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'पहले खान सुपर स्टार' दिलीप कुमार की पॉज एक्टिंग ने भी बनाया दिवाना

Dilip Kumar Death: बकौल सत्यजीत रे हिंदी सिनेमा का पहला मेथड एक्टर आज अपने प्रशंसकों को रुलाकर चला गया.

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Nihar Saxena
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Dilip Kumar

चुप रहकर भी बहुत कुछ कह जाते थे दिलीप साहब अपनी फिल्मों में.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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Dilip Kumar Death: अगर हिंदी फिल्म उद्योग के 'पहले खान सुपर स्टार' दिलीप कुमार इस बार भी अपनी बीमारी के मात दे देते तो एशियाई उपमहाद्वीप के हिंदी-उर्दू भाषी सिनेमा प्रेमी उनकी 100वीं वर्षगांठ पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ मनाते. यह अलग बात है कि बकौल सत्यजीत रे हिंदी सिनेमा का पहला मेथड एक्टर आज अपने प्रशंसकों को रुलाकर चला गया. 1 दिसंबर को पेशावर पाकिस्तान में पैदा होकर घरवालों से युसूफ खां का नाम पाने वाले दिलीप कुमार का बुधवार को यहां मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में इंतकाल हो गया. दिलीप कुमार ने आधी से ज्यादा जिंदगी हिंदी सिनेमा के नाम कर दी. पहली फिल्म ‘ज्वारा भाटा’ (1944) से लेकर ‘किला’ (1998) तक वह करोड़ों दिलों पर राज करते रहे. 

सिनेमा की तासीर मजहब के मतभेद भुला देती है
दिलीप कुमार की पॉज केंद्रित मेथड एक्टिंग को पीढ़ी दर पीढ़ी तमाम अभिनेताओं ने आगे बढ़ाया, लेकिन फिर कोई दूसरा दिलीप कुमार न हुआ, न ही आगे होगा. ‘मुगले ए आजम’ के रंगीन संस्करण की रिलीज पर उन्होंने कहा था, ‘सिनेमा का रंग बदल सकता है, लेकिन इसकी तासीर ऐसी है जो हर मजहब के इंसान को कंधे से कंधा मिलाकर तीन घंटे एक बंद कमरे में साथ रोने और साथ हंसने के लिए मजबूर कर देती है. सिनेमा की तासीर मजहब के सारे मतभेद भुला देती है.’

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देवदास ने दिलाया ट्रेजेडी किंग का खिताब
दिलीप कुमार की पहली हिट फिल्म ‘जुगनू’ मानी जाती है. उनकी पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ का उससे पहले कोई खास असर हुआ नहीं था. उसके बाद बीती सदी के पांचवें दशक में उन्होंने ‘मेला’, ‘अंदाज’, ‘दीदार’ जैसी हिट फिल्मों की लाइन लगा दी. 1955 में आई फिल्म ‘देवदास’ ने उन्हें ‘ट्रेजेडी किंग’ का खिताब दिया. राज कपूर और देव आनंद के दौर में दिलीप कुमार का रुतबा बुलंद से और बुलंद ही होता गया. तीनों ने मिलकर हिंदी सिनेमा पर साथ साथ फिर बरसों तक राज किया, लेकिन ‘ट्रेजेडी किंग’ की छवि ने ही दिलीप कुमार को पहली बार दिल का रोग भी दिया. डॉक्टरों ने उन्हें हल्के-फुल्के रोल करने को भी उस दौर में कहा था.

ठुकराया हॉलीवुड फिल्म का ऑफर
बीती सदी का सिनेमा सातवें दशक में आई दिलीप कुमार की कालजयी फिल्म ‘मुगले आजम’ के नाम रहा. फिल्म में अपने पिता अकबर से बगावत करने वाले शहजादा सलीम का उनका किया हुआ रोल हिंदी सिनेमा का वह पैमाना है, जिसके पार अब तक कोई दूसरा न जा सका. फिल्म ‘गंगा जमना’ से दिलीप कुमार प्रोड्यूसर भी बने. फिल्म ‘राम और श्याम’ में दो दो दिलीप कुमार देखकर तो जमाना उनका दीवाना ही हो गया था. वह फिल्म दर फिल्म अपने किरदारों के साथ प्रयोग करते रहे और हॉलीवुड की फिल्मों में चिंदी सा रोल पाकर भी इतराने वाले आज के दौर के कलाकारों से दशकों पहले दिलीप कुमार ने फिल्म ‘लॉरेंस ऑफ अरेबिया’ का लीड रोल ठुकरा दिया था. ‘लॉरेंस ऑफ अरेबिया’ 1962 में रिलीज हुई.

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एंग्री यंगमैन भी नहीं कर सका ट्रेजेडी किंग का रुतबा
गुजरती सदी का अगला दशक हिंदी सिनेमा में तमाम नए सितारे लेकर आया. एक तरफ राजेश खन्ना जैसा सुपरस्टार हुआ जिसने बैक टू बैक हिट फिल्मों की लाइन लगा दी. हिंदी सिनेमा को एंग्री यंगमैन भी मिला, जिसने आशिकों की दुबकती सिसकती इमेज बदल दी, लेकिन दिलीप कुमार का रुतबा फिर भी कम नहीं हुआ. लोग दिलीप कुमार से मोहब्बत करते रहे, दिलीप कुमार अपने किरदारों में नए रंग भरने की कोशिश करते रहे, लेकिन  फिल्म ‘बैराग’ में तीन तीन दिलीप कुमार भी सिनेमा का वो तिलिस्म जगाने में नाकाम रहे जिनकी उनसे लोगों ने उम्मीद की थी. दिलीप कुमार यहां कुछ वक्त सुस्ताने के लिए रुके.

बस यही इच्छा रह गई अधूरी
फिर 70 एमएम स्क्रीन पर हुई सिनेमा की क्रांति. खुद को दिलीप कुमार का एकलव्य मानने वाले सिनेमा सम्राट मनोज कुमार ने दिलीप कुमार को पहली बार एक चरित्र अभिनेता के तौर पर पेश किया फिल्म ‘क्रांति’ (1981) में. जमाना फिर उन पर निछावर हो गया. वह फिर से जमाने के करीब आ गए. इसके बाद तो ‘शक्ति’, ‘विधाता’, ‘मशाल’ और ‘कर्मा’ तक आते आते वह बीती सदी के इस नौवें दशक के सुपर सितारों की लोकप्रियता पर भारी पड़ने लगे थे. बड़े परदे पर शो मैन सुभाष घई लेकर आए सौदागर (1991). अपने समकालीन अभिनेता राजकुमार के साथ दिलीप कुमार ने जो ‘इमली का बूटा बेरी का बेर’ गाया तो लोगों को लगा सिनेमा का असली जादू तो यही है. ‘जादू तेरी नजर..’ गाने वाले शाहरुख खान तो दिलीप कुमार की विरासत उन दिनों आगे बढ़ा ही रहे थे, आमिर खान की एक्टिंग में भी अक्सर दिलीप कुमार के अभिनय का अक्स नजर आया. ‘सौदागर’ रिलीज होने के पांच साल बाद दिलीप कुमार ने कैमरे के पीछे की कमान भी संभालनी चाही, लेकिन उनका फिल्म निर्देशक बनने का ख्वाब अधूरा ही रह गया.

HIGHLIGHTS

  • सत्यजीत रे ने कहा था हिंदी फिल्मों का पहला मेथड एक्टर
  • लाउड के दौर में दिलीप कुमार की पॉज एक्टिंग ने ढाया कहर
  • शानदार कैरियर में फिल्म निर्देशक बनने का ख्वाब अधूरा रहा
dilip-kumar dilip-kumar-dies दिलीप कुमार satyajit ray Mughle E Azam Pause Acting Loud Acting दिल्पी कुमार मृत्यु मुगल-ए-आजम पॉज एक्टिंग लाउड एक्टिंग सत्यजीत रे
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