भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1971 में हुए युद्ध के 49 साल पूरे हो गए. वहीं, 16 दिसंबर को 50वां साल शुरू हो जाएगा. युद्ध 3 दिसंबर 1971 को उस समय शुरू हुआ था, जब पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष चल रहा था. यह युद्ध 13 दिन बाद 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना के बिना शर्त आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हो गया. बांग्लादेश आजाद हुआ.
26 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान से अलगाव का बिगुल बजा
पश्चिम पाकिस्तान के लोगों के साथ दुर्व्यवहार और पूर्वी पाकिस्तान में चुनाव परिणामों को कम करके बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम द्वारा संघर्ष छिड़ गया था. पूर्वी पाकिस्तान द्वारा आधिकारिक तौर पर अलगाव के लिए 26 मार्च 1971 को कदम आगे गया था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अगले दिन अपने स्वतंत्रता संग्राम के लिए पूर्ण समर्थन व्यक्त किया था.
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तानाशाह याहिया खां अपने ही लोगों का कर रहा था दमन
पाकिस्तान का सैनिक तानाशाह याहिया खां अपने ही देश के पूर्वी भाग में रहने वाले लोगों का दमन कर रहा था. 25 मार्च, 1971 को उसने पूर्वी पाकिस्तान की जनभावनाओं को कुचलने का आदेश दे दिया. इसके बाद आंदोलन के अगुआ शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया. लोग भारत में शरण लेने लगे. इसके बाद भारत सरकार पर हस्तक्षेप का दबाव बनने लगा.
पाक ने कर दिया हमला
तीन दिसंबर, 1971 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कोलकाता में रैली कर रही थीं. शाम के वक्त पाकिस्तानी वायुसेना ने पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा के सैन्य हवाई अड्डों पर बमबारी शुरू कर दी थी, जिसके बाद सरकार ने जवाबी हमले की योजना बनाई.
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मुक्ति बाहिनी गुरिल्लाओं ने भारतीय सेना का साथ दिया
पाकिस्तान ने भी पश्चिमी मोर्चे पर अपने सैनिक जुटा लिए थे. भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की और कई हजार किलोमीटर पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. पाकिस्तान ने लगभग 8000 मृतकों और 25,000 अधिकतम घायलों के साथ हताहत का सामना किया, जबकि, भारत ने 3000 सैनिकों को खो दिया और 12,000 घायल हो गए. पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति बाहिनी गुरिल्लाओं ने पूर्व में पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ लड़ने के लिए भारतीय बलों के साथ हाथ मिलाया. उन्होंने भारतीय सेना से हथियार और ट्रेनिंग किया.
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पाकिस्तान के करीब 93 हजार सैनिकों ने किया आत्मसमर्पण
युद्ध के अंत में, जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी के नेतृत्व में लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने मित्र देशों की सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उन्हें 1972 के शिमला समझौते के हिस्से के रूप में लौटाया गया था. पाकिस्तान अपनी आधी से ज्यादा आबादी छीन चुका था, क्योंकि बांग्लादेश पश्चिम पाकिस्तान की तुलना में अधिक आबादी वाला था. इसकी सेना का लगभग एक तिहाई हिस्सा कब्जा कर लिया गया था.
भारत का सैन्य प्रभुत्व बता रहा था, कि इसने जीत के लिए अपनी प्रतिक्रिया में संयम बनाए रखा. नियाजी ने रिवॉल्वर और बिल्ले लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिए. दोनों ने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. इस प्रकार बांग्लादेश की नींव पड़ी.
Source : News Nation Bureau