Geeta Press : देश में गीता प्रेस गोरखपुर (Geeta Press Gorakhpur) को गांधी शांति अवार्ड 2021 देने पर सियासी घमासान मचा हुआ है. जहां कांग्रेस (Congress) ने गीता प्रेस को गांधी पुरस्कार दिए जाने की तुलना गोडसे और सावरकर को सम्मान देने जैसा है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने कांग्रेस पर पलटवार किया है. आइये जानते हैं कि गीता प्रेस गोरखपुर का क्या इतिहास है और गांधी शांति पुरस्कार देने पर क्यों बवाल मचा हुआ है?
जानें गीता प्रेस की कब हुई थी स्थापना
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गीता प्रेस है. गीता प्रेस की स्थापना साल 1923 में हुई थी, लेकिन इससे पहले ही पश्चिम बंगाल के कोलकाता में इसकी नींव वर्ष 1921 में रख दी गई थी. गोरखपुर में एक किराये के मकान में जयदयाल गोयनका, घनश्याम दास जलान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने एक साथ मिलकर गीता प्रेस की शुरुआत की थी. बाद में साल 1926 में गीता प्रेस ने उस किराये वाले मकान को खरीद लिया था.
अबतक करोड़ों किताबें हो चुकी हैं प्रकाशित
दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से गीता प्रेस एक है. गीता प्रेस ने आसान, सरल भाषाओं में त्रुटिरहित पुस्तकें प्रकाशित की हैं. हिंदू धर्म की सबसे ज्यादा धार्मिक किताबों को भी प्रकाशन किया गया है, जिसे हर कोई आसानी से पढ़ और सीख सकता है. गीता प्रेस की ओर से अबतक 41.7 करोड़ किताबों को प्रिंट किया जा चुकी है, जिनमें से श्रीमद्भगवतगीता की 16.21 करोड़ प्रतियां हैं. साथ ही अबतक रामचरितमानस, रामायण, तुलसीदास और सूरदारस के साहित्य, गरुण पुराण, शिवपुराण, पुराण की करोड़ों किताबें प्रकाशित की जा चुकी हैं.
गांधी शांति पुरस्कार
भारत सरकार हर साल गांधी शांति पुरस्कार देती है. महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के मौके पर वर्ष 1995 में इस सम्मान का प्रारंभ किया गया था. अहिंसा और गांधीवादी तरीके से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन लाने में महत्वपूर्व भागीदारी देने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में जूरी ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देना का फैसला लिया है. इस पुरस्कार के तहत एक करोड़ रुपये की राशि दी जाती है, लेकिन गीता प्रेस ने पुरस्कार तो लेने के लिए तैयार है, लेकिन धनराशि नहीं लेगा.
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जानें क्यों मचा है बवाल
गांधी शांति पुरस्कार के ऐलान होने के बाद कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने विरोध जताते हुए टिप्पणी की कि गीता प्रेस गोरखपुर को गांधी सम्मान देना गोडसे और सावरकर को पुरस्कार देने जैसा है. जयराम रमेश के इस बयान के बाद बवाल मचा है. इस पर कांग्रेस में ही दो फाड़ हो गया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि हिंदू विरोधी मानसिकता की पराकाष्ठा गीता प्रेस का विरोध करना है. वहीं, बीजेपी ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है.
Source : Deepak Pandey