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...तो क्या पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से बदल जाएगी देश की राजनीति 

भाजपा जिन राज्यों में बी टीम बनकर गठबंधन कर रही थी. आज वहां भाजपा या तो सत्ता में है या फिर राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है. लिहाजा, भाजपा के कद से परेशान क्षेत्रीय दलों को आगे की रणनीति के लिए चुनाव परिणाम का इंतजार है।

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Iftekhar Ahmed
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मतदान के लिए लाइन में खड़े मतदाता( Photo Credit : News Nation)

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पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के नतीजे इस बार देश की राजनीति को दिशा दे सकती है. बरगद की तरह देश में फैलती भाजपा क्षेत्रीय दलों को खटकने लगी है. भाजपा के विस्तार को ये सभी दल अपने अस्तित्व पर खतरा मान रही है.  दरअसल, कल तक जिन राज्यों में भाजपा बी टीम बनकर दूसरे दलों से गठबंधन कर सरकार बना रही थी. आज वहां भाजपा या तो खुद सत्ता में है या फिर राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है. लिहाजा, भाजपा के बढ़ते कद से परेशान छेत्रीय दल अभी से एकजुट होने लगे हैं. हालांकि, ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां अभी तक वेट एंड वॉच की मुद्रा में है. चुनाव नतीजे से पहले मुखालफत कर किसी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती है. इस बीच सिर्फ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही एक ऐसी नेता है, जिन्होंने भाजपा के विरोध में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए मोर्चा संभाला हुआ है. 

ज्यादातर विपक्षी नेताओं ने चुनाव से बनाई दूरी
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से दूसरे राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियां इस बार दूरी बना रखी है. लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता  चिराग पासवान और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार ने इस चुनाव से दूरी बना रखी है. ऐसा लगता है कि ये सभी नेता चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहे हैं. अगर चुनाव में भाजपा हारती है तो उसके खिलाफ क्षेत्रीय दलों का आक्रमण तेज हो सकता है. इस की आहट अभी से आने लगी है. गैर भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल की बढ़ती दखलंदाजी से परेशान गैर भाजपाई मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन की चर्चा तेज होने लगी है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके सुप्रीमो एमके स्टालिन ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी है. उन्होंने लिखा कि बजट के दूसरे सत्र से पहले गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक दिल्ली में आयोजित होगी. आपको बता दें कि 11 मार्च से बजट के दूसरे सत्र की शुरुआत होनी है और 10 मार्च को पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आएंगे. ऐसे में लगता है कि चुनाव परिणाम के साथ ही विपक्ष की सक्रियता बढ़ने वाली है. 

इस लिए हो रहा है चुनाव परिणाम का इंतजार
विपक्ष की ओर से चुनाव परिणाम का इंतजार करने की असल वजह ये है कि इस चुनाव में कई पार्टियां ऐसी हैं, जो कभी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा रही थी, लेकिन फिलहाल वह चुनाव में आमने-सामने हैं. जैसे बसपा, सपा और कांग्रेस कभी यूपीए का हिस्सा थीं, लेकिन अभी यूपी चुनाव में ये सभी दल एक दूसरे खिलाफ चुनावी मैदान में है.  लिहाजा, अभी इन दलों के बीच गठबंधन की बात बेमानी है. यह वजह है कि गठबंधन की अगुवाई करने वाले नेता अभी शांत बैठे हैं. चुनाव नतीजे के बाद पार्टियों की स्थिति देखकर ही विपक्ष अपनी रणनीतिक चाल चलेगा. 

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कांग्रेस की साख दाव पर
माना जा रहा है कि पांच राज्यों के चुनाव नतीजे के बाद विपक्षी दल 2024 की रणनीति तैयार करने में जुट जाएंगे. विपक्ष का इरादा भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए एक समान विचारधारा की पार्टियों को एक मंच पर लाने की होगी. देश की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने की वजह से कांग्रेस अभी तक विपक्षी की अगुवाई करती रही है. लेकिन, अगर इस चुनाव में कांग्रेस अच्छा नहीं कर पाई तो उसका यह रुतबा भी नहीं रहेगा. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अभी से  कांग्रेस को अलग-थलग कर विपक्ष को एकजुट करने की रणनीति पर काम करती दिख रही है. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के पक्ष में चुनाव प्रचार कर उन्होंने इसके संकेत भी दे दिए हैं.  

 

HIGHLIGHTS

5 राज्यों के चुनाव परिणाम से देश की सियासत होगी तय

चुनाव परिणाम के बाद 2024 की तैयार होगी रणनीति 

चुनाव परिणाम से तय होगी विपक्ष में कांग्रेस की स्थित

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