दिल्ली में मंगलवार को गणतंत्र दिवस पर जिस तरह का मंजर दिखा वह स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी नहीं हो सकती है. महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन निहत्थे होकर चलाया था जो ज्ञात इतिहास का सबसे सफल आंदोलन रहा है. लेकिन दो महीने में किसान आंदोलन का विद्रुप रूप किसानों के समर्थकों को शायद ही अच्छा लगा होगा. लाठी-डंडे लोहे को रॉड, हथियार, ईंट पत्थर लहराते लोग किसान आंदोलन के हिमायती तो कतई नहीं हो सकते हैं. आखिरकर दिल्ली पुलिस की आशंका सत्य साबित हुई और यह ट्रैक्टर रैली हिंसक हो गई.
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अब सवाल उठता है किसान आंदोलन का क्या भविष्य होगा. किसान आंदोलन से सरकार दबाव में आएगी या किसान कमजोर पड़ेंगे. जाहिर सी बात है कि भारत जैसे लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं है, इसलिए किसानों को अब वो सहानभूति शायद ही मिले, जो अबतक मिलती आ रही थी. इसके अलावा पुलिस हिंसा फैलाने के आरोप में धर-पकड़ शुरू करेगी और संभव है-कई किसान नेता भी कार्रवाई की जद में आएंगे. साथ ही जो सरकार किसानों से 11 दौर की बातचीत कर चुकी है अब वो शायद ही बातचीत के टेबल पर आएगी.
दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने सोमवार को प्रेसवार्ता कर ट्रैक्टर रैली में हिंसा की आशंका जताई थी और दावा किया था कि हिंसा के उनके पास ठोस इंपुट हैं. किसानों के साथ दिल्ली पुलिस की 37 शर्तों पर सहमति बनी थी, लेकिन गणतंत्र दिवस के सुबह से ही वो शर्ते टूटती नजर आई, जब तय समय से बहुत पहले किसानों ने कई जगहों पर दिल्ली पुलिस की बैरिकेटिंग तोड़ दी. उसके बाद ट्रैक्टर रैली शुरू तो कई लोगों ने हाथों में तलवारें, लोहे के रॉड थे.
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पुलिस और किसानों की बैठक में जिन रूटों पर ट्रैक्टर रैली निकालने की सहमति बनी थी, उससे इतर जाकर आंदोलनकारी आईटीओ और लाल किला पर कब्जा कर लिए. आईटीओ से किसानों को हटाने में पुलिस को काफी मशक्कत करनी पड़ी तो लाल किला के प्राचीर पर किसानों ने तिरंगा उतारकर निशान साहिब और किसान संगठनों के झंडे लहरा दिए. बाद में पुलिस वहां भी पहुंची और किसानों को किसी तरह वहां से निकले की मशक्कत कर रही है.
Source : News Nation Bureau