गलवान घाटी (Galwan Valley) में हिंसक संघर्ष के बाद इंडो-चाइना सीमा पर बढ़े तनाव के बीच भारत ने चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए एक ऐसा काम किया है, जो दुनिया के किसी देश की सेना ऐसी परिस्थितियों में नहीं कर सकी है. वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) से सटे चूमर और डेमचोक इलाकों में भारतीय सेना ने टी-90 औऱ टी-72 टैकों को तैनात कर दिया है. लद्दाख (Ladakh) की ऐसी ऊंचाइयों और दुर्गम हालातों में इन टैकों की तैनाती से ड्रैगन का सकते में आना तय है. इस लिहाज से देखें तो पिछले पांच महीनों से व्यस्त भारतीय सेना की बख्तरबंद रेजिमेंट 14,500 फीट से अधिक ऊंचाई पर चीनी सेना से मुकाबला लेने के लिए तैयार है. यहां भारत ने बीएमपी -2 इन्फैन्ट्री कॉम्बैट व्हीकल्स को भी तैनात कर रखा है, जो माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में काम कर सकते हैं.
#WATCH Indian Army deploys T-90 & T-72 tanks along with BMP-2 Infantry Combat Vehicles that can operate at temperatures up to minus 40 degree Celsius, near Line of Actual Control in Chumar-Demchok area in Eastern Ladakh.
— ANI (@ANI) September 27, 2020
Note: All visuals cleared by competent authority on ground pic.twitter.com/RiRBv4sMud
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कोई और देश नहीं कर सका इतने कम तापमान पर तैनाती
पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सबसे तेज हाड़-कंपाती सर्दियां देखी जाती हैं. यहां रात में तापमान सामान्य से 35 डिग्री कम होता है और बेहद तेज गति वाली ठंडी हवाएं चलती हैं. मेजर जनरल अरविंद कपूर ने एएनआई को चल रहे एक टैंक अभ्यास क्षेत्र के पास बताया, 'फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स भारतीय सेना का एकमात्र संगठन है और दुनिया में भी वास्तव में ऐसे कई कठोर इलाके में यंत्रीकृत बलों को तैनात किया गया है. टैंक, पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों और भारी बंदूकों का रख-रखाव इस इलाके में एक चुनौती है. चालक दल और उपकरण की तत्परता सुनिश्चित करने के लिए आदमी और मशीन दोनों के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं.'
Winters in Ladakh going to be harsh. We're absolutely in control as far as advanced winter stocking&forward winter stocking is concerned. High calorific&nutritious ration,fuel&oil,winter clothing&heating appliances all available in adequate numbers: Chief of Staff,14 Corps to ANI pic.twitter.com/DFhtBwi9c3
— ANI (@ANI) September 27, 2020
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भीष्म से टकराएगा तो चूर-चूर हो जाएगा चीन
भारत ने लद्दाख में जिन टी-90 टैंकों की तैनाती की हैं, वे मूल रूस से रूस में बने हैं. भारत टैंकों का तीसरा सबसे बड़ा ऑपरेटर है. उसके बेड़े में करीब साढ़े 4 हजार टैंक (टी-90 और उसके वैरियंट्स, टी-72 और अर्जुन) हैं. भारत में इन टैंकों को 'भीष्म' नाम दिया गया है. इनमें 125एमएम की गन लगती होती है. 46 टन वजनी इस टैंक को लद्दाख जैसे इलाके में पहुंचा पाना आसान काम नहीं था. यह अपने बैरल से एंटी-टैंक मिसाइल भी छोड़ सकता है. भारत ने इसमें इजरायली, फ्रेंच और स्वीडिश सब सिस्टम लगाकर इसे और बेहतर किया है.
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टी-72 हैं अजेय टैंक
टी-72 को भारत में 'अजेय' कहा जाता है. भारत में ऐसे करीब 1700 टैंक हैं. यह बेहद हल्का टैंक है जो 780 हॉर्सपावर जेनेरेट करता है. यह न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल हमलों से बचने के लिए भी बलाया गया है. यह 1970 के दशक में भारतीय सेना का हिस्सा बना था. 'अजेय' में 125 एमएम की गन लगी है. साथ ही इसमें फुल एक्सप्लोसिव रिऐक्टिव आर्मर भी दिया गया है. भारतीय बख़्तरबंद रेजिमेंटों में इतनी क्षमता है कि वे मिनटों में एलएसी तक पहुंच जाएं, अगर वहां उनकी जरूरत हो और उन्होंने हाल ही में ऐसा किया हो. जब चीनी ने 29-30 अगस्त की घटनाओं के बाद अपने टैंक सक्रिय कर दिए थे तो भारत ने पैंगोंग झील के दक्षिणी तट के पास कई ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया था. पूर्वी लद्दाख से लेकर चीनी बलों के कब्जे वाले तिब्बती पठार तक फैला पूरा इलाका टैंकों के संचालन के लिए उपयुक्त है.