अपनी आक्रामकता और दुनिया को अपने क्षेत्र में मिला लेने की बेचैनी अब चीन को महंगी पड़ने वाली है. चीन ने एक बार भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश की लेकिन भारत ने ऐसा जवाब दिया कि चीन अब मुंह छुपाता फिर रहा है. भारत ने न सिर्फ चीन की सेना को पीछे धकेला बल्कि उन पोस्ट पर भी कब्जा कर लिया जहां 1962 के बाद से अब तक किसी भी देश का कब्जा नहीं रहा. यह भारत के लिए बड़ी रणनीतिक जीत है.
दरअसल कोरोना वायरस के बाद से ही चीन के प्रति दुनिया के सभी देशों का नजरिया अब पूरी तरह बदल चुका है. दूसरी तरफ अमेरिका हो या ब्रिटेन, फ्रांस, आस्टे्रलिया या फिर जापान. इन देशों के साथ चीन का किसी न किसी मुद्दे पर विरोध है. ऐसे में चीन भारत के खिलाफ आक्रामकता का प्रदर्शन कर रहा है, जिसके जरिये वह नासमझी और मूर्खता के नए पैमाने गढ़ रहा है.
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युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार भारत
1962 में चीन के साथ युद्ध में हुई हार को चीनी सरकार के कुछ लोग अक्सर उठाते रहते हैं लेकिन भारत की स्थिति अब पहले जैसी नहीं है. अब भारत एक परमाणु हथियार से संपन्न देश हैं. अब हमारे पास न तो हथियारों की कमी है और न ही सैनिकों में कौशल की. युद्ध के हर मोर्चे पर हम चीन का सामना बखूबी कर सकते हैं. भारत ने पिछले कुछ सालों में सीमावर्ती इलाकों में अपनी रणनीति को बदला है और वहां पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण निर्माण कार्य किए हैं। जिनमें लड़ाकू विमान उतारने के लिए हवाई पट्टियों से रणनीतिक महत्व की सड़कों का जाल बिछाने तक बहुत सी चीजें शामिल हैं. इसके साथ ही भारत ने सैन्य साजोसामान के साथ बॉर्डर इलाके में किस तरह से इंफ्रास्ट्रक्चर का जाल फैलाया है उससे चीन की चिंता बढ़ना लाजमी है.
1962 में शहीद हुए थे 1300 सैनिक
1962 की लड़ाई में भारत को चीन के हाथों करारी हार मिली थी. उस जंग में भारत के करीब 1300 सैनिक मारे गए थे और एक हजार सैनिक घायल हुए थे. डेढ़ हजार सैनिक लापता हो गए थे और करीब चार हजार सैनिक बंदी बना लिए गए थे. वहीं चीन के करीब 700 सैनिक मारे गए थे और डेढ़ हजार से ज्यादा घायल हुए थे.
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4 दिन में भारत ने किया कई महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा
भारतीय सैनिकों ने पिछले चार दिन की कार्रवाई में उन सारी पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया, जिनपर 1962 के युद्ध के बाद कभी भी भारतीय सेना की मौजूदगी नहीं रही. तकरीबन 25 किलोमीटर के इलाके में ये कार्रवाई पेट्रोलिंग की गई. प्वाइंट 27 से 31 के बीच में भारत के शूरवीरों की तैनाती हो गई है. भारतीय सैनिकों ने जिन-जिन पहाड़ियों पर मोर्चा जमाया है, वहां चीन में मोल्डो सैनिक मुख्यालय तक नजर रखी जा सकती है. लेकिन हिन्दुस्तान और हमारी सेना पूरी तरह से मुश्तैद है. जिसका उदाहरण देखा जा सकता है.
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चोटियों पर तैनात भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स
भारत ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पैंगोंग झील के दक्षिणी छोर स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) तैनात कर दी है. इसे दुश्मन इलाके में तेजी से वार करने में माहिर माना जाता है. विकास रेजिमेंट के नाम से भी जानी जाने वाली एसएफएफ सेना नहीं बल्कि खुफिया एजेंसी रॉ (कैबिनेट सचिवालय) के तहत काम करती है. इसके अधिकारी सेना के होते हैं और जवान खास वजहों से तिब्बत के शरणार्थियों में से चुने जाते हैं. 1971 की जंग में चटगांव की पहाड़ियों को ऑपरेशन ईगल के तहत सुरक्षित करने में, 1984 में ऑपरेशन ब्लूस्टार और 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन विजय में एसएफएफ की अहम भूमिका थी। इस फोर्स को अक्सर इस्टैब्लिशमेंट 22 भी कहा जाता है. फोर्स ने शुरुआत में पहाड़ों पर चढ़ने और गुरिल्ला युद्ध के गुर सीखे. इनकी ट्रेनिंग में भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के अलावा अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का भी अहम रोल था.
Source : News Nation Bureau