अलविदा शिंजो आबे ! पीएम मोदी का पक्का दोस्त, जिसे दुनिया कभी नहीं भूलेंगी

जैसे ही शुक्रवार को जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की मौत की खबर आई, दुनिया शोक की लहर में डूब गई.

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Deepak Pandey
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PM नरेंद्र मोदी और शिंजो आबे( Photo Credit : फाइल फोटो)

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Goodbye Shinzo Abe : जैसे ही शुक्रवार को जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की मौत की खबर आई, दुनिया शोक की लहर में डूब गई. जापान के अलावा भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, नेपाल, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, इटली, इंडोनेशिया और चीन समेत कई देशों ने शिंजो आबे की मौत पर दुख जताया. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा गृहमंत्री अमित शाह और कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के अलावा विभिन्न राज्यों के नेताओं ने भी दुख व्यक्त किया.

दशकों पुराना है भारत-जापान की दोस्ती

आजादी के शुरुआती दौर में ही भारत-जापान के रिश्ते मजबूत होने लगे थे. 28 अप्रैल 1952 को भारत और जापान ने शांति संधि पर हस्ताक्षर किए थे और राजनयिक संबंध स्थापित किए. साल 1957 में जापान के प्रधानमंत्री नोबुसुके किशी ने भारत की यात्रा की थी. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उसी साल (दो हाथियों के उपहार के साथ) टोकियो की वापसी यात्रा की थी. साल 1958 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जापान की यात्रा की थी.

साल 1960 में जापान के तत्कालीन क्राउन प्रिंस महामहिम अकिहितो एवं क्राउन प्रिंसेस मिचिको ने भारत की यात्रा की थी. साल 1961 में जापान की प्रधानमंत्री हयातो इकीडा ने भारत की यात्रा की थी. वहीं, भारत की ओर से साल 1969 एवं 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तो साल 1985 एवं 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जापान की यात्रा की थी. साल 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने जापान की यात्रा की थी.   

शिंजो आबे और भारत-जापान संबंध

21वीं सदी की शुरुआत यानी शिंजो के कार्यकाल में भारत-जापान संबंधों में अत्यधिक मजबूती देखी गई. वैसे तो भारत और जापान के बीच दोस्ती का रिश्ता 7 दशक पुराना है, लेकिन शिंजो आबे जापान के ऐसे पहले प्रधानमंत्री के तौर पर याद किए जाएंगे, जिसने दशकों पुरानी इस दोस्ती को इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया.

वाराणसी के घाट पर गंगा आरती में शामिल होना या बुलेट ट्रेन में पीएम मोदी को भावी भारत की झलक दिखाना हो, शिंजो आबे के चेहरे में भारतवासियों को वो उम्मीद नजर आती थी, जो शायद ही दुनिया के किसी नेता चेहरे पर नजर आती हो. किसी को अंदेशा नहीं था कि दोस्ती के इस अटूट मिसाल को ऐसी नजर लगेगी कि संबंध का वो मजबूत स्तंभ हमेशा के लिए ढह जाएगा. शिंजो आबे दुनिया के उन दुर्लभ नेताओं में एक थे, जो न सिर्फ जापान बल्कि पूरे हिंद प्रशांत क्षेत्र की चुनौतियों से निपटना बखूबी जानते थे.

शिंजो आबे ने साल 2006-07 में अपने पहले कार्यकाल में ही भारत पहुंचे और फिर संसद में उनका शानदार संबोधन हुआ था. दूसरे कार्यकाल के दौरान शिंजो आबे ने तीन बार (जनवरी 2014, दिसंबर 2015, सितंबर 2017) भारत का दौरा किया था. ये दौरा किसी भी जापानी प्रधानमंत्री द्वारा किया गया सबसे अधिक भारत का दौरा था.

परमाणु समझौते में शिंजो आबे की अहम भूमिका

जब पहली बार भारत के प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने के बाद नरेंद्र मोदी जापान गए थे, तब भी भारत-जापान परमाणु समझौता अनिश्चित था. यह दौरा पीएम मोदी के लिए अहम था. इसी दौरान जापान ने गैर-परमाणु-प्रसार-संधि सदस्य देशों को अपना रुख स्‍पष्‍ट किया. शिंजो आबे की सरकार ने जापान में परमाणु विरोधी देशों को 2016 में समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मना लिया. यह समझौता अमेरिका और फ्रांसीसी परमाणु फर्मों के साथ भारत के सौदों के लिए महत्वपूर्ण था.

भारत में बुलेट ट्रेन के श्रेय के हकदार शिंजो आबे

सितंबर 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उस वक्‍त के जापान के पीएम शिंजो आबे ने अहमदाबाद में देश के पहली बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया था. यह प्रोजेक्ट करीब 1 लाख करोड़ रुपये का है, बुलेट ट्रेन का यह प्रोजेक्ट अहमदाबाद से मुंबई तक का है.

भारत में जापान का भारी निवेश

जापान भारत में चौथा सबसे बड़ा निवेशक है. भारत में जापानी कंपनियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इनमें से 1400 से ज्यादा इस समय भारत में मौजूद हैं.

पूर्वोत्तर राज्यों में जापान का निवेश ही निवेश

12 जून 2019- जापान सरकार ने भारत के पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के विभिन्‍न राज्‍यों में वर्तमान में चल रही तथा कुछ नई परियोजनाओं में 205.784 अरब येन की धनराशि निवेश करने का फैसला किया, जो लगभग 13,000 करोड़ रूपये के बराबर है.

महत्‍वपूर्ण परियोजनाओं में जापान की भागीदारी में असम में गुवाहाटी जलापूर्ति परियोजना और गुवाहाटी सीवेज़ परियोजना, असम और मेघालय में फैली पूर्वोत्‍तर सड़क नेटवर्क संपर्क सुधार परियोजना, मेघालय में पूर्वोत्‍तर नेटवर्क संपर्क सुधार परियोजना, सिक्किम में जैव-विविधता संरक्षण और वन-प्रबंधन परियोजना, त्रिपुरा में सतत वन प्रबंधन परियोजना, मिजोरम में निरंतर कृषि और सिंचाई के लिए तकनीकी सहयोग परियोजना, नगालैंड में वन प्रबंधन परियोजना आदि शामिल है.

प्रधानमंत्री मोदी तथा प्रधानमंत्री आबे ने क्षेत्र के समग्र विकास के लिए संयुक्त प्रयासों के समन्वय के लिए वर्ष 2017 में भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम की स्थापना की. इस पहल का उद्देश्य हमारे पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा दक्षिण पूर्व एशिया तथा बांग्लादेश के बीच संपर्क बढ़ाना है.

(i) भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र (एनईआर) के विकास

(ii) इस क्षेत्र में और इस क्षेत्र एवं दक्षिण पूर्ण एशिया के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ावा

एक्ट ईस्ट फोरम की अब तक छह बैठकें हो चुकी हैं, जबकि आवश्यक जमीनी कार्यों के लिए समन्वय दल की बैठक अक्सर होती है.

एक्ट ईस्ट फोरम भारत की एक्ट ईस्ट नीति और स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत के लिए जापान के दृष्टिकोण के बीच तालमेल को दर्शाता है.

  • पूर्वोत्तर में बांस मूल्य श्रृंखला को सशक्त बनाने की पहल और चाय उद्योग, जैविक खेती और बागवानी समेत खाद्य प्रसंस्करण, महिला सशक्तिकरण का समर्थन वाली परियोजना के साथ यह पहल.
  • मेघालय में शिलॉन्ग चेरी ब्लॉसम फेस्टिवल समेत उत्तर पूर्वी क्षेत्र एवं जापान के बीच कला और संस्कृति का आदान-प्रदान.
  • कौशल केंद्रों के माध्यम से सहयोग करना, जैसे आईआईटी गुवाहाटी, असम में जैपनीज एन्डाउडेड कोर्स (जेईसी).
  • जेआईसीए की जापान ओवरसीज़ कोऑपरेशन वालंटियर्स (जोओसीवी) टीचर्स और जापान फाउंडेशन (जेएफ) स्कीम्स के माध्यम से जापानी भाषा की शिक्षा को बढ़ावा देना.
  • तकनीकी प्रशिक्षु प्रशिक्षण कार्यक्रम (टीआईटीपी)/ विनिर्दिष्ट कुशल श्रमिक (एसएसडब्ल्यू) सिस्टम के तहत जापान में प्रशिक्षुओं/ श्रमिकों की नियुक्ति; और जेआईसीए नॉलेज को– क्रिएशन प्रोग्राम की भावी संभावनाओं की तलाश.
  • निवेशकों को आकर्षित करने और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए नागरबेरा, असम में जापान औद्योगिक टाउनशिप (जेआईटी) पर फोकस.
  • आईज़ोल, मिज़ोरम में एक तृतीयक सुपर– स्पेशलिटी कैंसर और अनुसंधान केंद्र की स्थापना के लिए सहयोग पर परामर्श को आगे बढ़ाना और कोहिमा, नगालैंड में मेडिकल कॉलेज अस्पताल की कार्यप्रणालियों को दुरुस्त करने में भागीदार.
  • भविष्य के सड़क विकास हेतु जेआईसीए की तकनीकी सहयोग (टी/सी) परियोजना के तहत शुरू किए गए जापानी तरीकों और दिशानिर्देशों को लागू करना.
  • जेआईसीए की तकनीकी सहयोग (टी/सी) परियोजना "लचकदार पहाड़ी राजमार्गों के रखरखाव हेतु क्षमता विकास” के माध्यम से लोचदार कनेक्टिविटी का पालन करना.
  • कोहिमा, नगालैंड में क्षेत्रीय आपातकालीन प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान हेतु संभावित प्रशिक्षण पर सूचना के आदान–प्रदान.

उत्तर-पूर्व सड़क नेटवर्क कनेक्टिविटी सुधार परियोजनाएं

  • चरण 1-5 (राष्ट्रीय राजमार्ग <एनएच> मेघालय में 40 और 51 और मिज़ोरम में एनएच- 54 , त्रिपुरा में एनएच-208, असम में एनएच -127बी (धुबरी- फुलबारी ब्रिज एक्सेस रोड) के साथ-साथ ब्रह्मपुत्रा नदी पर 20 किमी लंबा धुबरी– फुलबारी पुल)
  • चरण 6 (त्रिपुरा में एनएच-208 में खोवाई– सबरूम खंड)
  • मेघालय में फेज– 7 (एनएच-127बी (धुबरी– फुलबारी ब्रिज एक्सेस रोड)
  • सिक्किम में राज्य राजमार्गों, प्रमुख जिला सड़कों, अन्य जिला सड़कों के उन्नयन और इस्पात पुलों के प्रतिस्थापन

भारत-जापान व्यापार (Values in Rs Lacs)

साल 2017-18: 10,125,124.30
साल 2018-19: 12,328,867.16      
साल 2019-20: 12,003,649.97      
साल 2020-21: 11,363,733.43      
साल 2021-22: 15,333,939.18

(स्त्रोतः Ministry of Commerce and Industry, Government of India)

शिंजो आबे का विजन 'आबेनॉमिक्स'

शिंजो आबे के जीवन का सबसे बड़ा मक़सद जापान की मिलिट्री ताक़त को पुनर्स्थापित करना था. शिंज़ो आबे जिस तरह से अर्थव्यस्था पर नीति अपनाते थे दुनिया ने उसे 'आबेनॉमिक्स' का नाम दिया था. शिंज़ो आबे रक्षा और विदेश मामलों में काफ़ी आक्रामक रुख़ के लिए जाने जाते थे. शिंजो आबे की चाह थी कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद लागू हुए जापान के शांतिवादी संविधान को संशोधित किया जाए. जापान की जनता और पड़ोसी देशों ने इस सैन्यीकरण का मज़बूत विरोध किया. लेकिन विरोध को दरकिनार करते हुए जापानी संसद ने इस विवादास्पद परिवर्तन पर मुहर लगा दी.

साल 2015 में शिंजो आबे ने आत्मरक्षा के अधिकार की वकालत की ताकि जापानी सेना को अपने देश और अन्य सहयोगी देशों की रक्षा के लिए तैनात किया जा सके. शिंजो आबे के जीवन का सबसे बड़ा मक़सद जापान की मिलिट्री ताक़त को पुनर्स्थापित करना था. शिंजो आबे सिर्फ़ जापान की सैनिक ताक़त को पुनर्जीवित करने के प्रयासों के लिए ही नहीं बल्कि वे अर्थव्यस्था पर अपनी अलग फ़िलॉसफ़ी के लिए भी जाने जाएंगे.

जापान के रक्षा क्षेत्र में शिंजो आबे की भूमिका

शिंजो आबे के दौर में जापान के रक्षा ख़र्च में क़रीब 13 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई. उन्होंने अधिक लचीले रक्षा सिद्धांतों को विकसित किया और सेना के लिए नए मूल्यवान सैन्य-हार्डवेयर समेत एफ़-35 लड़ाकू विमान और जापान की क्षेत्रीय प्रक्षेपण क्षमताओं को बढ़ाने में सक्षम नए इज़ुमो श्रेणी के हेलिकॉप्टर से लैस विध्वंसक शामिल किए. सुरक्षा नीति के मामले में, शिंजो आबे के क्रमिकतावादी नज़रिये के परिणाम कई प्रमुख क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं. उनमें 2013 में जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना शामिल है. साल 2014 में एक नए गोपनीयता क़ानून का पारित होना और जापान के आत्मरक्षा बलों को सामूहिक सुरक्षा अभियानों में भाग लेने की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल हैं.

QUAD से चीन को करारा झटका

QUAD का आइडिया 2007 में जापान के उस वक्त के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने दिया था. क्वाड (Quad) भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का ग्रुप है. ये चीन पर शिंजो आबे की सबसे बड़ी चोट थी. जब क्वाड का गठन हुआ था तो चीन ने इसका खुलकर विरोध किया था और कहा था कि इसे उसके खिलाफ साजिश के लिए बनाया गया है.

क्वाड चीन को इसलिए खटकता है, क्योंकि इसे चीन की विस्तारवादी नीति और उसकी हर गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बनाया गया था. चीन ने इसका विरोध करने के लिए क्वाड सदस्य देशों से बात भी की थी. साथ ही जब-जब क्वाड सदस्य देशों की सेनाएं अभ्यास करती हैं या फिर ऐसी रणनीतिक बैठक करती हैं तो चीन बौखला जाता है.

साल 2007 में पहली बार क्वाड सैन्य अभ्यास का आयोजन हुआ. साल 2007 में शिंजे के अचानक स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देने के बाद क्वाड की चमक फीकी पड़ गई. चीन के दबाव और बदलते समीकरण में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री केविन रड ने ऐलान किया कि क्वाड सामरिक रूप से फिट नहीं बैठता. ऑस्ट्रेलिया क्वाड में हिस्सा नहीं लेगा. इस तरह क्वाड का बिखराव हो गया.

दिसंबर 2012 में शिंजो आबे ने फिर से एशिया के डेमोक्रेटिक सिक्योरिटी डायमंड का कॉन्सेप्ट रखा, जिसमें चारों देशों को शामिल कर हिंद महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर के देशों से लगे समुद्र में फ्री ट्रेड को बढ़ावा देना था. QUAD सिर्फ सुरक्षा ही नहीं बल्कि आर्थिक से लेकर साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता, आपदा राहत, जलवायु परिवर्तन, महामारी और शिक्षा जैसे अन्य वैश्विक मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करता है.

साल 2007 से 2017 के बीच दस वर्षों में चारों देशों के बीच विश्वास बनाने का काम हुआ. द्विपक्षीय स्तर पर काम हुआ और संबंधों को मजबूत किया गया. पीएम नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ऑस्ट्रेलियाई पीएम मैल्कम टर्नबुल दोबारा तैयार हुए और क्वाड 2.0 का गठन हो गया. मनीला में आशियान समिट के दौरान क्वाड प्रतिनिधियों की मुलाकात हुई. क्वाड अब काफी सशक्त हो चुका है. इतना सशक्त कि कुछ जानकार इसे एशियाई नाटो कहने लगे हैं.

क्वाड का एजेंडा- साउथ चाइना सी में चीन की घेराबंदी

साउथ चाइना सी में चीन की दादागिरी का जवाब क्वाड से ही दिया जा सकता है. चीन दक्षिण चीन सागर के 80 % हिस्से पर अपना दावा करता है. 1 सितंबर 2021 से चीन ने एकतरफा नया समुद्री कानून लागू किया है. इसके तहत चीन की समुद्री सीमा से गुजरने वाली सभी विदेशी जहाजों को अपनी सारी जानकारी उसे देनी होगी. सीधे सीधे शब्दों में कहा जाए तो ऐसा नहीं करने वाले जहाजों को सीधे उड़ा दिया जाएगा.

चीन का यह कदम समुद्री यातायात को प्रभावित करने का उसका नया तरीका है. चीन का यह कानून अंतरराष्ट्रीय नियमों का भी उल्लंघन करता है. अंतरराष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ किसी भी देश के बेसलाइन से 12 नॉट मील (22.2 किलोमीटर) तक ही तटीय देशों का अधिकार होता है.

आबे ने चीन को यूं साधा

शिंजो आबे ने अपने दौर में ट्रांस-पैसिफ़िक पार्टनरशिप (टीपीपी-11) को मज़बूत करने में निर्णायक भूमिका निभाई. आबे ने 2019 में यूरोपीय संघ के साथ एक सफल व्यापारिक समझौता किया और 2018 में चीन के साथ कई वित्तीय और विकास समझौतों पर बातचीत की.

Source : Shankresh Kumar

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