जंगे आजादी के पहले संग्राम (1857) में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पुर्वांचल के तमाम रजवाड़ों, जमीदारों (पैना, सतासी, बढ़यापार नरहरपुर, महुआडाबर) की बगावत हुई थी. इस दौरान हजारों की संख्या में लोग शहीद हुए. इस महासंग्राम में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल आवाम पर हुक्मरानों ने अकल्पनीय जुल्म ढाए. बगावत में शामिल रजवाड़ों और जमींदारों को अपने राजपाट और जमीदारी से हाथ धोना पड़ा. ऐसे लोग अवाम के हीरो बन चुके थे. इनके शौर्यगाथा सुनकर लोगों के सीने में फिरंगियों के खिलाफ बगावत की आग लगातार सुलग रही थी. उसे भड़कने के लिए महज एक चिन्गारी की जरूरत थी. ऐसे ही माहौल में उस क्षेत्र में महात्मा गांधी का आना हुआ.
गांधीजी पहली बार पहुंचे पूर्वांचल
1917 में महात्मा गांधी नील की खेती (तीन कठिया प्रथा) के विरोध में चंपारण आए थे. उनके आने के बाद से पूरे देश की तरह पूर्वांचल का यह इलाका भी कांग्रेस मय होने लगा था. एक अगस्त 1920 को बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु के बाद गांधीजी कांग्रेस के सर्वमान्य नेता बनकर उभरे. स्वदेशी की उनकी अपील का पूरे देश में अप्रत्याशित रूप से प्रभावित हुआ. चरखा और खादी जंगे आजादी के सिंबल बन गये. ऐसे ही समय 8 फरवरी 1920 को गांधी जी का गोरखपुर में पहली बार आना हुआ.
बापू को सुनने उमड़ी ढाई लाख की भीड़
बाले मियां के मैदान मे आयोजित उनकी जनसभा को सुनने और गांधी को देखने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा था. उस समय के दस्तावेजों के अनुसार यह संख्या 1.5 से 2.5 लाख के बीच रही होगी. उनके आने से रौलट एक्ट और अवध के किसान आंदोलन से लगभग अप्रभावित पूरे पूर्वांचल में जनान्दोलनों का दौर शुरू हो गया. गांव-गांव कांग्रेस की शाखाएं स्थापित हुईं. वहां से आंदोलन के लिए स्वयंसेवकों का चयन किया जाने लगा.
प्रेमचंद और फिराक गोरखपुरी नौकरी छोड़ जुड़े आजादी संघर्ष से
मुंशी प्रेम चंद (धनपत राय) ने राजकीय नार्मल स्कूल से सहायक अध्यापक की नौकरी छोड़ दी. फिराक गोरखपुरी ने डिप्टी कलेक्टरी की बजाय विदेशी कपड़ों की होली जलाने के आरोप में जेल जाना पसंद किया. ऐसी ढ़ेरों घटनाएं हुईं. इसके बाद तो पूरे पूर्वांचल में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ माहौल बन चुका था. गांधी के आगमन के करीब साल भर बाद 4 फरवरी 1921 को गोखपुर के एक छोटे से कस्बे चौरी-चौरा में जो हुआ वह इतिहास बन गया. इस घटना के दौरान अंग्रेजों के जुल्म से आक्रोशित लोगों ने स्थानीय थाने को फूंक दिया. इस घटना में 23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए. इस घटना से आहत गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया. चौरी-चौरा के इस घटना की पृष्ठभूमि 1857 के गदर से ही तैयार होने लगी थी.
Source : News Nation Bureau