कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अहम चुनाव से पहले, सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं के साथ बैठक में तात्कालिक रूप से तनाव कम करने की कोशिश की और पार्टी कैडर को 'ऑल इज वेल' का संदेश देने में भी सफल रही है. शनिवार को पार्टी के शीर्ष नेताओं के साथ बैठक का नतीजा एक सकारात्मक नोट पर समाप्त हुआ जब एक असंतुष्ट नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, 'कांग्रेस के 19 नेताओं ने बैठक की और पार्टी को मजबूत करने के बारे में चर्चा की. यह पहली बैठक थी, लेकिन आगे और बैठकें होंगी. पंचमढ़ी और शिमला की तरह 'चिंतन शिविर' आयोजित किए जाएंगे. पार्टी नेताओं के सुझाव दर्ज किए जाएंगे. शनिवार को बैठक बहुत ही अच्छे माहौल में हुई.'
राहुल की अध्यक्ष पद पर वापसी का मंच तैयार
बैठक को 'फलदायी' कहा गया, मतलब ये कि सोनिया गांधी स्थिति को नियंत्रित करने और राहुल गांधी की अध्यक्ष के रूप में वापसी के लिए मंच तैयार करने में सक्षम रहीं. जैसा कि पवन बंसल ने कहा, 'अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी के नाम पर कोई आपत्ति नहीं है. किसी को भी राहुल गांधी के साथ कोई समस्या नहीं है. यह सवाल आज के लिए नहीं है, हर किसी ने कहा कि हमें राहुल गांधी के नेतृत्व की जरूरत है और हमें उन लोगों की चाल में नहीं फंसना चाहिए जो पार्टी को एजेंडे से भटकाने की कोशिश कर रहे हैं.'
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अगले महीने हो जाएगा अध्यक्ष पर फैसला
कुछ इसी तरह की बात अशोक गहलोत ने कही. उन्होंने कहा कि हर कोई चाहता है कि राहुल गांधी को अध्यक्ष बनना चाहिए और भाजपा का पर्दाफाश करना चाहिए. पार्टी की बैठक में सूत्रों ने कहा, 'राहुल गांधी ने कहा कि पार्टी जिस रूप में चाहे वो काम करने के लिए तैयार हैं, लेकिन सूत्र ने बताया कि उन्होंने यह भी कहा कि जो कोई भी पार्टी अध्यक्ष के रूप में पदभार संभालेगा, उनके साथ हम में से सभी मिलकर एक साथ काम करेंगे.' पार्टी में चुनाव प्रक्रिया जारी है और अगले महीने के अंत तक पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हो सकता है.
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पार्टी के नए अध्यक्ष के साथ नए विचार की जरूरत
कांग्रेस में राहुल खेमे के नेता रणदीप सुरजेवाला, जो पार्टी के महासचिव भी हैं, ने कहा, 'कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जो पार्टी प्रमुख के पद के लिए सबसे उपयुक्त हो. यह मेरा विश्वास है कि 99.9 फीसदी कांग्रेस नेता और कार्यकर्ताओं को लगता है कि राहुल गांधी पार्टी का नेतृत्व करने और मोदी सरकार को चुनौती देने में सक्षम सबसे सही व्यक्ति हैं.' गौरतलब है कि कांग्रेस केवल तीन बड़े राज्यों में सरकार चला रही है और दो अन्य में उसकी हिस्सेदारी है. उधर, भाजपा ने पूर्वोत्तर में कांग्रेस का सफाया कर दिया है. दक्षिण में इसका सुरक्षित गढ़ क्षेत्रीय दलों ने हड़प लिया है, इसलिए भाजपा को चुनौती देने के लिए पार्टी को नए आइडिया की जरूरत है.
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मोदी से मुकाबला कैसा...समस्या जस की तस
लेकिन किसी के लिए भी अध्यक्ष पद का रास्ता आसान नहीं है, क्योंकि असंतुष्टों की सूची बढ़ती जा रही है. पार्टी के एक सूत्र ने कहा कि सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से कुछ समय के लिए मतभेद दूर हो सकते हैं, लेकिन यह भी सच है कि कई नेता राहुल गांधी के साथ काम करने वाले कोटरी से सहज नहीं हैं. इसलिए किसी प्रॉक्सी को अध्यक्ष पद पर बिठाने के प्रयास के अच्छे परिणाम नहीं मिल सकते. भले ही राहुल गांधी का कोई विरोध नहीं हो, लेकिन उनके लिए स्वतंत्र रूप से काम करना आसान नहीं होगा, क्योंकि उन्हें असंतुष्ट संसदीय बोर्ड को फिर से जिंदा करने की कोशिश करनी है और सारे फैसले वह आपसी विचार-विमर्श से लेना चाहेंगे. कोई भी निर्णय एकपक्षीय नहीं होगा. इसलिए कांग्रेस का संकट तत्काल तो थम गया है, लेकिन असली समस्या अभी भी बरकरार है कि पार्टी 'मोदी का मुकाबला' कैसे करेगी.