाणा के फरीदाबाद पलवल, उत्तर प्रदेश के मथुरा, राजस्थान के भरतपुर और मध्य प्रदेश के ग्वालियर तक के खाप पंचायत को पाल कहा जाता है. हरियाणा और पश्चिमी जो अहमियत खाप की होती है यहां पर पाल की होती है. इन 52 आप के अध्यक्ष ने न्यूज नेशन के सामने पत्र लिखकर सभी खाप के अध्यक्षों को भेजा, जिसके जरिए किसान आंदोलन में ग्रामीण लोगों की भीड़ को एकजुट किया जाएगा. 52 खाप के अध्यक्ष ने संदेश वाहक को अपना हाथों से लिखा हुआ पत्र दिया, जो बाइक पर बैठ कर खाप अध्यक्ष और गांव के सरपंच तक पहुंचाएगा.

पलवल एक्सप्रेस हाईवे से करीबन 2 किलोमीटर दूर गांव के सरपंच तक खाप का यह पत्र पहुंचा, जहां उन्होंने कहा कि खाप का आदेश आया है, फरमान की घोषणा पूरे गांव में की जाएगी. खाप पंचायतों में दो तरह की व्यवस्था होती है. एक मुनादी व्यवस्था, जिसके तहत खाप के आदेश पर ग्राम पंचायत का सरपंच या खाप प्रमुख चौकीदार को बुलाता है और उसे गांव में खाप का आदेश पहुंचाने के लिए कहता है. खाप प्रमुख के द्वारा लिखे गए पत्र में सरपंच अपनी तरफ से कुछ जोड़ या  घटा नहीं सकता, जो पत्र भेजा जाता है सिर्फ उसी में लिखे गए शब्दों की घोषणा चौकीदार द्वारा की जाती है.

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दूसरी मुनागी व्यवस्था होती है, जिसके तहत, जैसी हिंदी की कहावतें में ढिंढोरा पीटना होता है. जैसे ही चौकीदार मुनादी करवाता है, जिसमें चौकीदार सबसे पहले गांव के बीचों-बीच मंदिर पहुंचता है. जहां लाउडस्पीकर के जरिए खाप के आदेश की घोषणा की जाती है. उसके बाद चौकीदार गांव की हर एक गली में, हर एक घर पर जाकर खाप का आदेश सुनाता है. भले ही वह घर किसी भी जाति समुदाय के व्यक्ति का क्यों ना हो. खाप के आदेश के बाद ग्रामीण एक जगह इकट्ठा होते हैं और यह माना जाता है कि खाप ने जो भी हुकुम दिया है उसका पालन किया जाएगा. भले ही ग्रामीण किसी भी राजनीतिक दल से वास्ता रखते हो, लेकिन खाप के कहे को कोई नहीं टालता और खाप के आदेश पर सब प्रदर्शन के लिए इकट्ठे हो जाते हैं.

तेवतिया खाप द्वारा चलाए गए प्रदर्शन में अलग-अलग गांव के ग्रामीण पहुंचते हैं. यह प्रदर्शन नेशनल हाईवे दिल्ली मथुरा रोड और दिल्ली से पुरी एक्सप्रेस हाईवे के नजदीक किया जा रहा है. खाप को एकजुट रखने के लिए गांव के बड़े बूढ़े अपना भाषण देते हैं, साथ ही चाहिए लोकगीत यानी रागिनी भी गाई जाती है. खाप का प्रदर्शन अब शुरू हो चुका है. ग्रामीणों ने न्यूज़ नेशन से बात करते हुए अपनी अलग-अलग राय दी. ग्रामीणों का कहना है कि 26 जनवरी को जो कुछ हुआ, लाल किले में जो कुछ हुआ, वह काम किसान नहीं कर सकते. चाहे वह गंगाई हो, किसी राजनीतिक दल से वास्ता रखते हो, लेकिन वह किसान नहीं है.

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हालांकि बीते दिन विदेशी गायकों और अन्य लोगों के द्वारा किए गए ट्वीट पर किसानों की राय बंटी हुई थी. कुछ किसानों ने कहा कि हमारी खाप इतनी मजबूत है कि हमें विदेशों की मदद की जरूरत नहीं, जबकि कुछ का कहना था कि जब नरेंद्र मोदी के साथ टर्प हो सकते हैं तो हमारे साथ दूसरे देश के नेता क्यों नहीं. अगर खाप का आदेश हुआ तो चाहे नेशनल हाईवे हो या एक्सप्रेस हाईवे चक्का जाम 6 फरवरी को किया जाएगा. बहरहाल, पलवल की स्थिति देखें तो एक्सप्रेस हाईवे और नेशनल हाईवे के बेहद करीब है. यहां चक्का जाम किया जा सकता है. साथ ही यहां से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर समर्थन देने के लिए भी पहुंचेंगे. खाप पंचायतों ने किसान आंदोलन में खाद का काम किया है.

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