Advertisment

नीम हकीम खतरा-ए-जान : गूगल सर्च से घरेलू नुस्खे और हर्बल दवाएं कैसे बन रही जानलेवा

ऐसे दवाओं की जानकारी और सेवन के लिए लोग  'गूगल सर्च' का सहारा लेते हैं. और यह कत्तई जरूरी नहीं है कि गूगल पर जो विधि है वह किसी योग्य और प्रशिक्षित चिकित्सक ने ही डाला हो.

author-image
Pradeep Singh
एडिट
New Update
gharelu nuske

घरेलू नुस्खे( Photo Credit : News Nation)

Advertisment

भारत स्वास्थ्य के मामले में सदियों से घरेलू नुस्खों और स्थानीय स्तर पर उपलब्ध दवाओं के भरोसे रहा है. घर में प्रयुक्त होने वाली चीजें और आस-पास मौजूद औषधीय वनस्पतियों से वह अपना ईलाज करता रहा है. दवाओं का स्व-नुस्खा और घरेलू नुस्खे का उपयोग हमारी जीवन शैली का हिस्सा रहा है.  एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक यह घरेलू नुस्खा आसानी से स्थानांतरित होता रहा है. लेकिन इधर कुछ वर्षों  से घरेलू नुस्खे और हर्बल दवाओं के अत्यधिक प्रयोग ने लोगों की सेहत को खराब कर दिया है. 

दरअसल  'घरेलू नुस्खे' के नाम पर भारत में अनजाने में हर्बल दानव पैदा कर दिया है, जो  लोगों के जीवन पर भारी पड़ रहा है. क्योंकि प्राकृतिक उपचार, घरेलू नस्खे और  हर्बल औषधि में कमी नहीं है. कमी है इन दवाओं के सेवन की अनुपयुक्त विधि में. ऐसे दवाओं की जानकारी और सेवन के लिए लोग  'गूगल सर्च' का सहारा लेते हैं. और यह कत्तई जरूरी नहीं है कि गूगल पर जो विधि है वह किसी योग्य और प्रशिक्षित चिकित्सक ने ही डाला हो. गूगल सर्च में मिले परिणामों पर आश्रित होना ही आज खतरनाक हो गया है.

देश में चिकित्सकों के पास हाल ही में ऐसे कई मामले सामने आए जब यह देखा गया कि कई मरीज गूगल सर्च से मिली जानकारी से अपना इलाज किया और अंत में अपने जीवन से हाथ धो बैठे. इसका एक उदाहरण मुंबई में देखने को मिला है. जहां एक युवक को टाइप 1 मधुमेह का पता चला था - एक प्रकार का मधुमेह जिसमें इंसुलिन हार्मोन जीवन रक्षक होता है और इसे आजीवन लेने की आवश्यकता होती है. आजीवन इंसुलिन लेना मरीज के माता-पिता को ठीक नहीं लगा. इंसुलिन इंजेक्शन से मुक्त जीवन की तलाश में, माता-पिता ने इलाज के झूठे वादों के लिए इंटरनेट पर सर्च किया.

यह परिवार इंटरनेट पर व्यापक खोज के बाद पाया कि टाइप 1 मधुमेह के इलाज में "कच्चे भोजन" का प्रयोग कारगर होता है.  डॉक्टर बताते हैं कि जब वह बच्चा अस्पताल आया,  "मैं बच्चे के मधुमेह केटोएसिडोसिस को देखकर डर गया था, जो जीवन पर भारी पड़ने वाली स्थिति होती है जब शरीर इंसुलिन से वंचित हो जाता है."

दुर्भाग्य से, लड़के को अस्पताल में मृत लाया गया था जब परिवार ने इंसुलिन बंद कर दिया था, इस उम्मीद में कि कुछ पारंपरिक दवा काम करेगी. इससे पहले कि भारत जनता को स्वास्थ्य संबंधी मामलों के लिए इंटरनेट और सर्च इंजन के बुद्धिमानी से उपयोग के बारे में शिक्षित कर पाता, केंद्र सरकार ने वैकल्पिक दवाओं और उपचारों को प्रमुखता से आगे बढ़ाते हुए उन्हें और भी अधिक तबाह कर दिया. इसने जनता को बिना चिकित्सकीय सलाह के गोलियां खाने, काढ़ा पीने या रसोई की जड़ी-बूटियों का प्रयोग करने का  विश्वास दिलाया है.

कैसे चर्चा का विषय बना इम्युनिटी  

देश में कोरोना महामारी में 'इम्युनिटी' चर्चा का विषय बन गया था. गूगल एड कंसोल (Google Ads console) के आंकड़ों के अनुसार, 'इम्युनिटी बूस्टर' शब्द के लिए मासिक खोज मात्रा जनवरी 2020 में 6,600 थी, जब भारत में कोई कोविड का मामला नहीं था. 30 जनवरी को भारत ने कोविड -19 के अपने पहले मामले की पुष्टि की. जैसे-जैसे कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ी,  इम्युनिटी बूस्टर की खोज कई गुना बढ़ गई. फरवरी में 8,100 से मार्च 2020 में 90,000 और जुलाई में 1.65 लाख, भारतीयों ने प्रतिरक्षा प्राप्त करने के लिए अपनी दौड़ शुरू की.

तभी सरकार ने इम्युनिटी बढ़ाने के लिए एक गाइड सौंपा और कोविड-19 से लड़ने के लिए घरेलू उपचार की वकालत की. तुलसी, अदरक और हल्दी के साथ उबला हुआ पानी पीने से लेकर आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक या यूनानी औषधीय वस्तुओं के स्व-नुस्खे की अनुमति देने जैसे सरल उपचारों को खुला छोड़ दिया गया था.

इस बीच, विज्ञान के अनुसार, प्रतिरक्षा एक ऐसी चीज है जिसे मापा नहीं जा सकता है और प्रतिरक्षा विज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि स्वस्थ वयस्कों के लिए खाद्य पदार्थों या उत्पादों के माध्यम से अपनी प्रतिरक्षा में सुधार करने का कोई तरीका नहीं है.

सरकार से कहां हुई चूक?

यह मान लिया गया कि भारतीय जनता अश्वगंधा, गिलोय, पिपल्ली, और गुडूची जैसी औषधीय जड़ी-बूटियों का उपयोग एक सीमा के भीतर करेगी, यह पहली गलती थी जिसके बाद कई अन्य गलतियां दोहराई गईं.

इन जड़ी-बूटियों ने तुरंत जनता का ध्यान खींचा. उदाहरण के लिए: गूगल एड कंसोल के आंकड़ों के अनुसार, 2019 में 'गिलोय' शब्द के लिए वार्षिक खोज मात्रा 6.5 लाख थी, जो पहले कोविड वर्ष 2020 में बढ़कर 37.5 लाख हो गई.

एक और धारणा है कि जनता दिए गए निर्देशों (दिशानिर्देशों के साथ) का पालन करेगी और आसानी से उपलब्ध घरेलू उपचार या औषधीय जड़ी बूटियों का उपयोग करते समय संयम रखेगी, यह पूरी तरह गलत था.

2020 में जब हाल ही में एडवाइजरी जारी की गई थी, दिल्ली के मेदांता अस्पताल में एंडोक्रिनोलॉजी और मधुमेह के एक वरिष्ठ सलाहकार डॉक्टर के पास एक मरीज आया जिसकी आंखें एकदम पीली पड़ गयी थी. लेकिन उसेलीवर संबंधित कोई परेशानी नहीं थी. बाद में, उन्होंने पाया कि वह पिछले दो-तीन महीनों से दिन में तीन बार पानी के साथ दो बड़े चम्मच हल्दी का सेवन कर रहे थे - यह सब कोविड -19 संक्रमण को दूर करने के लिए किया गया था.

सरकार की एडवाइजरी में अनुपयोगी, संभावित रूप से हानिकारक हर्बल सप्लीमेंट्स, काढ़े आदि के सेवन की अवधि का उल्लेख नहीं किया गया है. इस घटना में कि कोई व्यक्ति इस तरह के हर्बल सप्लीमेंट्स का घरेलू उपयोग जारी रखता है, गंभीर जिगर की चोट या अन्य खतरनाक विषाक्तता घटनाओं जैसे रक्तस्राव या गुर्दे की क्षति के विकास की संभावना अधिक होती है.

दिशानिर्देश यह भी स्पष्ट रूप से नहीं बताते हैं कि किन प्रतिकूल घटनाओं की पहचान करने की आवश्यकता है, उन्हें कैसे पहचाना जा सकता है, और एक बार पहचान लेने के बाद, प्रतिकूल घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए.

स्वास्थ्य देखभाल के लिए सबसे खराब दिशानिर्देश वे हैं जो मजबूत वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित नहीं हैं और जो संभावित नुकसान पर सतर्कता नहीं दिखाते हैं.

हर्बल का कोई साइड-इफेक्ट नहीं होता है?

अब तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों से गुडुची से संबंधित हेपेटाइटिस के 200 से अधिक मामले सामने आए हैं, जिनमें से कुछ में यकृत प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है या मृत्यु हो जाती है. ऐसे कई मामलों की समीक्षा वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं. इस तरह यह देखा गया कि अश्वगंधा के अधिक प्रोयग ने लोगों में गंभीर हेपेटाइटिस के साथ-साथ कई व्यक्तियों में प्रुरिटस (खुजली) का रोग दे दिया. 

"यदि मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति निर्धारित खुराक पर भी गिलोय / गुडुची-आधारित योगों का सेवन करना शुरू कर देता है, तो उस व्यक्ति को गंभीर हर्बल-प्रतिरक्षा मध्यस्थता वाले जिगर की चोट के विकास की एक उच्च संभावना है, जिसमें अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है, कभी-कभी यकृत प्रत्यारोपण या बहुत अधिक मृत्यु हो जाती है.

यदि जिगर की बीमारी वाला व्यक्ति हल्दी / करक्यूमिन-आधारित योगों का सेवन करना शुरू कर देता है, यहां तक ​​कि निर्धारित खुराक के रूप में और विशेष रूप से लंबी अवधि के लिए, तो रक्त के अत्यधिक पतले होने और रक्तस्राव से संबंधित स्ट्रोक और जठरांत्र संबंधी गंभीर रक्तस्राव की घटनाओं का एक उच्च जोखिम होता है. 

"ऐसा इसलिए है क्योंकि हल्दी में प्राकृतिक करक्यूमिनोइड्स होते हैं जो उन लोगों में रक्त के पतलेपन को खराब कर सकते हैं जिन्हें पहले से ही रक्तस्राव का खतरा है, जैसे कि जिगर की बीमारी वाले या पहले से ही रक्त को पतला करने वाले लोग." 

एक अन्य डॉक्टर, जो नाम नहीं बताना चाहता, ने कहा कि उसने पिछले दो वर्षों में सात-आठ मामलों का अनुभव किया है, जहां रोगियों का ऑपरेशन थियेटर में बहुत अधिक खून बहा, क्योंकि उन्होंने घरेलू उपचार या हर्बल दवाओं के किसी न किसी रूप का सेवन किया, जिससे अनजाने में रक्त पतला हो गया.

सफदरजंग अस्पताल के एनेस्थीसिया एंड इंटेंसिव केयर विभाग की सीनियर रेजिडेंट डॉ कामना कक्कड़ के लिए ऐसी स्थिति दिन-प्रतिदिन का मामला बन गई हैं. उसने एक के बाद एक पांच उदाहरण साझा किए, जहां सभी मरीज अचेत अवस्था में आपातकालीन वार्ड में उतरे. “घरेलू उपचार का उपयोग चरम पर है और अक्सर ऐसे रोगी आपातकालीन वार्ड में आते हैं. चल रही दवाओं को रोकने से लेकर चिकित्सा निदान में देरी तक, मरीज और परिवार इस बात से अनजान हैं कि वे अपने कमजोर जीवन के साथ खेल रहे हैं. ” 

एक 44 वर्षीय पुरुष ने अपने मधुमेह के इलाज के लिए हर्बल दवाओं और घरेलू उपचारों को चुना और खतरनाक शर्करा के स्तर के साथ कक्कड़ के अस्पताल में आए. उसके दाहिने पैर में गैंग्रीन हो गया था और उसकी जान बचाने के लिए उसे काट दिया गया था.  

इसी तरह, सकरा वर्ल्ड हॉस्पिटल, बेंगलुरु के सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट, डॉ दीपक कृष्णमूर्ति ने पाया कि उनके मरीज को नियमित दवा लेने के बावजूद स्काई-हाई ब्लड शुगर था. “जिस चीज ने उसके शर्करा को उच्च बनाया, वह थी इम्युनिटी बूस्टर 'कशाया' जिसमें गुड़ मिलाया जाता  था. उसने इसे  तीन-चार सप्ताह तक रोजाना खाया और फिर शुगर नियंत्रण के लिए एक सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. ”  

Source : Pradeep Singh

covid-19 Gharelu Nuskhe type 1 diabetes symptoms insulin hormone Health Matters Herbal Demons immunity boosters
Advertisment
Advertisment
Advertisment