हर माह एक भारतीय जवान दुश्मनों के हाथों नहीं, बल्कि खुद के खराब गोला-बारूद से घायल हो जाते हैं या शहीद भी हो जाते हैं. गोला-बारूद की आपूर्ति सरकारी आयुध फैक्ट्रियों से की जाती है. सरकारी अधिकारियों के अनुसार, सुरक्षाबलों में एक गोला-बारूद से जुड़ा हादसा औसतन प्रति सप्ताह रिपोर्ट किया जाता है. इससे जवान घायल या हताहत हो जाते हैं या उपकरणों को हानि पहुंचती है. मुख्य आपूर्तिकर्ता आयुध फैक्ट्री बोर्ड द्वारा संचालित प्रतिष्ठान हैं. इनके खराब गोला-बारूद की वजह से दुर्घटनाएं होती हैं. इससे सशस्त्र बलों में आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, जोकि वायुसेना या नौसेना से ज्यादा गोला-बारूद का प्रयोग करते हैं.
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2020 में त्रुटिपूर्ण गोला-बारूद से 13 जवान घायल हो गए, जबकि 2019 में 16 दुर्घटनाएं हुईं, जिसमें 28 जवान घायल हो गए और तीन का निधन हो गया. 2018 में, 78 घटनाओं में कम से कम 43 जवान घायल हो गए और तीन ने अपनी जान गंवा दी. 2017 में इस बाबत 53 घटनाएं हुईं, जिसमें एक जवान की मौत हो गई और 18 अन्य घायल हो गए. इस मामले में साल 2016 सबसे खराब रहा, जहां इस तरह की 60 घटनाओं में 19 जवान की मौत हो गई और 28 अन्य घायल हो गए.
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इससे राजकोष को काफी क्षति पहुंचती है. अनुमान के मुताबिक, अप्रैल 2014 से अप्रैल 2019 के बीच इस वजह से 658.58 करोड़ रुपये के गोला-बारूद का शेल्फ लाइफ के बावजूद निस्तारण किया गया. सूत्रों ने यह भी कहा कि 303.23 करोड़ रुपये के माइंस का भी उसके शेल्फ लाइफ के दौरान निस्तारण करना पड़ा. इससे पहले महाराष्ट्र के पलगांव में मई 2016 में माइंस दुर्घटना में 18 जवान शहीद हो गए थे.
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सूत्रों ने कहा कि इससे 960 करोड़ रुपये की हानि हुई थी, जिससे 100, 155 एमएम मीडियम आर्टिलरी बंदूक खरीदा जा सकता था. यह निश्चित है कि खराब गुणवत्ता वाले गोला-बारूद का जवानों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है. दुर्घटना से जानमाल की हानि होती है और साथ ही उपकरणों को प्रयोग से बाहर कर दिया जाता है.