पुराना अमेरिकी लेंडर और टेक स्टार्टअप्स की आधारशिला माने जाने वाला सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) महज 48 घंटों में ढह गया. 2008 की महामंदी के बाद इसे अमेरिकी लेंडर्स की सबसे बड़ी विफलता के रूप में देखा जा रहा है. अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एसवीबी ज्यादातर टेक्नोलॉजी केंद्रित और वेंचर कैपिटल समर्थित कंपनियों को ही अपनी सेवाएं देता था. इनमें उद्योग के कुछ प्रसिद्ध ब्रांड भी शामिल हैं. बैंक के ढहते ही कैलिफोर्निया के नियामकों ने एसवीबी को बंद कर दिया. साथ ही इसे यूएस फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ने नियंत्रण में ले लिया है. गौरतलब है कि एसवीबी अमेरिका का 16वां सबसे बड़ा बैंक था. बताते हैं कि एसवीबी के संकट की शुरुआत अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दर बढ़ाने से हुई, जिसके इसके बॉन्ड्स की वैल्यू कम हो गई. इसे देख निवेशकों ने निकासी तेज कर दी और बैंक को इस फेर में दो बिलियन डॉलर के पहले मुकसान का सामना करना पड़ा.
ऐसे सामने आया सिलिकॉन वैली बैंक संकट
- बैंक की साख नीचे गिरने की शुरुआत बुधवार को शुरू हुई जब उसने घोषणा की कि उसे अपनी बैलेंस शीट को मजबूत करने के लिए 2.25 बिलियन डॉलर जुटाने की जरूरत है. इससे प्रमुख वेंचर कैपिटल फर्मों में घबराहट फैल गई, जिन्होंने कथित तौर पर कंपनियों को बैंक से अपना पैसा वापस लेने की सलाह दी.
- आर्थिक मंदी और आईपीओ पर आसन्न संकट की आहट के बीच जैसे ही स्टार्टअप कंपनियों ने जमा राशि निकाली एसवीबी की पूंजी और कम पाई गई. इस कड़ी में बैंक ने बुधवार को कहा कि उसे अपने सभी उबलब्ध ऑल सेल बॉन्ड्स को 1.8 अरब डॉलर के नुकसान पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा.
- कंपनी के इस बयान के बाद गुरुवार को कंपनी के शेयरों में तेज गिरावट दर्ज की गई, जो नियमित कारोबार के अंत तक 60 फीसदी तक पहुंच गई. सांता क्लारा स्थित एसवीबी में तरल मुद्रा के संकट का मुद्दा गुरुवार की रात सामने आया, जिसके बाद शुक्रवार को प्री-मार्केट ट्रेडों में इसके शेयर की कीमत 69 फीसदी तक गिर गई.
- ऐसे में एसवीबी को अपने शेयरों को बिक्री रोकने समेत अति शीघ्र पूंजी जुटाने या खरीदार खोजने के प्रयासों को भी छोड़ना पड़ा. फर्स्ट रिपब्लिक, पीएसीवेस्ट बैनकॉर्प और सिग्नेचर बैंक जैसे अन्य बैंकों के शेयर भी बिकावली से रोकने पड़े. बाजार के आंकड़ों से पता चलता है कि एसवीबी के पतन के कारण अटलांटिक के दोनों किनारों पर गहरा वित्तीय हादसा हुआ, जिसमें सैकड़ों अरबों डॉलर का सफाया हो गया.
- जमाकर्ताओं को आश्वस्त करने और उनकी पूंजी को बचाने के लिए कैलिफोर्निया के बैंकिंग नियामकों को आगे आकर एसवीबी पर नियंत्रण लेने की घोषा करनी पड़ी. साथ ही कहना पड़ा की बैंक के जमा पर अब उसका नियंत्रण नहीं रहा है. हालांकि तब तक एसवीबी के ध्वस्त होने का असर वैश्विक बाजारों और बैंकिंग शेयरों पर पड़ चुका था. एसवीबी के ढहने के समय बैंक के पास 209 बिलियन डॉलर की संपत्ति और 175 बिलियन डॉलर की जमा राशि थी.
- बैंक के ध्वस्त होने से 24 घंटे पहले सिलिकॉन वैली बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ग्रेग बेकर ने व्यक्तिगत रूप से ग्राहकों को आश्वासत किया कि बैंक के साथ उनका पैसा सुरक्षित है. हालांकि एसवीबी के ग्राहकों का कहना है कि सीईओ ग्रेग बेकर का 'धैर्य बनाए रखने' का आग्रह भी जमाकर्ताओं का आत्मविश्वास जगाने में नाकामयाब रहा.
- ग्रेग बेकर लगभग तीन दशक पहले एक ऋण अधिकारी के रूप में कंपनी से जुड़े थे. उन्होंने 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान पिछले वर्ष तक एसवीबी की 40 बिलियन से अधिक वर्थ के साथ लेंडर को चलाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई. वह 2011 में एसवीबी फाइनेंशियल ग्रुप के अध्यक्ष और सीईओ बने थे.
- कैलिफोर्निया नियामक फाइलिंग के अनुसार एसवीबी के खस्ताहाल होने की सूचना से दलाल स्ट्रीट पर हंगामा मच गया. गुरुवार के खत्म होते-होते ग्राहकों ने 42 बिलियन की जमा राशि वापस ले ली. एयरबीएनबी, डोरडैश और ड्रॉपबॉक्स लॉन्च करने वाले स्टार्टअप इनक्यूबेटर वाई कॉम्बिनेटर के सीईओ गैरी टैन के मुताबिक स्टार्टअप्स के लिए यह जीने-मरने वाला कारण बन गया था.
- बैंक की वेबसाइट के अनुसार उद्यम पूंजी फर्मों से शुरुआती फंडिंग प्राप्त करने के बाद पिछले साल पब्लिक कंपनी बनने वाली अमेरिकी प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य देखभाल कंपनियों में से लगभग आधी सिलिकॉन वैली बैंक की ग्राहक थी. एसवीबी के अग्रणी टेक कंपनीज मसलन शॉपिफाय, जिर्करूटर और शीर्ष वेंचर कैपिटल फर्म एंड्रीसन हॉरोविट्ज से वित्तीय तार जुड़े हुए थे.
- सिलिकॉन वैली के एक शीर्ष लेंडर के अचानक पतन ने टेक निवेशकों और स्टार्टअप्स को हाशिये पर धकेल दिया है. वे अब अपने वित्तीय जोखिम का पता लगाने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं, तो उनके संस्थापक अपने पैसे निकालने की चिंता कर रहे हैं.
HIGHLIGHTS
- ज्यादातर स्टार्टअप कंपनियों को फंडिंग देता था सिलिकॉन वैली बैंक
- फैडरल रिजर्व की ब्याज दर बढ़ाने से बॉन्ड्स की वैल्यू भी हो गई कम
- बड़ी मात्रा में बैंक निकासी से बॉन्ड्स को नुकसान पर पड़ा बेचना