रघुनाथ सिंह स्वतंत्र भारत में वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के पहले निर्वाची सांसद थे. वह एक स्वतंत्रता सेनानी, साहित्यकार और समाजसेवी थे. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे. रघुनाथ सिंह को बतौर सांसद अपनी सादगी और कर्मठता के लिए जाना जाता था. बड़ी बात यह है कि तीन बार सांसद चुने जाने के बावजूद वह सरकार का हिस्सा नहीं बने. उन्होंने खुद तीन बार केंद्र सरकार में मंत्री पद ठुकराया था. इतना ही नहीं, सांसद रहते हुए भी उन्होंने कभी कोई सरकारी सुविधा नहीं ली. अपने संसदीय कार्यों के लिए दी गई सरकारी गाड़ी का भी इस्तेमाल नहीं करते थे. हालांकि रघुनाथ सिंह के आवास पर नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर चौधरी चरण सिंह और लाल बहादुर शास्त्री जैसे शीर्ष नेताओं का आना जाना लगा रहता था.
निजी जीवन
काशी से लगातार तीन बार सांसद चुने गए रघुनाथ सिंह का जन्म साल 1910 में वाराणसी जिले के खेवली भतसार गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम बटुकनाथ सिंह और माता का नाम लीलावती देवी था. रघुनाथ सिंह ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से कला स्नातक की और फिर एलएलबी की पढ़ाई की. 1926 में बनारस से कानूनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सुप्रीम कोर्ट में बतौर एडवोकेट काम किया. इस बीच स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महज 11 साल की आयु में रघुनाथ सिंह को 34 दिनों तक जेल में सजा भी काटनी पड़ी थी. 1926, 1930 और 1942 में भी वह जेल गए. बहरहाल, स्वतंत्रता सेनानी होने के बावजूद रघुनाथ सिंह ने कभी पेंशन नहीं ली.
राजनीतिक जीवन
हालांकि पढ़ाई के दौरान ही रघुनाथ सिंह राजनीति का हिस्सा बन गए थे. 1920 उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली थी. 1938 से 1941 तक रघुनाथ सिंह बनारस नगर के कांग्रेस समिति के सचिव रहे. बाद में 1946 से 49 तक वह अध्यक्ष रहे. इसके साथ ही रघुनाथ सिंह कांग्रेस स्वदेशी एक्सिबिशन के अध्यक्ष भी रहे. रघुनाथ सिंह अगस्त 1942 के अत्याचार जांच समिति के सचिव भी रहे थे. स्वतंत्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव में रघुनाथ सिंह को कांग्रेस ने वाराणसी से अपना उम्मीदवार बनाया था. जिसमें उन्होंने जीत हासिल की थी.
रघुनाथ सिंह लगातार तीन बार वाराणसी के सांसद बनकर जीते. वह 1952-1967 तक काशी के सांसद रहे. हालांकि 1967 के लोकसभा चुनाव में रघुनाथ को कम्युनिस्ट पार्टी माकपा के सत्यनारायण सिंह से हार झेलनी पड़ी थी. काशी से तीन बार सांसद बनने पर केंद्र में उन्हें मंत्रीपद की पेशकश की गई थी, लेकिन हर बार उन्होंने मंत्रीपद ठुकरा दिया था. उनका मानना था कि मंत्रीपद किसी सरकारी नौकरी था, जो प्राप्त करने के बाद वे जनता की सेवा ठीक ढंग से नहीं कर पाएंगे. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण पद और भूमिकाएं निभाईं.