अगर इतिहास में झांके तो पता चलता है कि करीब 500 साल पहले अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) को ध्वस्त कर मुगल शासक बाबर के सिपाहसालार मीर बाकी ने मस्जिद बनवाई थी. 1528 के आसपास बनी इस मस्जिद को बाबरी मस्जिद के नाम से तब औऱ कालांतर में जाना गया. इस विवाद ने तूल पकड़ा 1986 में जब फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं के अनुरोध पर विवादित स्थल को प्रार्थना के लिए खुलवा दिया. बस, मुसलमानों (Muslims) ने इसका विरोध शुरू करते हुए बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति बना ली. यह देख यहीं से हिंदू (Hindu) भी राम मंदिर निर्माण के लिए एकजुट होने लगे. सन् 1989 में विहिप के शिलान्यास से लेकर हाईकोर्ट की रोक, फिर विवादित ढांचे के ध्वंस के बाद सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंची लंबी लड़ाई अंततः राम जन्म भूमि के पक्ष में आए फैसले के साथ खत्म हुई. बीते कुछ दशकों में अयोध्या मसला देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया. अयोध्या में बनने जा रहे राम मंदिर (Ram Mandir) के लिए आगामी 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा शिलान्यास के साथ ही एक नई शुरुआत होगी.
आजादी के बाद 1949 राम-लक्ष्मण की मूर्तियों का रखा जाना
राम मंदिर आंदोलन के इतिहास में ताला खुलना बड़ा मोड़ साबित हुआ था. 22-23 दिसंबर 1949 की रात जब राम और लक्ष्मण की मूर्तियों को बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे गुप्त तौर पर रखा गया था. यहीं से विवाद की शुरुआत हो गई थी, जो हर गुजरते साल के साथ मुखर होती गई. बाद के दशकों में देश में इमरजेंसी और कम समय के लिए बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार की यादों के साथ 1980 का दशक शुरू हुआ था और इस दशक से देश की राजनीति के इतिहास में यह मुद्दा बड़े महत्व का रहा. 1980 में ही जन संघ और जनता पार्टी के एक धड़े ने साथ आकर भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी थी. तभी से हिंदुत्व के नज़रिये को लेकर पार्टी के बीते 40 साल बड़े घुमावदार रहे. अटलबिहारी वाजपेयी पहले अध्यक्ष थे और 1980 में शुरूआत से ही भाजपा ने राम जन्मभूमि को मुद्दा बनाया था. असल में, जिस जगह बाबरी मस्जिद स्थित थी, वहां 'अयोध्या राम जन्मस्थान की आज़ादी' को लेकर पहले आरएसएस का आंदोलन जारी था, जिसे भाजपा ने बहुमत आधारित राजनीति में हिंदुत्व की धारणा से जोड़ा. 1984 चुनाव में भाजपा को बहुत कम सफलता मिलने के पीछे दो कारण प्रमुख थे: एक, भाजपा का सॉफ्ट हिंदुत्व और दूसरा इंदिरा गांधी की हत्या से कांग्रेस को मिली सहानुभूति. लोकसभा में कांग्रेस को 414 सीटों का बड़ा बहुमत मिला था.
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1989 में राम जन्मभूमि का शिलान्यास
इधर राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो आरएसएस और भाजपा नए सिरे से रणनीति बनाने पर मजबूर थे. दोनों ने राम मंदिर आंदोलन में पूरी ताकत झोंकने की योजना बनाई. केंद्र और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की ही सरकारें थीं, तो आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा और 1986 में विवादित स्थान पर ताला खोलने की इजाज़त सरकार को देनी पड़ी. यह हिंदुत्व आंदोलन का बड़ा पड़ाव था. अयोध्या विवाद में 9 नवंबर 1989 की तारीख बेहद महत्वपूर्ण है. इसी दिन विहिप ने हजारों हिंदू समर्थकों संग अयोध्या में राम जन्म भूमि का शिलान्यास किया था. हजारों राजनैतिक हस्तियों, बड़े-बड़े साधु-संतों के बीच उस वक्त 35 साल के रहे एक दलित युवक कामेश्वर चौपाल के हााथों राम मंदिर के नींव की पहली ईंट रखवायी गई थी. राम मंदिर शिलान्यास से पहले पूरे देश में विहिप ने इसके लिए अभियान चला रखा था. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदू एकजुट होने लगे थे. शिलान्यास के लिए पूरे देश में यात्राएं आयोजित की गईं. राम मंदिर शिलान्यास के लिए ही आठ अप्रैल 1984 को दिल्ली के विज्ञान भवन में एक विशाल धर्म संसद का भी आयोजन किया गया था.
शाहबानो से उपजे दबाव में शिलान्यास की इजाजत
1989 जब विवादित स्थल के पास राम मंदिर की नींव रखी गई, राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. राम मंदिर निर्माण को लेकर पूरे देश में जो लहर थी, उसने राजीव गांधी पर राजनीतिक दबाव बना दिया था. देश में इसी वर्ष आम चुनाव होने थे. राजीव गांधी नहीं चाहते थे कि उनकी छवि हिंदू विरोधी नेता के रूप में उभरे. खासकर यह देखते हुए कि शाहबानो केस को लेकर हिंदू पहले से ही उनसे नाराज चल रहे थे. ऐसे में हिंदुओं को लुभाने के लिए राजीव गांधी ने राजनीतिक दबाव में 1989 में हिंदू संगठनों को विवादित स्थल के पास राम मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दे दी थी. हालांकि राजीव गांधी इस तरह राम मंदिर शिलान्यास की मंजूरी देकर हिंदू वोटबैंक को अपने पक्ष में करना चाहते थे, लेकिन उनका यह दांव उल्टा पड़ गया. हिंदू संगठनों और विश्व हिंदू परिषद के जरिए भाजपा राम मंदिर मुद्दे को पहले ही अपने पक्ष में कर चुकी थी. राजीव गांधी द्वारा शिलान्यास की मंजूरी दिए जाने के बाद विहिप ने मंदिर निर्माण के लिए अपना आंदोलन और तेज कर दिया. एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चरम पर था, उधर विहिप के आह्वान पर देश भर से लाखों श्रद्धालु ईंट लेकर अयोध्या पहुंचने लगे थे. इस तरह से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया.
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1989 में ही हाईकोर्ट ने मंदिर निर्माण पर लगाया स्टे
अयोध्या में राम मंदिर को लेकर तेज होती हलचल के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 14 अगस्त 1989 को इस मामले में स्टे लगाते हुए, संबंधित पक्षों को संपत्ति के स्वरूप में किसी तरह का बदलाव नहीं करने का आदेश दिया. कोर्ट ने सभी पक्षों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की भी अपील की थी. बावजूद विहिप ने देश भर से मंदिर निर्माण के लिए ईंट जमा करने का अभियान जारी रखा. इसे देखते हुए राजीव गांधी ने केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह को हालात संभालने की जिम्मेदारी सौंपी. बूटा सिंह ने 27 सितंबर 1989 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ विहिप के संयुक्त सचिव अशोक सिंघल से मुलाकात की. इस मुलाकात में विहिप का अभियान रोकने पर तो सहमति नहीं बनी, लेकिन सरकार इस शर्त के साथ विहिप को रामशिला यात्रा जारी रखने पर तैयार हो गई कि हाईकोर्ट के आदेशों का पूरी तरह से पालन किया जाएगा और शांति व्यवस्था हर हाल में बरकरार रहेगी. इस तरह राम मंदिर के अभियान ने देश के सबसे प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दे का रूप ले लिया. इसके साथ ही अयोध्या मसला भी अदालत की चौखट तक पहुंच गया.
1990 में 'मौलाना' मुलायम का जन्म
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और बिहार में लालू प्रसाद यादव का मुख्यमंत्री बनना राजनीति में नई सोशल इंजीनियरिंग का सबूत बन चुका था. मंडल कमीशन राजनीति और पिछड़ी जाति की राजनीति करने वाली पार्टियों को भी राम मंदिर मुद्दे का फायदा मिलता साफ दिख रहा था. 1990 में कारसेवकों पर फायरिंग के आदेश देने पर जहां मुलायम सिंह को 'मौलाना मुलायम' का खिताब मिला वहीं समस्तीपुर में आडवाणी को गिरफ्तार किए जाने पर लालू को भी एक हिंदू विरोधी राजनीतिक प्रचार मिलना शुरू हुआ. भाजपा को जब इस आंदोलन से बड़े फायदे की उम्मीद थी, तभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई. भाजपा के हिसाब से इस घटना से उसके राजनीतिक समीकरण बिगड़ गए और भाजपा 10वीं लोकसभा में 123 सांसदों के साथ रह गई. हालांकि उप्र में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने और पहली बार भाजपा सरकार बनी. चूंकि उप्र में भाजपा सरकार आ चुकी थी इसलिए राम मंदिर मुद्दे को ज़ोर मिलना अब तय था.
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6 दिसंबर 1992 विवादित ढांचा ढहाया गया
सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार के आश्वासन के बावजूद 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहा दी गई. पीवी नरसिम्हाराव की केंद्र सरकार महज़ मूकदर्शक साबित हुई. देश के राजनीतिक इतिहास में ये एक निर्णायक समय था. बाबरी मस्जिद विध्वंस को जिस स्तर पर प्रचार मिला, उससे उत्तर प्रदेश व बिहार में पहले ही सिमट चुकी कांग्रेस को पूरे हिंदी क्षेत्र में धक्का लगा. उसके बाद के सालों में एक तरफ हिंदुत्व तो दूसरी तरफ जाति आधारित राजनीति और मंडल व दलित राजनीति कसर पूरी कर रही थी. 1996 और 1999 के चुनावों में भाजपा को खासी कामयाबी मिलती दिखी और देश में 1999 में पहली बार पूरे कार्यकाल वाली भाजपा सरकार बनी. दूसरी तरफ, राज्यों में मुलायम, मायावती और लालू जैसे नेताओं की राजनीति चमक रही थी. अब राम मंदिर मुद्दा बोतल से बाहर आया जिन्न बन चुका था और एक कानूनी लड़ाई में था.
लिब्राहन आयोग का गठन
16 दिसंबर 1992 को मस्जिद को ढहाने के मामले को लेकर लिब्रहान आयोग बनाया गया. जज एमएस लिब्रहान के नेतृत्व में जांच शुरू की गई. इसके बाद 1994 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित केस चलना शुरू हुआ. फिर सितंबर 1997 में मस्जिद ढहाने को लेकर 49 लोग दोषी करार दिए गए. इसमें भारतीय जनता पार्टी के कुछ प्रमुख नेताओं के नाम भी थे. इसके बाद नई सदी के पहले ही साल यानी 2001 में विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर बनाने की तारीख तय कर दी. इस बीच केंद्र में भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार आ गई थी.उसी दौरान जनवरी-फरवरी 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया. वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया गया. भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इनकार कर दिया. विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू करने की घोषणा कर दी. सैकड़ों हिंदू कार्यकर्ता अयोध्या में इकठ्ठा हुए. फरवरी अयोध्या से लौट रहे हिंदू कार्यकर्ता जिस रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे उस पर गोधरा में हुए हमले में 58 कार्यकर्ता मारे गए.
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2002 में सुप्रीम कोर्ट का यथास्थिति बनाए रखने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 13 मार्च के अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी. किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन पर शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी. केंद्र सरकार ने कहा कि अदालत के फैसले का पालन किया जाएगा. विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात पर समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे. रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत परमहंस रामचंद्र दास और विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल के नेतृत्व में लगभग 800 कार्यकर्ताओं ने सरकारी अधिकारी को अखाड़े में शिलाएं सौंपीं. इसी साल अप्रैल में उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट में मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू हुई. हाईकोर्ट के निर्देश पर ही पुरातत्व विभाग ने 2003 में विवादित स्थल के नीचे खुदाई की. सीबीआई ने भी इसी बीच मई 2003 में आडवाणी समेत 8 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया. यहां से मामला हाईकोर्ट में चलता रहा. 26 जुलाई 2010 को अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई. 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इसके तहत विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा दिया गया. इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े को मिला.
9 मई 2011 सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला रोका
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 14 अपील दाखिल हुई थीं. ऐसे में फिर से मामला गरमाने पर 21 मार्च, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही. सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित बीजेपी और आरएसएस के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया. फिर मामला टलता रहा. इस बीच नियमित सुनवाई की अपील खारिज हो चुकी थी. 29 अक्टूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनाई पर इनकार करते हुए केस जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया. इसके बाद हालांकि नरेंद्र मोदी दोबारा भारी बहुमत से चुनकर आए. उन्होंने दोबारा पीएम बनने के बाद अपने पहले इंटरव्यू में कहा कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए अध्यादेश पर फैसला कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही लिया जा सकता है. राम मंदिर पर अध्यादेश लाने के बारे पीएम ने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और संभवत: अपने अंतिम चरण में है. उन्होंने कहा कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने दीजिए, इसके बाद जो भी सरकार की जिम्मेदारी होगी उसे पूरा किया जाएगा. इस बीच सुप्रीम कोर्ट अयोध्या मसला मध्यस्थता पैनल के सुपुर्द कर चुका था. वहां भी कोई बात नहीं बनी. नतीजतन 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई. 16 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले में सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रखा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर 6 अगस्त से रोजाना 40 दिन तक सुनवाई की. इस दौरान विभन्न पक्षों ने अपनी अपनी दलीलें पेश कीं.
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2019 में राम मंदिर पर सबसे बड़ा फैसला
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर अपना फैसला सुनाया. इसके तहत कोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन को राम लला विराजमान को देने का आदेश दिया. साथ ही मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने सरकार को मंदिर निर्माण के लिए तीन माह के भीतर एक ट्रस्ट बनाने का आदेश भी दिया था. राम मंदिर निर्माण के लिए पीएम मोदी ने संसद में 15 सदस्यीय श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का ऐलान किया. सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला दिया था और तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने की मियाद तय की थी. मोदी सरकार ने ट्रस्ट को कैबिनेट की मंजूरी दिलाने के बाद बिल संसद में पेश किया. 19 जुलाई 2020 को राम मंदिर ट्रस्ट की बैठक हुई, जिसमें पीएमओ को मंदिर के भूमि पूजन के लिए दो तारीखें भेजी गईं. पीएमओ के भेजे प्रस्ताव में 3 और 5 अगस्त में से किसी एक दिन पीएम मोदी को अयोध्या में भूमि पूजन के लिए आने का न्योता दिया गया. साथ ही मंदिर के डिजाइन को लेकर भी इस बैठक में अहम फैसले लिए गए.