चीन में कोरोना के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. ऐसे में केंद्र सरकार ने चीन की मेडिकल यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को आगाह करते हुए एक चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि, चीन में पूर्व एवं वर्तमान स्टूडेंट्स को नियमित पढ़ाई में आ रही परेशानियों और भारत में मेडिकल प्रैक्टिस की अनुमति की कठिन प्रोसेस को देखते हुए, नए छात्रों को चीनी इंस्टीट्यूस में एडमिशन लेने से पहले अच्छे से सोच-विचार कर लेना चाहिए. दरसअल भारत में नीट एग्जाम क्लियर करने के बावजूद भी एमबीबीएस करने की इच्छा रखने वाले हज़ारों बच्चों को अच्छे रैंक न मिलने की वजह से अच्छे मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पाता है. कहीं एडमिशन मिलता भी है तो इन बच्चों के माता पिता इन इंस्टिट्यूट्स की मोटी फीस नहीं भर पाते हैं. ऐसे में इनके पास विकल्प होता है विदेश में पढ़ाई करने का, जहां पढ़ाई से लेकर रहने तक का खर्च बहुत कम पैसे में हो जाता है.
ऑनलाइन तरीके से चल रही पढ़ाई
ऐसे में विकल्प के तौर पर भारत के बच्चे यूक्रेन, चीन, फिलीपींस और कजाकिस्तान जाते हैं और वहां की यूनिवर्सिटीज में एडमिशन लेकर पढ़ाई करते हैं. इनमें सबसे ज्यादा छात्र चीन में पढ़ाई करने जाते हैं. चीन की कई प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज में हजारों की संख्या में भारतीय स्टूडेंट्स पढाई करते हैं. इनमें भी स्टूडेंट्स मेडिकल के स्टूडेंट्स की संख्या सबसे ज्यादा है. पिछले करीब 2 साल से इन स्टूडेंट्स की क्लासेस ऑनलाइन चल रही थी, जो कोरोना के बढ़ने की वजह से अब फिर से ऑनलाइन मोड में ही कंटीन्यू होगी. ऐसे में ऑनलाइन मोड में पढ़ाई कर रहे भारतीय स्टूडेंट्स या अब नए सैशन में एडमिशन की इच्छा रखने वाले छात्रों को केंद्र सरकार ने एक बार फिर आगाह करते हुए चेतावनी जारी की है.
सरकार ने दी है ये चेतावनी
सरकार ने अपनी एडवाइजरी में ये भी कहा है कि कम परसेंटेज, चीन की आधिकारिक भाषा पुतोंगहुआ की अनिवार्यता और भारत में कड़ी मान्यता प्रक्रिया से होने वाले नुकसान के बारे में भी छात्रों को अच्छे से सोच समझ लेना चाहिए. चीनी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स दो साल से ज्यादा समय से भारत में अपने घरों में फंसे हुए हैं. एक आधिकारिक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में 23,000 से ज्यादा भारतीय स्टूडेंट्स चीन की अलग अलग यूनिवर्सिटीज में नामांकित हैं और इनमें से ज़्यादातर मेडिकल के छात्र हैं. चीन में कोरोना काल में लगाए गए वीजा प्रतिबंधों के कारण विदेशी छात्रों के आगमन पर फिलहाल असमंजस की स्थिति बनी हुई है. चीन ने हाल ही में कुछ सेलेक्टेड स्टूडेंट्स को चीन लौटने के लिए वीजा जारी करना शुरू कर दिया है. हालांकि, ज़्यादातर स्टूडेंट्स सीधी उड़ान सेवा बहाल नहीं होने और उड़ान का खर्च ज्यादा होने के कारण अभी नहीं जा पा रहे हैं. जबकि ऑनलाइन माध्यम से की गई मेडिकल की पढ़ाई मान्य नहीं होती है.
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छात्रों की परेशानियों का कोई हल नहीं?
ऐसे ही स्टूडेंट्स में से एक 22 साल की रिया सिंह MBBS की 4th ईयर की छात्रा हैं और चीन के शियामिन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करती हैं. साल 2018 में इन्होंने भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए नीट एग्जाम क्लियर किया था लेकिन अच्छी रैंकिंग न होने की वजह से इन्होंने विदेश में पढ़ाई का सोचा, जो भारत के प्राइवेट संस्थान में पढ़ाई के मुकाबले काफी सस्ता और क्वॉलिटी एजुकेशन भी दे सकता था. लेकिन रिया को नहीं पता था कि कोरोना और इंडिया चीन के सीमा विवाद की वजह से इनकी पढ़ाई पर भी समस्या आ सकती है. फिलहाल रिया परेशान हैं और अपने जूनियर स्टूडेंट्स को आगाह कर रही हैं कि चीन में एडमिशन लें तो सोच समझकर ही लें. इतना पैसा खर्च करने के बाद भी रिया को भारत में प्रैक्टिस का मौका नहीं मिल सकेगा. इससे रिया के माता पिता भी काफी परेशान हैं.
चीन जाकर फंस गए!
रिया की ही तरह 23 साल के लोकेश मिश्रा चीन की कुन्मिंग यूनिवर्सिटी में 4th ईयर के मेडिकल स्टूडेंट हैं. लोकेश भी लॉक डाउन के बाद से चीन नहीं जा पाए है. जाने का सोचते भी हैं तो फिलहाल फ्लाइट्स महंगी हैं. लोकेश का कहना है कि पहले फ्लाइट महज 30 हजार रुपए में दिल्ली से चीन पंहुचा देती थी लेकिन अब 1 से डेढ़ लाख किराया देना पड़ रहा है और वो भी बिजनेस क्लास फ्लाइट में जाने के लिए. फिलहाल लोकेश भी परेशान हैं.
चीन में पढ़े छात्रों को भारत में आ रही परेशानी
हालांकि इस बीच, चीनी मेडिकल कॉलेजों ने भारत और विदेशों से नए छात्रों के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया शुरू कर दी है. इसी के मद्देनजर, बीजिंग में भारतीय एम्बेसी ने चीन में मेडिकल की पढ़ाई करने के इच्छुक भारतीय छात्रों के लिए एक चेतावनी जारी की है. इसमें बताया गया है कि भारत में प्रैक्टिस के लिए जरूरी एफएमजीई में भाग लेने वाले 2015 से 2021 के बीच चीन से पढ़े हुए 40,417 छात्रों में से केवल 6,387 यानी महज 16 प्रतिशत छात्र ही क्वॉलीफाई कर सके हैं. इसमें में यह भी कहा गया है कि चीन के अलग अलग विश्वविद्यालयों में फीस अलग-अलग है और स्टूडेंट्स को एडमिशन लेने से पहले सीधे विश्वविद्यालय से जांच कर लेनी चाहिए.
सिर्फ 45 विश्वविद्यालयों में ले सकते हैं दाखिला
इसके अलावा पहले भी केंद्र सरकार की तरफ से यूजीसी ने चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि चीन में सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त 45 मेडिकल कॉलेजों को पांच साल की अवधि और एक साल की इंटर्नशिप में मेडिकल डिग्री प्रदान करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है. भारतीय छात्रों को इन 45 कॉलेजों के अलावा अन्य दाखिला नहीं लेना चाहिए. चीन की सरकार ने भी स्पष्ट किया है कि विदेशी छात्र केवल 45 विश्वविद्यालयों के अंग्रेजी भाषा के चिकित्सा शिक्षा कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी विश्वविद्यालय को द्विभाषी मोड (अंग्रेजी और चीनी भाषा) में क्लीनिकल मेडिसिन प्रोग्राम संचालित करने की सख्त मनाही है. हालांकि, क्लीनिकल सेशन के लिए चीनी भाषा सीखना अनिवार्य है. इसलिए, हर छात्र को एचएसके -4 स्तर तक चीनी भाषा सीखनी होती है और जो नहीं सीख पाते, उन्हें डिग्री अवॉर्ड नहीं की जाती है. इसलिए, चीनी संस्थानों में एडमिशन का जोखिम लेने से पहले अच्छे से सोच-विचार कर लेना चाहिए.
HIGHLIGHTS
- चीन में पढ़ने वाले भारतीय छात्र परेशान
- मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए सरकार ने जारी की एडवायजरी
- चीन के 45 विश्वविद्यालयों की डिग्रियां मान्य, लेकिन...