Hypersonic Weapons विकसित करने के लिए भारत ने किया एक और परीक्षण

एचएसटीडीवी का जून 2019 में पहला परीक्षण विफल रहा था, लेकिन सितंबर 2020 में दूसरा परीक्षण कुछ हद तक सफल रहा. दूसरे परीक्षण में स्क्रैमजेट-संचालित क्रूज़ वाहन ने लांच से अलग होने के बाद मैक 6 गति से 30 किमी की ऊंचाई पर 22-23 सेकंड तक उड़ान भरी.

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Nihar Saxena
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HSTDV Test

परीक्षण ओडिशा तट से दूर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से दोपहर में किया गया( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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भारत (India) ने शुक्रवार को हाइपरसोनिक हथियार (Hypersonic Weapons) बनाने की चंद देशों की होड़ के बीच स्क्रैमजेट इंजन से चलने वाले हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) का परीक्षण किया. हाइपरसोनिक हथियार ध्वनि (Sound Speed) से पांच गुना अधिक रफ्तार की गति से लक्ष्य तक का सफर तय करते हैं और किसी भीअत्याधुनिक मिसाइल रक्षा प्रणाली (Missile Defence System) को चकमा देने में सक्षम हैं. गौरतलब है कि चीन, रूस और अमेरिका के बीच पहले से ही हाइपरसोनिक हथियारों को लेकर होड़ मची हुई है. सूत्रों ने कहा कि भविष्य में 5 मैक से अधिक गति वाले हाइपरसोनिक हथियारों के लिए एक महत्वपूर्ण बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में काम करने में सक्षम स्वदेशी एचएसटीडीवी का परीक्षण ओडिशा तट से दूर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से दोपहर में किया गया. हालांकि रक्षा मंत्रालय या भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की ओर से इस परीक्षण के बाबत कोई आधिकारिक बयान नहीं आया, जिससे पता चल सके कि परीक्षण सफल रहा या नहीं. एक सूत्र ने सिर्फ इतना ही कहा कि शुरुआती लांच और टेक ऑफ सफल रहा. एचएसटीडीवी के स्क्रैमजेट इंजन के प्रदर्शन से कई प्रश्न जुड़े हुए हैं, जिसके लिए डाटा का विस्तार से विश्लेषण किया जाना है.

मोदी सरकार ने जून 2019 में किया था पहली बार परीक्षण
गौरतलब है कि एचएसटीडीवी का जून 2019 में  पहला परीक्षण विफल रहा था, लेकिन सितंबर 2020 में दूसरा परीक्षण कुछ हद तक सफल रहा. दूसरे परीक्षण में स्क्रैमजेट-संचालित क्रूज़ वाहन या एचएसटीडीवी ने लांच से अलग होने के बाद मैक 6 गति से 30 किमी की ऊंचाई पर 22-23 सेकंड तक उड़ान भरी. इस परीक्षण में लांच व्हीकल में अग्नि-I बैलिस्टिक मिसाइल के ठोस रॉकेट मोटर का इस्तेमाल किया गया था. समग्र परीक्षण के दौरान उड़ान का समय कम से कम कुछ मिनट होना चाहिए. इसके बाद ही हाइपरसोनिक हथियार विकसित करने की दिशा में कुछ प्रगति हो सकेगी. उस वक्त माना गया था कि भारत के लिए हाइपरसोनिक हथियार आने वाले पांच से छह वर्षों के बाद एक हकीकत होंगे. यहां यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हाइपरसोनिक हथियारों को विकसित करने की भारत की मंशा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा स्पष्ट कर दी गई थी. उन्होंने दिसंबर 2021 में डीआरडीओ को निर्देश दिया था कि वे विरोधियों के खिलाफ देश की न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोधकता को 'बनाए रखने' के लिए इस तरह के एक शस्त्रागार को विकसित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ें.

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राजनाथ सिंह ने भी साफ की थी मंशा
चीन द्वारा उस वर्ष जुलाई में हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल और परमाणु वारहेड ले जाने में सक्षम मिसाइल परीक्षण के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का यह निर्देश आया था. परमाणु हथियारों के साथ हाइपरसोनिक हथियार विकसित करने में चीन अमेरिका से भी आगे निकल गया है. वास्तव में चीन और रूस दोनों को परमाणु हथियारों के साथ उपयोग के लिए वायुगतिकीय रूप से गतिशील हाइपरसोनिक हथियारों को डिजाइन करने में अमेरिका से आगे माना जाता है. हाइपरसोनिक हथियार मूल रूप से दो तरह के होते हैं. एक, हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलें जो अपनी पूरी उड़ान के दौरान हाई-स्पीड, एयर-ब्रीदिंग इंजन या स्क्रैमजेट द्वारा संचालित होती हैं. दूसरे, हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन जो मैक 5 से अधिक की गति से अपने लक्ष्य पर ग्लाइडिंग करने से पहले बैलिस्टिक मिसाइलों के ऊपर लांच किए जाते हैं.

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भारत के पास है ब्रह्मोस के रूप में सुसोनिक क्रूज मिसाइल
हाइपरसोनिक हथियार वर्तमान मिसाइल और वायु रक्षा प्रणालियों के लिए  गतिशीलता के कारण एक चुनौती पेश करते हैं. इसके साथ ही यह उड़ान के दौरान हाइपरसोनिक हथियार लंबवत या क्षैतिज दिशा में रुख मोड़ने में भी सक्षम होते हैं. भारतीय सशस्त्र बलों के पास पहले से ही पारंपरिक रैमजेट-संचालित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें हैं, जो रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित मैक 2.8 की गति से उड़ती हैं. उनकी स्ट्राइक रेंज को मूल 290 किलोमीटर से बढ़ाकर अब 450 किलोमीटर कर दिया गया है, लेकिन जहां रैमजेट इंजन लगभग 3 मैक के आसपास सुपरसोनिक गति से अच्छी तरह से काम करते हैं, वहीं हाइपरसोनिक गति पर उनकी दक्षता कम हो जाती है.

HIGHLIGHTS

  • ओडिशा तट से दूर एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से किया गया एचएसटीडीवी का प्रशिक्षण
  • रक्षा मंत्रालय या डीआरडीओ का इस पर कोई औपचारिक बयान नहीं, सिर्फ संकेत दिया
  • जून 2019 में  पहला परीक्षण विफल था. सितंबर 2020 का परीक्षण कुछ हद तक सफल 
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