भारतीय जनता पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक मुरली मनोहर जोशी अभी बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में शामिल हैं. उनके पास फिलहाल पार्टी में कोई पद नहीं है. बीजेपी में मुरली मनोहर जोशी को बीजेपी की तीन धरोहर में से एक माना जाता है. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी के बाद अगला नाम खुद ही मुरली मनोहर जोशी के रूप में आ जाता है. खास बात यह भी है कि अटल बिहारी वाजपेयी की हर सरकार में वह कैबिनेट मंत्री रहे. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के शासनकाल में वे भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री थे. 2009 को लोकसभा चुनाव में वह वाराणसी से सांसद चुने गए थे.
निजी जीवन
मुरली मनोहर जोशी का जन्म 5 जनवरी 1934 को नैनीताल में हुआ था. उनके पिता का नाम मन मोहन जोशी था और उनकी पत्नी का नाम तरला जोशी है. उनका पैतृक निवास-स्थान वर्तमान उत्तराखंड के कुमायूं क्षेत्र में है. जोशी की प्रारंभिक पढ़ाई अल्मोड़ा में हुई. उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमएससी किया, जहां प्राध्यापक राजेंद्र सिंह उनके एक शिक्षक थे. यहीं से उन्होंने अपनी डॉक्टोरेट की उपाधि भी हासिल की. जोशी का शोधपत्र स्पेक्ट्रोस्कोपी था और अपना शोधपत्र हिन्दी भाषा में प्रस्तुत करने वाले वे प्रथम शोधार्थी हैं. 1958 में इलाहाबाद विवि से डी.फिल. की उपाधि भी हासिल की. बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में लेक्चरर बनकर अध्यापन के क्षेत्र में उतरे थे.
राजनीतिक सफर
मुरली मनोहर जोशी 1944 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता बने और 1949 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े. इसके बाद वे राष्ट्रीय राजनीति में आ गए. युवा अवस्था से ही जोशी का झुकाव राजनीति की तरफ रहा. 1955 में कुंभ किसान आंदोलन से मुरली मनोहर जोशी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी. उन्होंने 1957 में भारतीय जनसंघ की सदस्यता ग्रहण की. 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के वक्त जोशी पूरे सहयोग के साथ आगे आए और फिर उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया.
मुरली मनोहर जोशी पहली बार अल्मोड़ा से सांसद के रूप में चुने गए थे. 1996 में जब 13 दिनों के लिए बीजेपी की सरकार बनी थी, तो जोशी ने देश के गृहमंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी. वह 13 दिनों के लिए गृहमंत्री रहे थे. उन्होंने 16 मई 1996 को गृह मंत्री का पद संभाला था, लेकिन एक जून 1996 को सरकार गिरने की वजह से उन्हें इस पद से इस्तीफा देना पड़ा था. जोशी तीन बार इलाहाबाद के सांसद रहे. 2004 के लोकसभा चुनावों में उन्हें हार झेलनी पड़ी थी. 2009 के चुनाव में वह वाराणसी से चुनाव लड़े और जीते.
15वीं लोकसभा के कार्यकाल में 1 मई 2010 को उन्हें लोक लेखांकन समिति का अध्यक्ष बनाया गया. हालांकि 2014 में मुरली मनोहर जोशी ने नरेंद्र मोदी के लिए वाराणसी लोकसभा सीट छोड़ दी थी. 2014 में जोशी ने कानपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और चुनकर संसद पहुंचे थे. फिलहाल जोशी सिर्फ बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में हैं. हालांकि 2017 में मुरली मनोहर जोशी को पद्म विभूषण के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.