Advertisment

अठावले का संकेत और आजाद के घर जुटे जी-23 नेता... कांग्रेस के लिए परेशानी

गुलाम नबी आजाद के घर पर कांग्रेस के कुछ ऐसे असंतुष्ट नेताओं का जमावड़ा लगा, जो बीते साल अगस्त में कांग्रेस हाईकमान को लेटर लिखने वाले असंतुष्ट नेताओं के गुट जी-23 के सदस्य थे.

author-image
Nihar Saxena
एडिट
New Update
Ghulam Nabi Azad

गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस फिलहाल राज्यसभा भेजने की स्थिति में नहीं.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

Advertisment

मंगलवार को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) की विदाई के मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) अपने विदाई भाषण में काफी भावुक नजर आए. उन्होंने आजाद को अपना निजी मित्र बताते हुए गुजरात के श्रद्धालुओं समेत वैष्णों देवी गए भक्तों पर हुए आतंकी हमले का जिक्र भी किया, जब गुलाम नबी आजाद ने निजी स्तर पर गुजराती श्रद्धालुओं को लेकर काफी इंतजाम किए थे. इसी के साथ एनडीए सरकार के सहयोगी आरपीआई नेता और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले का भाषण भी दिनभर सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बना रहा. अठावले ने आजाद से संकेतों में कहा कि अगर कांग्रेस उन्हें वापस राज्यसभा (Rajya Sabha) नहीं लाती है, तो वह तैयार हैं. इसके बाद शाम को गुलाम नबी आजाद के घर जी-23 नेताओं का पहुंचना कांग्रेस (Congress) आलाकमान की पेशानी पर बल लाने वाला साबित हुआ.

जी-23 के नेताओं ने की आजाद से घर पर मुलाकात
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक शाम को गुलाम नबी आजाद के घर पर कांग्रेस के कुछ ऐसे असंतुष्ट नेताओं का जमावड़ा लगा, जो बीते साल अगस्त में कांग्रेस हाईकमान को लेटर लिखने वाले असंतुष्ट नेताओं के गुट जी-23 के सदस्य थे. इन नेताओं में लोकसभा सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी, शशि थरूर, हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, महाराष्ट्र के पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण, राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा शामिल थे. हालांकि आजाद के घर नेताओं के जमावड़े को एक शिष्टाचार मुलाकात बताया जा रहा है. यह अलग बात है कि पीएम के भाषण के बाद और उनके द्वारा जी-23 का जिक्र किए जाने के मद्देनजर इन नेताओं का घर जाना अपने आप में एक अलग संकेत हो सकता है. जिस तरह से कांग्रेस में खेमेबाजी चल रही है और पार्टी में वफादारी बनाम बागी खेमा तैयार हो चुका है. उसमें पीएम द्वारा आजाद की तारीफ को पार्टी की दुखती रग पर हाथ रखने की तरह देखा जा रहा है.

यह भी पढ़ेंः  सचिन पायलट राजस्थान में ऐसे साध रहे एक तीर से दो निशाने

आजाद भी कांग्रेस अध्यक्ष पद पर लिखे चुके हैं कड़ा पत्र
कांग्रेस पार्टी में एक अदद अध्यक्ष चुनने को लेकर रूठने-मनाने का सिलसिला लंबे समय से चल रहा है. ताजा वाकया 31 जनवरी का है. दिल्ली कांग्रेस प्रदेश कमेटी ने एक प्रस्ताव पारित कर राहुल गांधी को तत्काल पार्टी की कमान सौंपने की गुजारिश कर दी. कांग्रेस कार्यकारिणी के फैसले के मुताबिक कई राज्यों में विधानसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी अब जून में नया अध्यक्ष चुनेगी. यह अलग बात है कि पार्टी में असंतुष्ट तबका इसी पर सवाल उठा रहा है. इसी बैठक में पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले 23 वरिष्ठ नेताओं में शामिल गुलाम नबी आजाद ने फिर अपनी मांग दोहराई कि संगठन चुनाव की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जाए. हालांकि पहले ही की तरह उनकी नहीं सुनी गई. गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल, केरल, असम, तमिलनाडु और पुडुचेरी में मार्च-अप्रैल में विधानसभा चुनावों होने हैं.

जून तक रुकने को सही नहीं मान रहा जी-23 गुट
इससे पहले करीब चार महीने के विचार-विमर्श के बाद मधुसूदन मिस्‍त्री की अध्यक्षता में कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति ने पार्टी कार्यकारिणी के पास सिफारिश भेजी थी. इसमें कहा गया था कि अध्यक्ष पद के लिए मई में चुनाव करा लिए जाएं. उस वक्त भी कार्यकारिणी के सदस्य गुलाम नबी आजाद, पी चिदंबरम, आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक ने जल्द चुनाव कराने पर जोर दिया था. अब पार्टी ने जून तक चुनाव कराने का फैसला किया है. पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में बार-बार देरी का ही परिणाम है कि सोनिया गांधी को पिछले साल अगस्त में 23 वरिष्ठ नेताओं ने चिट्ठी लिखी थी कि पार्टी में जान डालने के लिए फौरन स्‍थाई, सक्रिय और सर्वसुलभ अध्यक्ष की नियुक्ति समेत संगठन में सभी पदों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने की बात की गई थी.

यह भी पढ़ेंः लोकसभा में पीएम मोदी और राहुल गांधी आज होंगे आमने-सामने

अध्यक्ष नहीं होते हुए भी राहुल गांधी ही हैं पार्टी का चेहरा
हकीकत यह भी है कि पिछले डेढ़ साल में राहुल गांधी ने कभी भी खुल कर दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनने की मंशा नहीं जताई. हालांकि पिछले कुछ दिनों से संगठन स्तर पर हुए बदलावों से जरूर लगता है कि उनके लिए रास्ता तैयार हो रहा है. इस डेढ़ साल में अध्यक्ष नहीं होने के बावजूद राहुल गांधी ही पार्टी का चेहरा बने हुए हैं. चाहे केंद्र सरकार पर हमले की बात हो या पार्टी में अंतर्कलह को खत्म करना हो, वही आगे रहे हैं. सूत्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि राहुल ने अभी तक अध्यक्ष बनने के संकेत नहीं दिए हैं. हालांकि पार्टी ने जिस तरह से आगामी विधानसभा चुनावों में उनकी भूमिका तय की है, उससे तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है कि जून में क्या होने वाला है. 

राज्यसभा में वापसी में लगेगा लंबा वक्त
इस बीच राज्यसभा में वापसी के लिए गुलाम नबी आजाद की शाम लंबी हो सकती है. पार्टी के पास उन्हें राज्यसभा भेजने के लिए कोई सीट नहीं है. कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि वह चाहकर भी गुलाम नबी आजाद को जल्द राज्यसभा नहीं भेज सकती. यूं तो गुजरात में एक मार्च को राज्यसभा की दो सीट के लिए चुनाव है, पर अलग-अलग चुनाव होने की वजह से दोनों सीट पर भाजपा की जीत तय है. केरल में अप्रैल में राज्यसभा के चुनाव हैं. पर केरल कांग्रेस किसी बाहरी व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाती है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब में राज्यसभा चुनाव 2022 में हैं. ऐसे में राज्यसभा में वापसी के लिए उन्हें इंतजार करना पड़ सकता है. अगर वह राज्यसभा में सदस्य के तौर पर लौटते हैं, तो भी वह नेता प्रतिपक्ष नहीं बन पाएंगे, क्योंकि उनकी अनुपस्थिति में पार्टी मल्लिकार्जुन खड़गे, पी.चिदंबरम या आनंद शर्मा में से किसी एक को यह जिम्मेदारी सौंप सकती है.

यह भी पढ़ेंः  मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए भाजपा, जदयू ने साधे जातीय समीकरण !

आजाद को संगठन की जिम्मेदारी पर भी दुविधा बरकरार
गौरतलब है कि गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के उन गिने चुने पार्टी नेताओं में है, जिन्हें गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम करने का अनुभव है. आजाद लगभग सभी प्रदेशों और केंद्र शासित राज्यों के प्रभारी रहे हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस में वह इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनके कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर राजनीतिक दल में उनके मित्र हैं. ऐसे में पार्टी उन्हें संगठन में जिम्मेदारी सौंपकर उनके अनुभवों का लाभ ले सकती है. गुलाम नबी आजाद को संगठन में क्या जिम्मेदारी मिलेगी, इस बारे में भी कई सवाल हैं. वजह यही है कि आजाद पार्टी के उन असंतुष्ट नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर संगठन में विभिन्न स्तर पर चुनावों की मांग की थी. इससे संगठन में उनकी पकड़ कमजोर हुई है. हालांकि, पार्टी अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी पत्र लिखने वाले नेताओ से चर्चा कर चुकी है, पर यह नेता अपनी मांगों पर कायम है. ऐसे में गुलाम नबी आजाद को पार्टी संगठन में वह रुतबा वापस पाने में वक्त लग सकता है. 

पीएम और अठावले के संकेत कांग्रेस आलाकमान के लिए परेशानी का सबब
ऐसे में सोमवार को राज्यसभा में ही राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी का जी-23 का जिक्र करना और फिर मंगलवार को भावुक संदेश देना, कहीं कोई संकेत जरूर करता है. इसी विदाई भाषणों में अठावले का आजाद को आने का संकेत देना और देर शाम असंतुष्ट जी-23 नेताओं की आजाद के घर पहुंचना कांग्रेस के लिए आने वाले समय में बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है. आजाद कांग्रेस के संकटमोचक रहे हैं. ऐसे में अगर असंतुष्ट धड़ा उनके साथ मजबूती से खड़ा हो जाता है, तो आने वाले समय में कांग्रेस के लिए खासी असुविधाजनक बात होगी. खासकर तब जब इसी साल बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में चुनाव होने हैं. 

HIGHLIGHTS

  • राज्यसभा में आजाद की विदाई पर भावुक हुए पीएम मोदी
  • रामदास अठावले ने भी दिए राज्यसभा पहुंचाने के संकेत
  • घर पर जी-23 नेताओं से मुलाकात कांग्रेस के लिए संकेत
PM Narendra Modi congress राहुल गांधी rahul gandhi Sonia Gandhi parliament budget-session राज्यसभा 23-अप्रैल-प्रदेश-समाचार rajya-sabha पीएम नरेंद्र मोदी सोनिया गांधी Ghulam nabi Azad Ramdas Athawale G-23 विदाई भाषण रामदास अठावले गुलाम नबी आज़ाद असंतुष्ट नेता
Advertisment
Advertisment
Advertisment